अदालतें व्यावसायिक गतिविधियों के पीड़ित जानवरों के पक्ष में रहेंगी: उच्चतम न्यायालय

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }:: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अदालतें हमेशा जानवरों के पक्ष में रहेंगी, क्योंकि जब मनुष्य और व्यावसायिक गतिविधियां उनके प्रवास मार्गों को अवरुद्ध करती हैं, तो वे चुपचाप पीड़ा झेलते हैं। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति विपुल मनुभाई पंचोली की पीठ ने नीलगिरी के होटल और रिजॉर्ट मालिकों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित कर दी और कहा कि इस मुद्दे पर विस्तृत विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा, “आप सभी वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए यहां हैं और आपके निर्माण हाथियों के गलियारे में आते हैं। ये निर्माण हाथियों की आवाजाही में बाधा डालते हैं…… लाभ उन जानवरों को मिलना चाहिए, जो इन व्यावसायिक गतिविधियों का खामियाजा भुगतते हैं।” नीलगिरी के सिगुर पठार में तमिलनाडु सरकार की ओर से हाथियों के गलियारों की अधिसूचना जारी करने के बाद, वन क्षेत्रों में स्थित होटल और रिजॉर्ट संचालकों को यह क्षेत्र खाली करने के लिए कहा गया है, जिससे उनमें रोष है।
मद्रास उच्च न्यायालय ने 12 सितंबर को शीर्ष अदालत की ओर से नियुक्त समिति की सिफारिश को मंजूरी दे दी थी, जिसमें कहा गया था कि सिगुर पठार के हाथियों के गलियारों में निजी पक्षों द्वारा खरीदी गई जमीन अवैध है और इन निर्माणों को हटाया जाना चाहिए। इससे पहले, उच्चतम न्यायालय को सूचित किया गया था कि सिगुर में हाथियों के गलियारे के भीतर 39 रिजॉर्ट और 390 मकान सहित 800 से अधिक निर्माण हैं।
विभिन्न पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद और शोएब आलम ने कहा कि इन होटल और रिजॉर्ट मालिकों ने हाथियों के गलियारों की अधिसूचना जारी होने से बहुत पहले ही संपत्तियां खरीद ली थीं और उन्हें अपने “पर्यावरण-अनुकूल” व्यवसाय को इस शर्त पर जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए कि वे अपने व्यवसाय का विस्तार नहीं करेंगे। आलम ने बताया कि कुछ मामले जनवरी में सुनवाई के लिए आ रहे हैं और यह उचित होगा कि न्यायालय उन सभी की एक साथ सुनवाई करे। शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दी।

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