सत्ता में नहीं हैं तो ये हाल,सत्ता में आएंगे तो क्या करेंगे
सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }: कहा जाता है कि सत्ता आदमी को अहंकारी बना देती है, सत्ता हाथ में हो तो आदमी को लगता है कि उसके हाथ मेंं ताकत है, वह कुछ कर सकता है,वह अब आम नहीं है,वह खास है, वह लोगों को डरा सकता है,धमका सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि जो आदमी बरसों सत्ता में रहा और वर्तमान में सत्ता से बरसों दूर हो जाता है,उसको भी बहुत गुस्सा आता है जब उसकी पूछपरख नहीं होती है, जब उससे कोई डरता नहीं है, जब कोई उसे भाव नहीं देता है तो वह गुस्से में कहता है कि हमारे पास सत्ता आने दो तब तुमको बताएंगे कि हम क्या कर सकते हैं। हम सत्ता में आएँगे तो ऐसा कानून बनाएंगे कि तुम सजा से बच नहीं सकोगे। यह सीधे धमकी है, सत्ता में न रहने पर भी धमकी देना है कि अभी तुम वह सब कर रहे हो जो हमको पसंद नहीं है।यह सजा पाने लायक काम है, तुमको सजा जरूर मिलेगी जब हमारी सरकार आएगी।
खासकर जो राजनीतिक दल विपक्ष में होता है,जो नेता विपक्ष में होता है, अक्सर वह अफसरों को धमकाते रहते हैं कि अभी तुम जो कर रहे हो ठीक नहीं कर रहे हो, हम जब सत्ता में आएंगे तो हम तुम्हारे साथ क्या करेंगे,देखना।जो सत्ता में नही रहता है उसे उम्मीद रहती है कि एक दिन वह भी सत्ता में आएगा, इसलिए सत्ता में आने की उम्मीद में वह नाराज होने पर धमकी भी देता है। चाहे कांग्रेस का राज्य का नेता हो या कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी सत्ता में रहने के कारण और सत्ता से बरसों बाहर रहने के कारण एक जैसी भाषा होती है, एक जैसे तेवर होते हैं। वह सत्ता में न रहने पर भी खुद को बड़ा मानते हैं,सत्ता न रहने पर वह कुछ कर नहीं पाते हैं इसलिए वह धमकी देते हैं कि हमारी सत्ता आने दो तब तुमको बताएंगे। हम क्या कर सकते हैं, कई लोग तो अफसरों का नाम लिखकर रखते हैं कि हमारी सत्ता आएगी तो इसके साथ क्या करना है।
राज्य में राज्य के नेता अफसरों को धमकाते हैं तो केद्र मे बड़े नेता धमकाते रहते हैं, राहुल गांधी वोट चोरी को लेकर चुनाव आयुक्त से बहुत नाराज है, वह उन पर चुनाव में गड़बड़ी से लेकर वोट चोरी आदि कई आरोप लगाते रहते हैं। सवाल पूछते रहते हैं।लोकसभा के शीतकालीन सत्र में चुनाव सुधार पर बहस के दौरान राहुल गांधी जैसे कांग्रेस के सबसे बड़े नेता को मुख्य चुनाव आयुक्त के लिए ऐसा नहीं कहना था।उन्होंने तो बहस के दौरान यह चुनाव आयुक्त को यह कहकर चेताया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त इस भ्रम में न रहें कि उनको कानून बचा लेगा,हम कानून बदलकर पिछली तारीख से लागू करेंगे,यह तो सीधे चुनाव आयुक्त को धमकी है कि हमारी सरकार आने दो तुमको कानून बदलकर सजा देंगे।क्योंकि हम मानते हैं कि तुमने बहुत कुछ गलत किया है।देश के साथ अपराध किया है।ज्ञात हो कि मोदी सरकार ने २३ में कानून बनाया है कि चुनाव आयुक्त रहते किसी फैसले को लेकर चुनाव आयुक्त को कोई सजा नहीं दी जा सकती।
मोदी सरकार ने चुनाव आयुक्त के फैसलों पर बाद में सजा न देने की व्यवस्था इसलिए की है कि चुनाव आयुक्त से पद पर रहने के दौरान कई तरह की गलती हो सकती है।मतदाता सूची मे कई तरह की त्रुटि हो सकती है,समय के अनुसार लिया गया फैसला किसी राजनीतिक दल को बुरा लग सकता है और वह राजनीतिक दल सत्ता में आने पर चुनाव आयुक्त को पुराने फैसलों के कारण सजा दे सकता है। लोकतंत्र में ऐसा होने लगे तो चुनाव आयुक्त जैसे संवैधानिक पद की क्या गरिमा रह जाएगी,कौन देश में चुनाव कराने के लिए चुनाव आयुक्त बनना चाहेगा। कांग्रेस के समय में तो कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता जिसकाे चाहता था चुनाव आयुक्त बना देता था और आज्ञाकारी बने रहने पर बाद मे रिटायर चुनाव आयुक्तों को रा्ज्यपाल या और कोई पद दिया जाता था।
कांग्रेस नेताओं का आज्ञाकारी चुनाव आयुक्तो की आदत रही है।उनके इशारे पर चुनाव आयुक्त नियुक्त होते थे और हटाए भी जाते थे। इसलिए आज के चुनाव आयुक्त उनको पसंद नहीं आते हैं क्योंकि वह राहुल गांधी कुछ कहते है तो वह करते नहीं है, राहुल गांधी कुछ कहते हैं तो मानते नहीं हैं। वह राहुल गांधी से हलफनामा मांगते हैं। राहुल गांधी जिसे सबूत कहते हैं, वह उसे सबूत नहीं मानते हैं। राहुल गांधी चाहते हैं कि देश में एसआईआर नहीं होना चाहिए तो वह एसआईआर कराते हैं। राहुल गांधी मोदी सरकार की आलोचना इस बात के लिए करते हैं कि देश में लोकतंत्र नही हैं और वह कैसा लोकतंत्र चाहते हैं जिसमें चुनाव आयुक्त को वह कानून बदलकर सजा दे सकें।वह भी इसलिए कि चुनाव आयुक्त ने जो भी देश हित में किया है, उसे राहुल गाधी व कांग्रेस सही नहीं मानते हैं।
