सिर्फ शरीर ही नहीं दिमाग पर भी असर करता है कैंसर, मरीज में कम होने लगती है जीने की इच्छा

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लाइफस्टाइल डेस्क { गहरी खोज } : कैंसर बीमारी का पता चलते ही अधिकांश लोगों के इससे लड़ने के हौसले पस्त हो जाते हैं। हालांकि, चौथे चरण में भी इस बीमारी का इलाज संभव है, इसके बावजूद लोग शुरुआती दौर में इस बीमारी से हार मानने लगते हैं। एक शोध में सामने आया है कि कैंसर केवल शरीर के प्रभावित हिस्से पर ही कब्जा नहीं करता है बल्कि दिमाग पर भी कब्जा कर लेता है।

साइंस मैग्जीन में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि कैंसर दिमाग और तंत्रिका तंत्र को किस तरह से प्रभावित करता है। इसका पता लगाने के लिए चूहों पर शोध किया गया था। शोध में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। कैंसर की स्टेज जैसे आगे बढ़ती है वैसी ही यह बीमारी मरीज के दिमाग से खेलने लगती है। यह बीमारी मरीज के दिमाग से जीवन जीने की इच्छा और प्रेरणा को खत्म करती है, जिससे मरीज उपचार और पोषण के बावजूद कमजोर होता जाता है। इससे मरीज की हालत बिगड़ती जाती है।

दिमाग डिस्टर्ब करता है कैंसर
चूहों पर किए गए शोध में सामने आया कि कैंसर दिमाग के एक विशिष्ट हिस्से को अपने कब्जे में ले लेता है और तंत्रिका तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करता है। उन्नत तकनीक वाले कुछ उपकरणों का प्रयोग इस शोध में किया गया। यह उपकरण पूरे दिमाग का चित्रण कर सकते हैं और दिमाग में चल रही गतिविधि को पर सटीकता से नजर रख सकते हैं।

शोध में पाया गया कि कैंसर बढ़ने के साथ-साथ चूहों ने खाना प्राप्त करने के लिए प्रयास कम कर दिए। कठिनाई वाले कार्य पूरी तरह से बंद कर दिए। शोध में यह भी सामने आया कि तंत्रिका तंत्र के जरिए दिमाग में बनने वाले केमिकल डोपामाइन के स्तर को भी कम किया गया। यही केमिकल प्रेरणा का जनक होता है, जिससे व्यक्ति में इच्छाशक्ति जागती है।

चौथी स्टेज में होता है प्रभाव
शोध में बताया गया कि कैंसर की चौथी स्टेज में उपचार के दौरान मरीज जीने की आस छोड़ देता है। जबकि उपचार सही दिशा में चल रहा होता है। इसके साथ ही मरीज विरक्त होता जाता है और मृत्यु को स्वीकार कर लेता है। शुरु में इसे लंबी बीमारी के कारण होने वाली मानसिक स्थिति माना जा रहा था। लेकिन, शोध के बाद यह स्पष्ट हुआ कि कैंसर केवल शरीर पर ही नहीं बल्कि दिमाग पर भी कब्जा करता है और मरीज की जीने की इच्छा शक्ति को समाप्त करता है।

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