दुनिया को शांति, समृद्धि का मार्ग दिखाएगा, ‘दि हिन्दू मैनिफेस्टो’

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: हिन्दू धर्मशास्त्रों एवं सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के आधार पर एक सशक्त, टिकाऊ एवं समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के बुनियादी सूत्रों को उद्भासित करने वाली एक नयी पुस्तक ‘दि हिन्दू मैनिफेस्टो’ या हिंदू घोषणापत्र का लोकार्पण इस माह की 26 तारीख को राजधानी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत करेंगे।
इस पुस्तक को लिखा है एक ऐसे संन्यासी ने जिसने आरंभिक शिक्षा विज्ञान एवं तकनीक के उत्कृष्ट संस्थान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से ग्रहण की। तकनीक की दुनिया में कई वर्षों तक काम किया और फिर सब छोड़ दिया। यहां तक कि उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग करके संन्यास ग्रहण किया और गुरु शिष्य परंपरा से अष्टाध्यायी और पाणिनी के व्याकरण पर महारत हासिल की। उन्होंने पाणिनी व्याकरण और दर्शन में आचार्य और विद्यावारिधि की उपाधि अर्जित की। इसी कारण उनके गुरु ने उन्हें संन्यास पश्चात विज्ञानानंद का नाम प्रदान किया।
वर्तमान में विश्व हिन्दू परिषद में वरिष्ठतम संयुक्त महामंत्री स्वामी विज्ञानानंद, अंतर्राष्ट्रीय समन्वय विभाग के प्रमुख की भूमिका में वह दुनिया भर में हिंदू पुनरुत्थान और संगठनात्मक पहल को संचालित करते हैं। स्वामी विज्ञानानंद ने वर्ल्ड हिंदू कांग्रेस के नाम से एक ऐसे प्रभावशाली मंच की स्थापना की है जो हिंदुओं को हिंदू पुनरुत्थान को जोड़ने, साझा करने, प्रेरित करने और गति तेज करने के लिए एक वैश्विक मंच है। इसी मंच का एक अंग है, विश्व हिंदू आर्थिक मंच (डब्ल्यूएचईएफ) जिसका लक्ष्य समाज को समृद्ध बनाने का है। उन्होंने दिल्ली, शिकागो, बैंकॉक, हांगकांग, लंदन, लॉस एंजिल्स और मुंबई में कुल नौ डब्ल्यूएचईएफ सम्मेलनों का आयोजन किया है।
अपनी पुस्तक के बारे में चर्चा करते हुए स्वामी विज्ञानानंद ने कहा कि दि हिन्दू मैनिफेस्टो, हिंदू शास्त्रों के शाश्वत ज्ञान के साथ समाज को फिर से संगठित करने का आह्वान है, जो समृद्धि, शासन और न्याय के लिए एक परिवर्तनकारी ढांचा प्रदान करता है। वेदों, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र और शुक्रनीतिसार जैसे पवित्र ग्रंथों में निहित, यह धर्म-केंद्रित आर्थिक कल्याण, राष्ट्रीय सुरक्षा, शिक्षा, राजनीति, लोकतंत्र, प्रशासन और शासन पर जोर देता है, साथ ही महिलाओं के लिए सर्वोच्च सम्मान, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण प्रबंधन और मातृभूमि के लिए सम्मान के मूल्यों पर बल देता है।
उनका कहना है कि यह बताता है कि कैसे हिंदू समाज ने न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए ऐतिहासिक रूप से समृद्धि, नैतिक, नेतृत्व और सैन्य बल एवं सुरक्षा का संरक्षण किया है। घोषणापत्र में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, जिसमें ज्ञान-संचालित प्रगति को बढ़ावा देने में राज्य की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। यह एक ऐसे जिम्मेदार लोकतंत्र की कल्पना करता है, जो राम राज्य से प्रेरणा लेता है, जहां शासन न्याय और लोक कल्याण में निहित है।
दि हिन्दू मैनिफेस्टो महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को रेखांकित करता है, और शोषण की शमन करते हुए संरक्षण समानता को बढ़ावा देता है। यह सामाजिक संरचनाओं को फिर से परिभाषित करता है, वर्ण एवं जाति के बारे में गलत धारणाओं को दूर करता है और एक गैर-भेदभावपूर्ण समाज की वकालत करता है। यह पर्यावरण संरक्षण, सम्मान पर भी जोर देता है। प्रकृति पवित्र और स्थायी प्रथाओं का आग्रह करती है। अंततः, हिंदू घोषणापत्र एक सभ्यतागत पुनर्जागरण के लिए एक खाका है, जिसमें व्यक्तियों और राष्ट्रों से एक न्यायपूर्ण, समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण दुनिया के लिए हिंदू सिद्धांतों को अपनाने का आग्रह किया गया है। यह सिर्फ एक बयान नहीं है – यह कार्रवाई के लिए एक आह्वान है।
स्वामी विज्ञानानंद ने इस पुस्तक के मार्गदर्शक ढांचे का निर्माण करने वाले 8 सूत्रों -सभी के लिए समृद्धि, शत्रु की पराजय एवं प्रजा की रक्षा, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, जिम्मेदार लोकतंत्र, महिलाओं के लिए सर्वाधिक सम्मान, गैर-भेदभावपूर्ण सामाजिक प्रणाली, प्रकृति की देखभाल तथा भूमि का सम्मान का उल्लेख करते हुए कहा कि ये 8 सूत्र हिन्दू जीवन के उद्देश्य को एक संक्षिप्त रूप में प्रभावी ढंग से परिभाषित करते हैं।
उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र की ताकत और दीर्घायु दो मौलिक पहलुओं पर निर्भर करती है। एक, ठोस मूलभूत ढांचा जो स्थिरता और प्रगति सुनिश्चित करता है, और दूसरा, सभ्यतागत ढांचा जो मूल्यों, पहचान और स्थिरता का पोषण करता है। साथ में, ये पहलू इस पुस्तक के मुख्य दर्शन का निर्माण करते हैं, जिसमें आठ सूत्रों में से प्रत्येक सूत्र, एक संपन्न समाज के एक महत्वपूर्ण स्तंभ का प्रतिनिधित्व करता है।