निशाने पर थे हिन्दू : रिपोर्ट

संपादकीय { गहरी खोज }: पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद में पिछले महीने भड़की हिंसा में जहां दंगाइयों ने हरगोविंद दास और उसके बेटे चंदन दास की हत्या कर दी थी उसी की जांच के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भड़की हिंसा में राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का एक नेता शामिल था। हिंसा के दौरान हिंदुओं को निशाना बनाया गया और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। कलकत्ता हाईकोर्ट की न्यायाधीश सौमेन सेन और राजाबसु चौधरी की खंडपीठ के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। बताया गया है कि मुख्य हमला शुक्रवार, 11 अप्रैल को दोपहर 2:30 बजे के बाद हुआ, जिसका नेतृत्व स्थानीय पार्षद महबूब आलम कर रहा था। उसके साथ हजारों की संख्या में लोग थे। बेदवना गांव में 113 घरों को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया गया, जो बिना मरम्मत के रहने लायक नहीं रह गए हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण और न्यायिक सेवा के सदस्यों वाली समिति ने रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि हिंसा का निशाना हिंदू समुदाय था। बेदवना गांव में तृणमूल विधायक अमीरुल इस्लाम भी आए और देखा कि किन घरों पर हमला नहीं हुआ है और फिर हमलावरों ने उन घरों में आग लगा दी। यह सब विधायक के सामने हुआ, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया और मौके से चले गए। पीड़ितों ने मदद के लिए पुलिस को फोन किया, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। जांच समिति ने कहा है कि हिंसा के दौरान हमलावरों ने जमकर उत्पात मचाया। किराना, हार्डवेयर, बिजली और कपड़े की दुकानों के साथ ही मंदिरों में भी तोड़फोड़ की गई। यह सब पुलिस थाने के 300 मीटर के दायरे में ही हुआ। अकेले घोषपाड़ा इलाके में ही 20 दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया। समिति ने यह रिपोर्ट प्रभावित गांवों का दौरा करने और पीड़ितों से बातचीत करने के बाद तैयार की है। रिपोर्ट के अनुसार, इलाके में बड़े पैमाने पर आगजनी, लूटपाट हुई और दुकानों व मॉल को नष्ट किया गया। हमलावर शमशेरगंज, हिजालताला, शिउलिताला, डिनरी के ही रहने वाले थे और अपना चेहरा ढंककर आए थे। हमलावरों ने पानी के कनेक्शन भी काट दिए, ताकि आग बुझाई न जा सके। हमले से गांव की महिलाओं में दहशत व्याप्त हो गई थी और उन्होंने दूसरी जगहों पर अपने रिश्तेदारों के यहां शरण ली। गौरतलब है कि ममता सरकार ने भी अपनी तरफ से उच्च न्यायालय को रिपोर्ट दी और दावा किया कि पुलिस व जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद ही स्थिति नियंत्रण में आई थी। सरकार द्वारा दी रिपोर्ट में कहा गया है कि वक्फ संशोधन अधिनियम के विरुद्ध 4 अप्रैल से ही मुर्शिदाबाद में प्रदर्शन शुरू हो गए थे। दोनों तरफ की रिपोर्टों को मद्देनजर रखते हुए उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि समिति ने रिपोर्ट में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के पीड़ितों को पुनर्वास पैकेज देने की जरूरत बताई है। इसका मूल्यांकन करने के लिए विशेषज्ञों की सेवाएं लेने की सलाह भी दी है। यह भी कहा कि नागरिकों के एक वर्ग को सुरक्षा देने में नाकाम रही राज्य सरकार की ओर से अपनी विफलता की भरपाई करने का यही एकमात्र उपाय है।
बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ जो हो रहा है उसको समझा जा सकता है, क्योंकि एक मुस्लिम देश में हिन्दुओं पर जुल्म करना कोई नई बात नहीं है। सदियों से यह सिलसिला चला आ रहा है। लेकिन भारत जैसे देश जहां लोकतांत्रिक व्यवस्था है और एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हिन्दू बहुमत में है, फिर भी हिन्दुओं को निशाना बनाया गया। यह अपने आप में चिंता का विषय है। विश्वभर में ढिंढोरा यह पीटा जा रहा है कि भारत में अल्पमत समुदाय विशेषतया मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है जबकि स्थिति ठीक इसके विपरीत है। भारत में जिस गली, मौहल्ले या राज्य में मुस्लिम बहुमत में है वहां हिन्दुओं का जान-माल खतरे में रहता है। बढ़ते दबाव के कारण धीरे-धीरे हिन्दू उस इलाके से पलायन कर जाते हैं।
कलकत्ता उच्च न्यायालय में दी गई समिति की रिपोर्ट भी यही दर्शाती है कि भीड़ ने हिन्दुओं को निशाना बनाते हुए उनके घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की और जलाया। उच्च न्यायालय की पीठ का कहना है कि पं. बंगाल सरकार अब पीड़ितों के नुकसान की भरपाई कर अपनी असफलता पर पर्दा डाल सकती है। प्रश्न यह है कि अगर भारत में भी हिन्दू सुरक्षित नहीं तो फिर विश्व में कहीं भी नहीं। यह स्थिति हिन्दू समाज व केंद्र सरकार दोनों के लिए अति चिंता का विषय है।