गुस्सा तो नक्सलियों के प्रति होना चाहिए

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CG-Bijapur-Naxal-Encounter

सुनील दास

संपादकीय { गहरी खोज }: आम तौर पर माना जाता है कि जो बुरा करता है स्वाभाविक रूप से सारा गुस्सा उसके प्रति होता है। यह गुस्सा उन लोगों में होता है जिनके साथ बुरा किया गया होता है। समाज में भी गुस्सा उसी के प्रति ज्यादा होता है जिसने बुरा किया होता है। यह गुस्सा इसलिए होता है कि उसने बहुत बुरा किया है। यह गुस्सा इतना होता है कि जिसके साथ बुरा किया गया है वह तो चाहता है कि जिसने बुरा किया गया है, उसका समूल नाश हो जाए या वह उसका समूल नाश कर दे।नक्सलियों ने झीरम कांड कर कांग्रेस नेताओं की हत्या की, बुरा किया तो कांग्रेस नेताओं में नक्सलियों के प्रति गुस्सा होना चाहिए पर १२ साल बाद भी नहीं है।
कांग्रेस ने रमन सिंह के समय घोर नक्सल इलाके में परिवर्तन यात्रा निकालने का फैसला किया था।यह दौर ऐसा था जब बस्तर में नक्सलियों की सामानांतर सत्ता हुआ करती थी, एक बड़े इलाके में वही होता था जो नक्सली चाहते थे। वह जब चाहे,जिसे चाहे, जैसे चाहे किसी को भी मार सकते थे। यह जानते हुए भी कांग्रेस ने घोर नक्सल इलाके से परिवर्तन यात्रा निकालने का फैसला किया तो यही कहा जा सकता है कि जोखिम तो कांग्रेस ने लिया था। यह जानते हुए भी कि कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा भी परिवर्तन यात्रा में शामिल होंगे और उनसे नाराज नक्सली उन पर मौका देखकर हमला कर सकते हैं। नक्सलियों के हमले का जोखिम तो था। यह बात रमन सरकार भी जानती थी और कांग्रेस नेता भी।
परिवर्तन यात्रा के दौरान झीरम घाटी में नक्सलियों ने जो किया बहुत बुरा किया। इसके लिए नक्सलियों की जितनी निंंदा की जाए कम है। झीरम घाटी में नक्सलियों ने बडी़ संख्या में कांग्रेस नेताओं की बेरहमी से हत्या कर दी। उनकी बेरहमी से ही साफ हो जाता है कि नक्सलियों में कांग्रेस व कांग्रेस नेताओं को लेकर बहुत गुस्सा था और उसी गुस्से के कारण उनको मौका मिला तो झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं की हत्या कर दी।कांग्रेस नेताओं में अपने नेताओं की हत्या को लेकर बहुत गुस्सा तो नक्सलियों के प्रति होना चाहिए। उनको को कामना करनी चाहिए थी कि बस्तर से नक्सलियों का सफाया हो जाए।
हैरानी की बात है कि झीरम हत्याकांड के १२ साल बाद भी कांग्रेस नेताओं के मन में नक्सलियों के प्रति बहुत गुस्सा नहीं है। उनके बयानों से तो कहीं नहीं लगता है कि उनके नेताओं की हत्या के लिए कांग्रेस नेताओं के मन बहुत गुस्सा है। इतना गुस्सा होता तो वह नक्सलियों के मारे जाने पर खुशी मनाते।हैरानी इस बात की है कि कांग्रेस नेताओं के मन में नक्सलियों से ज्यादा गुस्सा १२ साल बाद भी रमन सरकार व भाजपा के प्रति है। उसके बयानों से ऐसा लगता है कि अपने नेताओं के नक्सलियों के हाथों मारे जाने के लिए वह रमन सरकार को दोषी मानती है। रमन सरकार से चूक हो सकती है। हो सकता है कि रमन सरकार जितनी सुरक्षा देना चाहती हो, वह ठीक समय पर नहीं दे पाई, वह जितना कांग्रेस नेताओं की सुरक्षा के लिए कर सकती थी, की है।उसे भी पता कहां था कि कांग्रेस नेताओं के काफिले पर नक्सली हमला करने वाले हैं।
न कांग्रेस को पता था न सरकार को पता था कि नक्सली हमला करने वाले हैं। नक्सलियों ने तो मौके का फायदा उठाया। इस घटना को १२ साल हो गए हैं। हर साल झीरम हमले की बरसी पर कांग्रेस नेता शहीद नेताओं को श्रध्दाजलि देते हैं और रमन सरकार को कोसते हैं।नक्सलियों को कोई बुरा नहीं कहता है। घटना के बाद भूपेश बघेल झीरम कांड पर अक्सर कहा करते थे कि सबूत तो उनकी जेब मे है लेकिन पांच साल उनकी भी सरकार रही लेकिन वह झीरम मामले की जांच के मामले में कुछ नहीं कर सके। पांच साल का समय किसी घटना की जांच के लिए कम नहीं होता है।लेकिन भूपेश बघेल यही शिकायत करते रहे कि केंद्र सरकार ने हमे जांच नहीं करने दी। पांच साल हमने प्रयास किया मामले को सुप्रीम कोट ले गए लेकिन सुप्रीम कोर्ट से जब फैसला आया तो हमारी सरकार बदल गई थी।
पांच साल सरकार में रहने के बाद भूपेश बघेल इस बात का दुख तो जताते हैं कि वह झीरम कांड की जांच नहीं करा सके लेकिन वह कांग्रेस नेताओं की हत्या करने वाले नक्सलियों के प्रति आज भी गुस्सा नहीं जताते हैं।चरण दास महंत भी नक्सलियों के प्रति गुस्सा जताने के बजाय यही कहना ज्यादा पसंद करते हैं कि झीरम नरसंहार भाजपा के लिए उसकी तत्कालीन सरकार की चूक मात्र हो सकती है तथा उनकी सरकार द्वारा किया गया षड्यंत्र मात्र हो सकता है। भूपेश बघेल व कांग्रेस नेताओं में सबसे ज्यादा गुस्सा नक्सलियों के प्रति होना चाहिए था और पांच साल उनकी सरकार थी कि उनके पास मौका था नक्सलियों से बदला लेने का।
भूपेश सरकार के पास मौका था बस्तर से नक्सलियों का सफाया कर देने का लेकिन पांच साल में उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनके पास नक्सलियों से बदला लेने के लिए पांच साल का समय था अगर वह नक्सलियों से बदला लेने तो हर साल सौ नक्सलियों को मार कर पांच साल में पांच सौ नक्सलियो को मारकर अपना बदला ले सकते थे। उन्होंने ऐसा करने की जगह हर साल झीरम कांड के लिए भाजपा का कोसने का फैसला किया है और हर साल २५ मई को वह भाजपा को कोसती है। उसकी चूक के कारण हमारे नेता मारे गए। कायदे से जो काम कांग्रेस को अपने पांच साल के दौरान करना चाहिए वह काम भाजपा अपने दूसरे दौर में कर रही है और बहुत अच्छे से कर रही है।
उसने दिन भी तय कर रखा है कि ३१ मार्च २६ तक नक्सलियों का बस्तर से सफाया कर दिया जाएगा। नक्सली व आतंकवादी मानवता के दुश्मन हैं, वह बेगुनाह लोगों की ह्त्या करते हैं तो सरकार किसी भी दल की हो उसका खून खौलना चाहिए। जैसे मोदी सरकार का खून पहलगाम की घटना पर खौला और उसने पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के ठिकानों को नष्ट कर दिया। उसी तरह साय सरकार भी नक्सलियों के बड़े ठिकानों पर हमला कर नष्ट कर रही है उसके बसव राजू जैसे बड़े नेताओं को मारकर छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के हाथों मारे बेगुनाह लोगों व कांग्रेस नेताओं का बदला ले रही है।
राहुल गांधी पीएम मोदी का मजाक उडाते हुए कहते हैं कि आपका खून कैमरे के सामने ही क्यों खौलता है। जनता को मालूम है कि मोदी का खून कम से कम खौलता तो है और वह आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई भी करते हैं लेकिन जनता यह भी देख रही है कि १२ साल हो गए काग्रेस नेताओं की हत्या को लेकिन नक्सलियों के खिलाफ कांग्रेस के किसी नेता का खून कैमरे के सामने भी नहीं खौलता है। नक्सलियों के सबसे बड़े नेता बसव राजू के मारे जाने पर कांग्रेस अध्यक्ष मलिल्कार्जुन खरगे कहते हैं कि आपरेशन ब्लैक फारेस्ट बसव राजू व अन्य माओवादियों की हत्या एक सुनियोजित नरसंहार है। कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी कहते हैं कि यह मुठभेड़ आदिवासियों के खिलाफ एक क्रूर हमला है,जिन्हें माओवादी बताकर मारा गया है।

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