चिंताजनक है आसुरी प्रवृत्तियां

0
new-project-2024-11-02t171705554_1730548033

संपादकीय { गहरी खोज }: भोपाल में कॉलेज की लड़कियों से दोस्ती करने के बाद उनसे दुष्कर्म फिर वीडियो बनाकर ब्रेक करने वाले समुदाय विशेष के युवकों की जो खबरें सामने आ रही हैं, वो इतनी भयानक है, कि सुनने वालों की रूह कांप जाए। इस दरिंदे से बचने के लिए जब पीडि़ता इंदौर आई तो यह दरिंदा वहां भी आ गया और न केवल पीडि़ता से मारपीट की बल्कि उससे दुष्कर्म भी किया। ध्यान रहे टीआईटी कॉलेज भोपाल के प्रकरण में पुलिस को आरोपित फरहान के मोबाइल नंबर से 10 से 12 लड़कियों के वीडियो मिले हैं।महिला पुलिस अधिकारियों ने कुछ छात्राओं से संपर्क कर उनकी काउंसलिंग की है और केस दर्ज करने को कहा है, इनमें से स्वाभाविक रूप से अधिकांश परिजन सामाजिक बदनामी का हवाला देकर आगे आने को तैयार नहीं है।इस बीच एक और लडक़ी शिकायत के लिए तैयार हुई है। संभावना है कि इस मामले में मुख्य आरोपी फरहान के खिलाफ छठी एफआईआर भी हो जाएगी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर गठित स्पेशल टास्क फोर्स ने अभी तक 12 लोगों को आरोपित बनाया है।दरअसल, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इस पूरे मामले को अत्यंत गंभीरता से लिया है और प्रकरण पर कड़ी कानूनी कार्रवाई प्रारंभ कर दी है। मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया और गृह विभाग के एक्शन से ऐसा लग रहा है कि इस मामले के लिए अलग से फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया जाएगा।बहरहाल
भोपाल में हाल ही में घटी इस लोम हर्षक घटना ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया है। युवती के साथ हुई यह हैवानियत सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि उस सामाजिक गिरावट का संकेत है, जिसे हम नजरअंदाज करते आ रहे हैं।जब हम किसी अपराध को “लव जिहाद” जैसे विशेषणों से जोड़ते हैं, तो असल मुद्दा—यानी महिलाओं की सुरक्षा, सामाजिक नैतिकता और न्याय प्रणाली—धुंधला पड़ जाता है।आज ज़रूरत है उन मानसिकताओं को पहचानने की जो औरत को वस्तु समझती हैं, जो प्रेम के नाम पर छल करती हैं, और जो समाज में विष घोलती हैं। ये प्रवृतियां किसी एक समुदाय या वर्ग तक सीमित नहीं हैं। वे हमारे घरों, गली-मोहल्लों, सोशल मीडिया और यहां तक कि कुछ शिक्षित तबकों में भी पल रही हैं।हमें ऐसे मामलों में कठोर कानून और तेज़ न्याय व्यवस्था की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि समाज आत्ममंथन करे।हमारे बच्चों को सम्मान, सहमति और संवेदना की शिक्षा मिले, नफरत और संकीर्णता की नहीं। अपराध को मजहबी चश्मे से देखना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह उन अपराधियों को ढाल भी देता है जो धर्म की आड़ में छिप जाते हैं।
हमारी आवाज़ पीडि़ता के पक्ष में होनी चाहिए, न कि किसी संप्रदाय के विरोध में। न्याय के लिए एकजुट होना चाहिए, न कि बंटने के लिए।
इसके अलावा हमें यह ध्यान रखना होगा कि अभिभावक अपनी बच्चियों से निरंतर संवाद रखें। संयुक्त कुटुंब व्यवस्था में बच्चों को संस्कार अपने आप मिल जाते थे,लेकिन जब से एकल परिवार का दौर चला है, ना बच्चों के पास माता-पिता से बात करने की फुर्सत है और ना अभिभावकों के पास ! जाहिर है ऐसे में बच्चियां सही गलत की पहचान नहीं कर पाती और आभासी दुनिया के दोस्तों को वास्तविक मित्र या हितैषी समझ बैठतीं हैं। जाहिर है समाज शास्त्रियों और सामाजिक धार्मिक संगठनों ने परिवारों के टूटने का जो सिलसिला चल रहा है उसे रोकने के उपायों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *