ड्रोन और एयरक्राफ्ट से भूमि सर्वे, पारंपरिक तरीकों की तुलना में घटेगी लागत : डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानी

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }:केंद्र सरकार ने गुरुवार को कहा कि गलत और पुराने भूमि रिकॉर्ड विवाद का कारण बन रहे हैं, जिसे देखते हुए भूमि का केंद्रीय को-ऑर्डिनेटेड और टेक्नोलॉजी-ड्रिवन सर्वे एंड रि-सर्वे करवाया जाएगा। आंध्र प्रदेश के गुंटूर में ‘डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम’ (डीआईएलआरएमपी) के तहत सर्वे/रि-सर्वे पर नेशनल वर्कशॉप में ग्रामीण विकास और संचार राज्य मंत्री डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानी ने कहा कि केंद्र स्पॉन्सर्ड कार्यक्रम टेक्नोलॉजी-ड्रिवन होगा, जिसमें ड्रोन और एयरक्राफ्ट के जरिए से हवाई सर्वे किया जाएगा। यह नया तरीका पारंपरिक तरीकों की तुलना में केवल 10 प्रतिशत कम लागत पर काम करेगा।
इस योजना में एआई, जीआईएस और हाई-एक्युरेसी इक्विप्मेंट का भी इस्तेमाल किया जाएगा। यह राज्यों के साथ जमीनी सच्चाई और सत्यापन करने में सहयोग करेगा। जबकि, केंद्र पॉलिसी, फंडिंग और तकनीकी आधार प्रदान करेगा। संचार राज्य मंत्री ने कहा कि इस कार्यक्रम को पांच चरणों में लागू किया जाएगा, जिसकी शुरुआत 3 लाख वर्ग किलोमीटर ग्रामीण कृषि भूमि से होगी। दो साल की अवधि में चरण-I के लिए 3,000 करोड़ रुपए का परिव्यय होगा। उन्होंने राज्यों से आधार संख्या को रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (आरओआर) के साथ इंटीग्रेट करने का भी आग्रह किया। यह एक सुधार होगा, जो भूमि स्वामित्व को यूनिक डिजिटल पहचान से जोड़ने, प्रतिरूपण को खत्म करने और एग्रीस्टैक, पीएम-किसान और फसल बीमा जैसे लाभों का लक्षित वितरण सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानी ने कहा कि रिसर्वे, डिजिटलीकरण, कागज रहित कार्यालय, कोर्ट केस प्रबंधन और आधार इंटीग्रेशन जैसे सुधार एक व्यापक और पारदर्शी भूमि शासन इकोसिस्टम का निर्माण करेंगे। उन्होंने कहा कि उचित सर्वे से भूमि की आर्थिक क्षमता सामने आती है, जब रिकॉर्ड जमीनी हकीकत से मेल खाते हैं तो बैंक आत्मविश्वास से ऋण दे सकते हैं। इसी के साथ व्यवसायी निश्चितता के साथ निवेश कर सकते हैं और किसान कृषि सहायता प्राप्त कर सकते हैं। पेम्मासानी ने कहा, “अगर हम फास्ट हाईवेज, स्मार्ट सिटी, सुरक्षित आवास और सस्टेनेबल कृषि चाहते हैं, तो हमें जमीनी स्तर से शुरुआत करनी होगी।” उन्होंने आगे कहा कि डीआईएलआरएमपी के तहत पर्याप्त प्रगति हुई है, लेकिन एक प्रमुख पेंडिंग कंपोनेंट, सर्वे और रिसर्वे अब तक केवल चार प्रतिशत गांवों में ही पूरा हो पाया है, क्योंकि यह कार्य एक व्यापक प्रशासनिक, तकनीकी और सार्वजनिक भागीदारी वाला कार्य है।

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