बुद्ध पूर्णिमा की पूजा में पढ़ें ये कथा, हर कार्य में मिलेगी सफलता!

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धर्म { गहरी खोज } :पंचांग के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार हर साल वैशाख माह शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध से जुड़ी तीन अहम बातों के लिए जानी जाती है, जिसकी वजह यह दिन इतना खास माना जाता है। वो यह है कि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। साथ ही, बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति और उनका निर्वाण भी इसी दिन हुआ था। कहते हैं कि इस दिन जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक भगवान बुद्ध की पूजा करने के साथ गौतम बुद्ध की कथा पढ़ता है, तो उसे जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता हासिल होती है। इसके अलावा जीवन में चल रही परेशानियों से भी छुटकारा मिल सकता है, मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

बुद्ध पूर्णिमा की कथा
एक समय कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ बुद्धत्व की खोज में भटक रहे थे।एक बार तो उन्हें लगा कि सत्य और ज्ञान की खोज में उनका गृह त्यागना व्यर्थ गया उनकी हिम्मत टूटने लगी। धीरे-धीरे उनकी हिम्मत खत्म होने लगी। प्रयास करते करते एक समय ऐसा आया जब सिद्धार्थ को ऐसा लगने लगा कि सत्य और ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनका अपना घर छोड़ना व्यर्थ हो गया। मान्यताओं के अनुसार उस समय एक छोटी सी गिलहरी की एक सीख ने सिद्धार्थ को गौतम बुद्ध बनने में सहायता की।

ऐसा माना जाता है की जब सिद्धार्थ सत्य और ज्ञान प्राप्त करने में असफल हो गए, तब उनके मन में यह विचार आने लगा कि वह राजमहल वापस लौट जाएं। मन में ऐसा विचार आने के पश्चात वह अपने राज्य कपिलवस्तु जाने के लिए लौटने लगे। रास्ते में चलते चलते उन्हें बहुत प्यास लगी। उन्होंने एक झील को देखा और अपनी प्यास बुझाने के लिए वह उस झील के नजदीक गए।

झील के निकट जाकर के उन्होंने वहां पर एक गिलहरी को देखा। छोटी सी गिलहरी पानी पीने के लिए बार-बार झील में जाती और अपनी पूँछ को उस में डुबोकर वापस रेत पर झटक देती। यह देखकर सिद्धार्थ के मन में यह सवाल उत्पन्न हुआ कि यह नन्ही सी गिलहरी क्या कर रही है। उन्हें ऐसा लगा कि शायद वह गिलहरी झील को सुखाने की कोशिश कर रही है, पर इस तरह गिलहरी का प्रयास कभी भी सफल नहीं हो पाएगा।

तभी उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि गिलहरी उनसे कुछ कहने की कोशिश कर रही है। सिद्धार्थ को ऐसा लगा जैसे गिलहरी उनसे कह रही है कि यदि कोई व्यक्ति अपने मन में किसी कार्य को करने की ठान ली और उस पर अटल रहे तो वह कार्य सफल हो जाता है। बस हमें कभी भी प्रयास नहीं छोड़ना चाहिए। तब सिद्धार्थ को अपने मन की कमजोरी का एहसास हुआ। वह वहीं से वापस लौट कर तपस्या में लीन हो गए। लगातार कोशिश करने के पश्चात उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई।

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