न्यायालय ने सैन्य प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए कैडेट की दुर्दशा पर केंद्र से जवाब मांगा

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय ने प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दौरान दिव्यांग होने के कारण चिकित्सा आधार पर सैन्य संस्थानों से बाहर कर दिए गए कैडेट्स की दुर्दशा पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सोमवार को इस मामले में केंद्र और रक्षा बलों से जवाब मांगा। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि केंद्र को विभिन्न सैन्य संस्थानों में कठोर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे कैडेट्स को मृत्यु या दिव्यांगता की किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए बीमा कवर प्रदान करने की संभावना तलाशनी चाहिए।पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि वे प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान दिव्यांगता का शिकार होने वाले कैडेट्स को चिकित्सा खर्चों को पूरा करने के लिए दी जाने वाली 40,000 रुपये की अनुग्रह राशि को बढ़ाने का निर्देश प्राप्त करें। शीर्ष अदालत ने केंद्र से इन दिव्यांग उम्मीदवारों के पुनर्वास के लिए एक योजना पर भी विचार करने को कहा, ताकि उनका इलाज पूरा होने के बाद उन्हें ‘डेस्क जॉब’ या रक्षा सेवाओं से संबंधित किसी अन्य कार्य में वापस लिया जा सके।
पीठ ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि बहादुर कैडेट सेना में रहें। हम नहीं चाहते कि चोट या दिव्यांगता इन कैडेट्स के लिए किसी भी तरह की बाधा बने, जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने के बाद प्रशिक्षण लेते हैं।’’ इस मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख चार सितंबर तय की गई है। शीर्ष अदालत ने एक मीडिया रिपोर्ट में उठाए गए इन कैडेट्स के मुद्दे पर 12 अगस्त को स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की थी। ये कैडेट कभी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) जैसे देश के शीर्ष सैन्य संस्थानों में प्रशिक्षण का हिस्सा थे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1985 से अब तक लगभग 500 अधिकारी कैडेट्स को प्रशिक्षण के दौरान हुई विभिन्न प्रकार की दिव्यांगता के कारण चिकित्सा आधार पर सैन्य संस्थानों से बाहर कर दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार अब ये लोग बढ़ते चिकित्सा बिलों का सामना कर रहे हैं और उन्हें दी जा रही मासिक अनुग्रह राशि बेहद कम है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले एनडीए में ही लगभग 20 ऐसे कैडेट हैं, जिन्हें 2021 से जुलाई 2025 के बीच केवल पांच वर्षों में चिकित्सा आधार पर सेवा से बाहर किया गया।
मीडिया रिपोर्ट में इन कैडेट्स की दुर्दशा पर और प्रकाश डाला गया है क्योंकि नियमों के अनुसार वे पूर्व सैनिकों (ईएसएम) का दर्जा पाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि उनकी दिव्यांगता अधिकारी के रूप में सेवा में आने से पहले प्रशिक्षण के दौरान हुई थीं। भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) के तहत सैन्य सुविधाओं और सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए पात्र होते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ईएसएम दर्जा पाने के हकदार इस श्रेणी के सैनिकों के विपरीत इन अधिकारी कैडेट्स को दिव्यांगता की प्रकृति के आधार पर 40,000 रुपये प्रति माह तक का अनुग्रह राशि का भुगतान मिलता है, जो उनकी बुनियादी जरूरतों को देखते हुए बहुत कम है।