‘द ताज स्टोरी’ में परेश रावल की अदाकारी और डायरेक्टर की हिम्मत ने जीता दिल

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मुंबई{ गहरी खोज }: विश्व के सात अजूबों में शामिल ताजमहल हमेशा से रहस्यों, श्रद्धा और विवादों का प्रतीक रहा है। क्या यह वाकई एक मकबरा है? क्या यह मुगल शासक की प्रेमाभिव्यक्ति का प्रतीक है या फिर किसी प्राचीन मंदिर की भूमि पर निर्मित स्मारक? इन्हीं पेचीदा सवालों को लेखक-निर्देशक तुषार अमरीश गोयल अपनी फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ में उठाते हैं। फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ होते ही विवादों का सिलसिला शुरू हो गया था और अब 31 अक्टूबर 2025 को इसके सिनेमाघरों में आने के बाद चर्चाओं की आंधी और तेज़ हो गई है।
‘द ताज स्टोरी’ एक कोर्टरूम ड्रामा है, जो ताजमहल के 22 सीलबंद कमरों के रहस्य को केंद्र में रखती है। फिल्म में परेश रावल एक टूरिस्ट गाइड के किरदार में हैं, जो ताजमहल की असली उत्पत्ति पर सवाल उठाते हैं और न्याय की गुहार लगाते हैं। अदालत के भीतर इतिहास, आस्था और तर्क की जंग छिड़ जाती है। फिल्म का हर संवाद दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है, क्या हम जो जानते हैं, वही सच है? या सदियों पुरानी दीवारों के पीछे कोई और कहानी दबी हुई है?
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं परेश रावल। उन्होंने जिस आत्मविश्वास और भावनात्मक गहराई से किरदार निभाया है, वह उन्हें इस साल के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं की दौड़ में खड़ा कर देता है। फिल्म के हर दृश्य में उनका नियंत्रण और अभिव्यक्ति इतनी सटीक है कि दर्शक उनकी आंखों में झांकते हुए खुद को अदालत के दर्शकदीर्घा में महसूस करता है।
फिल्म में ज़ाकिर हुसैन, अमृता खानविलकर, नमित दास और स्नेहा वाघ के प्रदर्शन कहानी को मजबूती देते हैं। वहीं अखिलेन्द्र मिश्र, बृजेन्द्र काला, शिशिर शर्मा और अनिल जॉर्ज जैसे कलाकारों ने अपने किरदारों में जीव डाल दिया है। कोई भी भूमिका अधूरी नहीं लगती, जो निर्देशक के सटीक कास्टिंग सेंस की गवाही देती है।
तुषार अमरीश गोयल ने विवादास्पद विषय को संभालने में अद्भुत संयम और हिम्मत दिखाई है। फिल्म में उन्होंने तर्क और संवेदना के बीच संतुलन बनाए रखा है। कोर्टरूम के दृश्य न तो अतिनाटकीय हैं, न ही सपाट, हर बहस, हर आपत्ति, हर साक्ष्य दर्शक को अपनी सीट से जोड़े रखता है। कहानी कहने की उनकी शैली फिल्म को तेज़ गति और विचारशीलता दोनों प्रदान करती है।
फिल्म तकनीकी रूप से बेहद सशक्त है। सिनेमैटोग्राफी ताजमहल की भव्यता और रहस्य को लाजवाब तरीके से कैद करती है। प्रोडक्शन डिज़ाइन शानदार है, हर फ्रेम एक पेंटिंग जैसा दिखता है। लाइटिंग और साउंड डिजाइन फिल्म की गंभीरता और जिज्ञासा को और गहराई देते हैं। बैकग्राउंड स्कोर अदालत के तनाव और ताज की रहस्यमयी चुप्पी को खूबसूरती से जोड़ता है।
‘द ताज स्टोरी’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि इतिहास, आस्था और सवालों के बीच झूलती एक सिनेमाई बहस है। यह फिल्म आपको सोचने, सवाल उठाने और शायद अपने उत्तर खुद खोजने पर मजबूर करती है। तुषार गोयल का निर्देशन और परेश रावल का प्रदर्शन मिलकर इसे एक गंभीर, भावनात्मक और विचारोत्तेजक अनुभव बनाते हैं। अगर आपको सिनेमा में सवालों से भरी कहानियां, दमदार अभिनय और सच्चाई की खोज पसंद है, तो ‘द ताज स्टोरी’ वह फिल्म है जिसे आपको पहली फुर्सत में देखना चाहिए।

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