डोनाल्ड ट्रंप का रवैया हैरान करने वाला- भारत को नए रास्ते पर जाना ही पड़ेगा!

संतोष कुमार पाठक
संपादकीय { गहरी खोज }: भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव फिलहाल कम होने का नाम नहीं ले रहा है। भारत की बहादुर सेना से बुरी तरह से मात खाने के बावजूद पाकिस्तान का बड़बोलापन जारी है। भारत जैसे ताकतवर देश के लिए पाकिस्तान कोई बड़ी चुनौती नहीं है लेकिन वह आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का अभिन्न अंग बना चुका है।
ऐसे में सब कुछ जानने और समझने के बावजूद दुनिया के कई देशों का विचित्र रवैया काफी हैरान करने वाला है। चीन के डर को तो समझा जा सकता है क्योंकि उसने भारत के एक बड़े भूभाग पर अवैध कब्जा किया हुआ है। चीन को हमेशा यह डर सताता रहता है कि ताकतवर भारत उससे अपनी भूमि वापस ले लेगा जिससे उसके मंसूबे धरे के धरे रह जाएंगे।
लेकिन दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया काफी हैरान करने वाला है। भारत के प्रधानमंत्री ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिका जाकर डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस बार डोनाल्ड ट्रंप की जीत में अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की बड़ी भूमिका रही है। भारत दुनिया का सबसे विशाल और प्राचीन लोकतांत्रिक देश है और इस नाते अमेरिका का हर नेता भारत के महत्व को अच्छी तरह से समझता है। विश्व शांति, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक व्यापार सहित शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा,जिसमें भारत ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका ना निभाई हो। वर्ष 1947 में आजाद होने के बाद से ही भारत की सभी सरकारों ने बातचीत,संवाद और शांति की हमेशा वकालत की। भारत के बिना आज किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संगठन की सफलता सुनिश्चित नहीं हो सकती लेकिन इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने बयानों और फैसलों से भारत के लिए लगातार असहज स्थिति पैदा कर रहे हैं।
चुनाव के बल पर अमेरिका में दूसरी बार राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप इस बात को बखूबी समझते हैं कि उनके हर बयान का असर भारत की घरेलू राजनीति पर पड़ता है। लेकिन इसके बावजूद वह लगातार, दुनियाभर में घूम-घूम कर यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने व्यापार रोकने की धमकी देकर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया था। भारत द्वारा इनकार करने के बावजूद ट्रंप चुप होने को तैयार नहीं है और हर बार उनका बयान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए असहज स्थिति पैदा करता हुआ नजर आता है। भारत में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी राजनीतिक दल डोनाल्ड ट्रंप के बयानों का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर सरेंडर करने का आरोप लगा रहे हैं। देश के 16 विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं ने एकजुट होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर, इन तमाम मसलों पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।
भारत की घरेलू राजनीति में मचे बवाल के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपने दावे को दोहरा रहे हैं और इससे यह बात साफ होती जा रही है कि वह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की साख का अपने फायदे के लिए दुरुपयोग करना चाहते हैं।
अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक ने तो खुलकर कह दिया है कि भारत द्वारा रूस से सैन्य साजो-सामान खरीदने और ब्रिक्स समूह ( जिसमें भारत के अलावा ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल है) में शामिल होने के कारण अमेरिका भारत से नाराज है। यहां यह बात याद रखने वाली है कि आजादी के बाद अमेरिका और सोवियत संघ रूस के नेतृत्व में बंटे दो ध्रुवीय विश्व में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखकर भारत के स्टैंड को साफ कर दिया था। लेकिन इस स्टैंड के बावजूद संकट के समय पर पहले सोवियत संघ रूस ने और बाद में रूस ने कई मौकों पर भारत का साथ दिया। जबकि अमेरिका ने ऐसे हर मौके पर पाकिस्तान का साथ दिया, उसे हथियार दिए, सैन्य साजो सामान दिए। यहां तक कि अमेरिका ने अपने फायदे के लिए पाकिस्तान को आतंकवादियों का गढ़ तक बनने दिया।
हर तरह से भारत के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला अमेरिका एक बार फिर से पाकिस्तान के साथ ही खड़ा होता हुआ नजर आ रहा है। भारत ने कई दशकों तक चले प्रयासों के कारण अपने आपको पाकिस्तान से कहीं ज्यादा आगे खड़ा कर दिया था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति और उनकी सरकार भारत और पाकिस्तान को फिर से एक ही तराजू के दो पलड़ो पर खड़ा करने की नापाक कोशिश कर रही है।
अमेरिका के इस रवैए से तस्वीर बिल्कुल साफ होती हुई नजर आ रही है कि भारत को अपनी लड़ाई अब खुद ही लड़नी होगी। पूरा विश्व तेजी से बदल रहा है। संकट के ऐसे काल में भारत को जहां एक तरफ अमेरिका सहित अन्य तमाम यूरोपीय देशों में रह रहे भारतीयों की ताकत और क्षमता का सदुपयोग करते हुए इन देशों के अंदर प्रभावशाली दबाव समूह के निर्माण के लिए काम करना चाहिए। तो वहीं दूसरी तरफ अपने विशाल बाजार की क्षमता का भी सही से उपयोग करते हुए तथाकथित बड़े देशों को स्पष्ट तौर पर आईना दिखा देना चाहिए कि भारत को धमकी और भारत के साथ व्यापार, दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं।