सुप्रीम कोर्ट ने शाही ईदगाह-कृष्ण जन्मभूमि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रखा बरकरार रखा

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का वह आदेश जिसमें हिन्दू पक्ष को अपनी शिकायत में संशोधन करने और शाही ईदगाह-कृष्ण जन्मभूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को पक्ष के रूप में जोड़ने की अनुमति दी गई थी, वह प्रथम दृष्टया सही है।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने मुस्लिम पक्ष द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
पीठ ने कार्यवाही के दौरान टिप्पणी की “एक बात स्पष्ट है। हिन्दू वादियों द्वारा मूल याचिका में संशोधन की अनुमति दी जानी चाहिए। हिंदू पक्षकारों ने अपने मूल मुकदमे में संशोधन की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें दावा किया गया था कि विवादित ढांचा एएसआई के तहत एक संरक्षित स्मारक है और इसलिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत संरक्षण लागू नहीं होगा।”
उन्होंने तर्क दिया कि संरचना मस्जिद के रूप में जारी नहीं रह सकती। उन्होंने एएसआई को मुकदमे में एक पक्ष बनाने की भी मांग की, जिसे उच्च न्यायालय ने मार्च 2024 में अनुमति दी।
इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने इस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। इससे पहले, 04 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने इस अपील पर हिन्दू पक्ष को नोटिस जारी किया था। जब आज मामले की सुनवाई हुई तो न्यायालय ने पाया कि मुस्लिम पक्ष की दलील ‘गलत तरीके से पेश की गई’ प्रतीत होती है। पीठ ने टिप्पणी की “ यह दलील बिल्कुल गलत है। उच्च न्यायालय को मुकदमे में पक्षकारों को जोड़ने के लिए संशोधन की अनुमति देनी चाहिए थी।”
न्यायालय ने हालांकि मुस्लिम पक्ष को अपना लिखित बयान दाखिल करने के लिए समय दिया और आगे की सुनवाई स्थगित कर दी।
उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी दलील में, हिन्दू पक्ष ने दावा किया कि संयुक्त प्रांत के उपराज्यपाल द्वारा जारी 1920 की अधिसूचना ने प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम की धारा 3 के तहत संरचना को संरक्षित स्मारक घोषित किया था।
उन्होंने तर्क दिया कि इस ऐतिहासिक स्थिति के कारण पूजा स्थल अधिनियम 1991 जो 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति की रक्षा करता है, लागू नहीं होगा।
मुस्लिम पक्ष ने संशोधनों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि हिन्दू वादी नए दावे पेश करके पूजा स्थल अधिनियम द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने तर्क दिया, “ प्रस्तावित संशोधनों से पता चलता है कि वादी प्रतिवादी द्वारा उठाए गए बचाव को नकारने का प्रयास कर रहे हैं कि मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित है।”
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 05 मार्च को संशोधन को अनुमति दे दी तथा एएसआई को भी पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील की गई।
मूल विवाद हिन्दू पक्ष द्वारा दायर एक दीवानी मुकदमे से जुड़ा है जिसमें दावा किया गया था कि शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि भूमि पर बनाई गई थी। यह मुकदमा भगवान श्री कृष्ण विराजमान और कुछ हिन्दू भक्तों की ओर से मस्जिद को हटाने की मांग को लेकर दायर किया गया था। शुरू में, दीवानी अदालत ने पूजा स्थल अधिनियम के तहत प्रतिबंध का हवाला देते हुए सितंबर 2020 में मुकदमा खारिज कर दिया था। हालांकि, मथुरा जिला न्यायालय ने मई 2022 में इस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया कि मुकदमा विचारणीय है। इसके बाद मामले को 2023 में उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
इस बीच शीर्ष अदालत संबंधित आदेशों के खिलाफ अपील पर भी विचार कर रहा है जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का 18 संबंधित मुकदमों को एकीकृत करने और उन्हें उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का निर्णय भी शामिल है।
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल दिसंबर में देश भर की अदालतों को निर्देश दिया था कि वे मौजूदा संरचनाओं के धार्मिक चरित्र को लेकर विवाद करने वाले मुकदमों में तब तक कोई प्रभावी आदेश या सर्वेक्षण पारित न करें, जब तक कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की वैधता पर निर्णय न हो जाए।

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