केरल के गुरुवायूर मंदिर में ‘उदयास्थमना पूजा’ परंपरा के अनुसार ही होगी सम्पन्न: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि केरल के गुरुवायूर श्रीकृष्ण मंदिर में ‘एकादशी’ के अवसर पर होने वाली ‘उदयास्थमना पूजा’ आगामी 1 दिसंबर को परंपरागत तरीके से ही आयोजित की जाएगी और इसमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा। गुरुवायूर एकादशी के दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक लगातार चलने वाली इस विशेष पूजा में 18 पूजा अनुष्ठान, होम, अभिषेक और अन्य धार्मिक क्रियाएं शामिल होती हैं।
न्यायमूर्ति जे. के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि यह पूजा 1972 से निरंतर की जा रही है। शीर्ष अदालत ने संबंधित पक्षों को याचिका पर दलीलें और दस्तावेजी कार्यवाही पूरी करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई मार्च 2026 में तय की।
पिछले वर्ष शीर्ष अदालत ने भीड़ प्रबंधन को कारण बताते हुए इस पूजा को न करने के देवस्वोम प्रशासन के निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई थी और सवाल किया था कि परंपरागत प्रथा को बदलने का अधिकार उन्हें कैसे मिला।
अदालत ने ‘तंत्री’ (मुख्य पुजारी) से भी प्रश्न किया था कि उन्होंने इस बदलाव के लिए सहमति कैसे दी, जबकि उन्हीं के द्वारा 1996 में एक लेख में यह स्वीकार किया गया था कि गुरुवायूर मंदिर की पूजा-पद्धति आदि शंकराचार्य द्वारा निर्धारित की गई है और उसमें किसी भी प्रकार का विचलन स्वीकार्य नहीं है। उदयास्थमना पूजा का अर्थ है—सूर्योदय (उदय) से सूर्यास्त (अस्थमन) तक निरंतर की जाने वाली पूजा। मंदिर प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन और अधिक श्रद्धालुओं को दर्शन का समय देने की दिक्कत का हवाला देते हुए एकादशी के दिन इस पूजा को आयोजित न करने का निर्णय लिया था।
शीर्ष अदालत पी.सी. हैरी और अन्य परंपरागत पुजारियों के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि एकादशी मंदिर का सबसे प्रमुख उत्सव है और यह पूजा 1972 से ही नहीं, बल्कि इससे पहले भी लगातार होती आई है। उनका कहना था कि आदि शंकराचार्य द्वारा निर्धारित पूजा-पद्धति में कोई भी व्यवधान या बदलाव “दैविक ऊर्जा” या “चैतन्य” पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

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