पंजाब में शिक्षा का अधिकार कानून का उल्लंघन, गरीब छात्रों को निजी स्कूलों में प्रवेश से वंचित

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चंडीगढ़{ गहरी खोज } : पंजाब में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई) का स्पष्ट उल्लंघन हो रहा है। उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, राज्य सरकार और निजी स्कूल गरीब और कमजोर वर्ग के छात्रों को 25% अनिवार्य प्रवेश नहीं दे रहे हैं। इस लापरवाही के चलते 2010 से 2025 तक लगभग 10 लाख गरीब बच्चे निजी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रह गए हैं। आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार, सभी निजी स्कूलों को प्री-नर्सरी से आठवीं कक्षा तक गरीब और वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए 25% सीटें आरक्षित करनी थीं। हालांकि, पंजाब सरकार द्वारा 2011 में बनाए गए पंजाब आरटीई नियमों के असंवैधानिक नियम 7(4) के कारण यह कानून राज्य में प्रभावी रूप से लागू नहीं हो सका।
इस मामले में संज्ञान लेते हुए, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 18 जनवरी 2024 को दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 19 फरवरी 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। न्यायालय ने पंजाब सरकार के नियम 7(4) को रद्द करते हुए इसे आरटीई अधिनियम की भावना और उद्देश्य के विपरीत बताया।
उच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार को सत्र 2025-26 के लिए निजी स्कूलों में 25% नामांकन सुनिश्चित करने का स्पष्ट आदेश दिया था। इसके अनुपालन में, पंजाब मंत्रिमंडल ने नियम 7(4) को निरस्त कर दिया और सरकार ने 21 मार्च 2025 को शिक्षा विभाग के अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किए। इसके बाद, 24 मार्च 2025 को प्राथमिक शिक्षा विभाग ने सभी निजी स्कूलों को उच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करने के निर्देश दिए। हालांकि, जमीनी स्तर पर स्थिति निराशाजनक बनी हुई है।
निजी स्कूल अभी भी गरीब छात्रों को प्रवेश देने में आनाकानी कर रहे हैं, और जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक) भी इस प्रक्रिया को लागू कराने में सक्रिय भूमिका नहीं निभा रहे हैं। प्रवेश में आ रही बाधाओं के कई कारण हैं। पंजाब सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार निजी स्कूलों में दाखिले के बारे में आम जनता को पर्याप्त जानकारी नहीं दी है। अभिभावकों के पास उन निजी स्कूलों की कोई सूची उपलब्ध नहीं है जहां वे अपने बच्चों का दाखिला करा सकें।

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