हत्या के आरोपियों का जुलूस : पुलिस का सख्त संदेश दहशत का अंत अब सरेआम

कोटा{ गहरी खोज }: कोटा ग्रामीण के कनवास क्षेत्र में 18 मई को हुए संदीप शर्मा हत्याकांड के आरोपियों का गुरुवार को पुलिस ने सार्वजनिक जुलूस निकाला। आरोपी अतीक और दीपक को न केवल गिरफ्तार किया गया, बल्कि उन्हें भारी पुलिस सुरक्षा के बीच बाजारों में घुमाया गया। इसका उद्देश्य साफ था—इलाके में फैली दहशत को खत्म करना और यह दिखाना कि कानून का डर अब सरेआम दिखेगा।
चौंकाने वाली बात यह रही कि दोनों ही आरोपी घायल अवस्था में थे। उनके पैर फ्रैक्चर हैं। मुख्य आरोपी अतीक तो सड़क पर रेंगते हुए चला। लेकिन पुलिस ने इस दृश्य को जनता के सामने लाकर एक कड़ा संदेश देने की कोशिश की—कानून से बचना अब नामुमकिन है।
कोटा ग्रामीण एसपी सुजीत शंकर के मुताबिक, 18 मई को कनवास कस्बे के पास माधोपुर गांव के रहने वाले संदीप शर्मा उर्फ सालिगराम की नृशंस हत्या कर दी गई थी। संदीप पर चाकू और सरिए से हमला किया गया था। हत्या के इस मामले में अतीक और दीपक उर्फ दीपू नामक दो युवकों को आरोपी बनाया गया। पुलिस ने जांच के बाद बुधवार को दोनों की गिरफ्तारी की जानकारी सार्वजनिक की। अगले ही दिन आरोपियों को आम जनता के बीच ले जाकर जुलूस निकाला गया।
मृतक संदीप शर्मा का जीवन पूरी तरह तकनीक से जुड़ा हुआ था। वह सीसीटीवी कैमरा और कंप्यूटर रिपेयरिंग का काम करता था। 18 मई की दोपहर वह नरेंद्र सोनी के हीरो बाइक शोरूम पर उपकरण ठीक करने गया था। उसी दौरान उसकी निर्मम हत्या कर दी गई।
इस हत्या ने इलाके को झकझोर कर रख दिया। संदीप के पिता लालचंद ने कनवास थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी, जिसके बाद पुलिस ने तफ्तीश तेज की।
आरोपियों का यह सार्वजनिक जुलूस केवल गिरफ्तारी दिखाने की प्रक्रिया नहीं थी। इसका उद्देश्य था—आतंक का मुकाबला उसी अंदाज़ में करना, जिस अंदाज़ में वो फैलाया गया था। पुलिस चाहती थी कि इलाके में अतीक का जो नाम डर के साथ लिया जाता था, उसे खत्म किया जाए। इस तरह का कदम पुलिस की ‘पब्लिक शेमिंग’ नीति का हिस्सा भी माना जा सकता है, जिससे समाज में अपराधियों का मनोबल टूटे और आमजन को यह भरोसा मिले कि कानून उनके साथ खड़ा है।
हालांकि अपराधियों को इस तरह सरेआम घुमाना मानवाधिकारों की दृष्टि से सवालों के घेरे में आता है, लेकिन कुछ मामलों में पुलिस द्वारा यह कदम जनता के मन से डर निकालने के लिए उठाया जाता है। खासतौर पर तब, जब आरोपी लंबे समय तक इलाके में आतंक का प्रतीक बने रहे हों। कोटा के इस हत्याकांड ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि तकनीक से जुड़े सामान्य परिवारों के युवा भी आपसी रंजिश या पुरानी दुश्मनी का शिकार बन सकते हैं। लेकिन जो बात इस घटना को खास बनाती है, वह है—पुलिस की कार्रवाई की शैली।