मासिक दुर्गाष्टमी कल, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत पारण के नियम

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धर्म { गहरी खोज } : हिन्दू धर्म में मासिक दुर्गाष्टमी का बहुत महत्व होता है। ये पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा और आराधना के लिए समर्पित होता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं। मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा से व्यक्ति को शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों पर विजय प्राप्त होती है। इस दिन व्रत रखने और पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है और पारिवारिक जीवन में शांति बनी रहती है। जो भक्त सच्चे मन से मां दुर्गा की आराधना करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

द्रिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 2 जून दिन सोमवार को रात 8 बजकर 34 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 3 जून दिन मंगलवार को रात 9 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत मंगलवार, 3 जून को ही रखा जाएगा और पारण अगले दिन 4 जून दिन बुधवार को किया जाएगा।

पूजा के लिए शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 03 बजकर 44 मिनट से 04 बजकर 26 मिनट तक
प्रातः सन्ध्या: सुबह 04 बजकर 05 मिनट से 05 बजकर 07 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 29 मिनट से दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02 बजकर 12 मिनट से 03 बजकर 07 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06 बजकर 43 मिनट से 07 बजकर 04 मिनट तक
सायाह्न सन्ध्या: शाम 06 बजकर 45 मिनट से 07 बजकर 47 मिनट तक
निशिता मुहूर्त: रात 11 बजकर 35 मिनट से 12 बजकर 17 मिनट तक (03 जून तक)
अमृत काल: रात 08 बजकर 23 मिनट से 10 बजकर 05 मिनट तक

मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा विधि

  1. मासिक दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर को साफ करें।
  2. हाथ में गंगाजल, चावल और फूल लेकर मां दुर्गा का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें। अपनी मनोकामना कहें।
  3. एक साफ चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि संभव हो तो एक कलश स्थापित करें।
  4. मां दुर्गा को लाल चुनरी, रोली, कुमकुम, अक्षत (साबुत चावल), लाल फूल (जैसे गुड़हल), माला, धूप, दीप और नैवेद्य (मिठाई, फल, लौंग-इलायची) अर्पित करें।
  5. यदि विवाहित महिला व्रत रख रही है, तो मां को सोलह श्रृंगार की सामग्री (जैसे चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी आदि) अर्पित करें।
  6. शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं और मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें। कुछ प्रमुख मंत्र हैं:- “ॐ दुं दुर्गायै नमः”, “सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।”
  7. दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भी अत्यंत शुभ होता है और मासिक दुर्गाष्टमी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। पूजा के अंत में मां दुर्गा की आरती करें।
  8. यदि संभव हो तो इस दिन 2 से 10 वर्ष तक की छोटी कन्याओं को भोजन कराएं (हलवा, चना, पूरी) और उन्हें दक्षिणा व लाल रंग के छोटे उपहार दें। कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।

व्रत पारण के नियम

मासिक दुर्गाष्टमी के व्रत का पारण अगले दिन, नवमी तिथि को सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण के दिन (4 जून 2025, बुधवार) सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मां दुर्गा की दोबारा पूजा करें और व्रत सफलतापूर्वक संपन्न होने के लिए उनका धन्यवाद करें। अष्टमी व्रत का पारण अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद नवमी तिथि में किया जाता है। यदि आप आज (3 जून को) व्रत कर रहे हैं, तो पारण का समय 4 जून 2025, बुधवार को सूर्योदय के बाद होगा। पारण में सबसे पहले सात्विक भोजन ग्रहण करें,। इसमें प्याज, लहसुन और तामसिक चीजों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। आप फल, दूध, दही, साबूदाना खिचड़ी या अपनी पसंद का कोई भी सात्विक भोजन कर सकते हैं। चावल का सेवन भी कर सकते हैं। पारण करने से पहले, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अपनी सामर्थ्य अनुसार भोजन, फल या दक्षिणा का दान अवश्य करें। मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी परेशानियां दूर करती हैं, साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण करती हैं।

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