वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारत का लोकतंत्र और जीवंत संविधान दुनिया के लिए मार्गदर्शक : ओम बिरला

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शनिवार को वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारत के लोकतंत्र और जीवंत संविधान को दुनिया के लिए मार्गदर्शक बताया। उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक प्रणाली हमारे विधायी तंत्र को आज भी प्रेरणा और मार्गदर्शन देती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक विकसित भारत बनाने के संकल्प को दोहराते हुए उन्होंने सभी राज्य विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारियों से आह्वान किया कि सदन की सकारात्मक और जनकेन्द्रित चर्चाओं से राष्ट्र विकास का संकल्प साकार करें। शनिवार को लोक सभा अध्यक्ष ने कर्नाटक विधानमंडल की मेज़बानी में आयोजित 11वां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए)-भारत क्षेत्र सम्मेलन के समापन समारोह में ये विचार व्यक्त किए।
सदनों में नियोजित गतिरोध पर चिंता व्यक्त करते हुए ओम बिरला ने सभी राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों के साथ व्यापक संवाद की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने मीडिया से भी आग्रह किया कि सदन में तथ्यपरक, सारगर्भित चर्चा करने वाले जनप्रतिनिधियों के दृष्टिकोण को प्रमुखता से दिखाए, ताकि सदस्यों के बीच स्वस्थ संवाद के लिए प्रतिस्पर्धा हो।
ओमबिरला ने कहा कि इन सम्मेलनों के माध्यम से हमारा प्रयास है कि आने वाले समय में विधानमंडल नियोजित गतिरोध के बिना कार्य कर सकें। उन्होंने सदन में कार्य व चर्चाओं की अवधि तथा सत्रों में बैठकों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया। इस बात पर जोर दिया कि सभी विधानमंडल अपनी कार्यवाही और चर्चा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मानक स्थापित करें। ओम बिरला ने कहा कि हमें युवाओं, महिलाओं और वंचित वर्गों को नेतृत्व के अवसर देने होंगे, जिससे संवाद समावेशी बने और समाज का हर वर्ग अपने विचार और अनुभव साझा कर सके।
लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है कि जनता यह महसूस करे कि विधानमण्डल उनकी आवाज़ का सशक्त मंच है, न कि केवल राजनीतिक टकराव का स्थान। वैचारिक या राजनैतिक मतभेदों के आधार पर सदन रोकने के स्थान पर हमारा संकल्प सदन चलाने का होना चाहिए।
पीठासीन अधिकारियों की भूमिका पर लोक सभा अध्यक्ष ने विचार व्यक्त किया कि हम सब जो पीठासीन हैं, हमारी भूमिका विशेष महत्व रखती है। हमारी निष्पक्षता, धैर्य और न्यायपूर्ण आचरण ही सदन की गरिमा को बनाए रखते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सदन में प्रत्येक सदस्य को अपनी बात रखने का अवसर मिले, सभी सदस्यों को नियमों की जानकारी हो और उन नियमों का पालन न्यायसंगत ढंग से हो, तथा व्यक्तिगत विचारों के बजाय संवैधानिक मूल्यों को वरीयता दी जाए।
लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि विज्ञान और तकनीक के समय में संसद और विधानसभाओं की भूमिका और भी व्यापक हो गई है। साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अधिकार और संवैधानिक सुधार जैसे विषय अब हमारी चर्चाओं के नए केंद्र बन रहे हैं। इन जटिल चुनौतियों के समाधान के लिए समिति आधारित विचार-विमर्श, विशेषज्ञों से संवाद और स्थानीय प्रतिनिधियों की भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन का विषय था – “विधायी संस्थाओं में संवाद और चर्चा-जन विश्वास का आधार, जन आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम।“
11वें सीपीए भारत क्षेत्र सम्मेलन में चार संकल्प अंगीकृत किए गए। इनमें लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए सदनों के अंदर गतिरोध और व्यवधान को समाप्त किए जाने, संसद के सहयोग से राज्यों की विधायी संस्थाओं की अनुसंधान एवं सन्दर्भ शाखाओं को मजबूत करने, विधायी संस्थाओं में डिजिटल टेक्नोलॉजी का अधिक से अधिक उपयोग सुनिश्चित करने तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर सर्वसम्मति से संकल्प शामिल है। इस सम्मेलन में 26 राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों से 45 पीठासीन अधिकारी शामिल हुए, जिनमें 22 विधानसभा अध्यक्ष, 16 उपाध्यक्ष, 4 सभापति और 3 उपसभापति थे।