प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तान को खरी-खरी

संपादकीय { गहरी खोज }: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दो दिवसीय गुजरात के दौरे के पहले दिन एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान का एकमात्र लक्ष्य भारत के प्रति नफरत को बढ़ावा देना और नुकसान पहुंचाना है। जबकि, भारत गरीबी उन्मूलन और आर्थिक प्रगति के पथ पर दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है। मोदी ने कहा कि यह महज सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि भारत के लोकाचार और भावनाओं की अभिव्यक्ति थी। मोदी ने कहा कि पाकिस्तान के लोगों को यह समझना चाहिए कि उनकी सरकार और सेना अपने फायदे के लिए आतंकवाद का समर्थन कर रही है। मोदी ने जोर देकर कहा कि भारत जहां पर्यटन में विश्वास रखता है, वहीं पाकिस्तान आतंकवाद को पर्यटन मानता है। मैं पाकिस्तान के लोगों से पूछना चाहता हूं-उन्होंने क्या हासिल किया है? आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन आपकी स्थिति क्या है? आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों ने आपका भविष्य बर्बाद कर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद आपकी (पाकिस्तान) सरकार और सेना के लिए पैसा कमाने का एक जरिया है। पाकिस्तान के लोगों को आतंकवाद को खत्म करने के लिए आगे आना चाहिए। सुख-चैन की जिंदगी जियो, रोटी खाओ, वरना मेरी गोली तो है ही। पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस तरह के आतंकी हमले के बाद भारत और मोदी कैसे चुप बैठ सकते हैं? जो कोई भी हमारी बहनों का सिंदूर मिटाने की हिमाकत करेगा, उसका निश्चित ही सफाया कर दिया जाएगा।
गौरतलब है कि पाकिस्तान को हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से अरबों रुपए का ऋण मिला है, जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया था। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की बैठक में अनुपस्थित रहकर अपनी नाराजगी जताई थी। पाकिस्तान की आर्थिक हालत से संबंधित तथ्य इस प्रकार है। पाकिस्तान पर 2024 में 130 अरब डॉलर से अधिक बाहरी कर्ज था जिनमें 22 प्रतिशत चीन से आया था जो इसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत मिले थे। पाकिस्तान की कमजोर माली हालत इसके लिए कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान 1958 से ही आईएमएफ से कर्ज लेता रहा है। 1947 में भारत से अलग होने के बाद उसने पहली बार 1958 में आईएमएफ से कर्ज लिया था। 1965 और 1971 में भारत के साथ युद्ध होने के बाद पाकिस्तान की हालत और कमजोर हो गई और बाहरी आर्थिक मदद पर इसकी निर्भरता बढ़ती चली गई। 1980 के दशक से लेकर 2000 के दशक में वहां की एक के बाद एक सरकार (लोकतांत्रिक एवं फौजी हुकुमत) ने ढांचागत समायोजन कार्यक्रमों के लिए समझौते किए। इन समझौतों की मुख्य शर्तों में उदारीकरण और व्यय कम करने के उपाय शामिल थे। हालांकि, कमजोर संस्थान और भ्रष्टाचारों के कारण इन समझौतों के अधिक लाभ नहीं मिल पाए। वर्ष 2007 तक पाकिस्तान पर बाहरी कर्ज बढ़कर 43 अरब डॉलर तक पहुंच गया और सितंबर 2001 में अमेरिका पर आतंकवादी हमलों के बाद उत्पन्न हालात में उधारी पर उसकी निर्भरता बढ़ती गई। 2008-10 के दौरान पाकिस्तान को क्रमशः 2.07 अरब, 2.10 अरब और 1.06 अरब एसडीआर मिले। कोविड महामारी के दौरान भी यह बाहर से कर्ज लेता रहा। 2019 में उसे 1.04 एसडीआर, 2020 में 1.02 अरब एसडीआर और 2022 में 1.64 एसडीआर मिले। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो यह एक ऐसे कुचक्र की तरफ इशारा करता है जिसमें कर्ज मिलने के बाद व्यय बढ़ने लगा और आर्थिक वृद्धि कमजोर होने लगी। सामान्य सरकारी कर्ज जीडीपी का लगभग 75 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचने और सुधारों की गुंजाइश अधिक नहीं होने से पाकिस्तान में आर्थिक ठहराव लंबे समय तक जारी रहने का खतरा बढ़ गया है। सरकारी तंत्र, नियामकीय एवं औद्योगिक ढांचे में सुधार के बिना पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति में सुधार संभव नहीं दिख रहा है।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि अपनी नकारात्मक नीतियों के कारण ही पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खस्ता हाल में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाक की अवाम को पाकिस्तान सरकार की नकारात्मक नीतियों प्रति सजग रहने को कहा है। वहीं पाकिस्तान सरकार को भी स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अगर चैन से नहीं बैठोगे, आतंकियों को समर्थन व संरक्षण देते रहेंगे तो फिर गोली खाने को भी तैयार रहो।