ईसाई आरक्षण के हकदार नहीं
संपादकीय { गहरी खोज }: उत्तर प्रदेश में हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म या अन्य धर्म अपनाने वाले व्यक्ति अनुसूचित जाति (एससी) जनजाति (एसटी) अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में मिलने वाली सुविधाओं के हकदार नहीं हैं। यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिया है। न्यायालय का मानना है कि इस श्रेणी में लाभ पाने का अधिकार केवल हिन्दू को है। कोर्ट ने कहा, ‘ईसाई बने हिन्दू द्वारा एससी का लाभ लेना संविधान के साथ छल है। इस पर कार्रवाई की जानी चाहिए।’ यह आदेश न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकल पीठ ने जितेन्द्र साहनी की याचिका खारिज करते हुए दिया है।
अदालत ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को धर्म बदल चुके हिन्दुओं द्वारा एससी का लाभ लेने के मामले में चार माह में जांच कर कानूनी कार्रवाई का निर्देश दिया है। जिलाधिकारी महाराजगंज को निर्देश दिया है कि वह हिन्दू से ईसाई बनने के बावजूद स्वयं को हिन्दू लिखने वाले याची की जांच तीन माह में पूरी कर कानूनी कार्रवाई करें। याची ने धर्म परिवर्तन के आरोप में एसीजेएम अदालत महाराजगंज में चल रही आपराधिक केस कार्रवाई रद किए जाने की मांग की थी। कोर्ट ने भारत सरकार के कैबिनेट सचिव, प्रदेश के मुख्य सचिव अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, अपर मुख्य सचिव समाज कल्याण विभाग को मामले में कानूनी कार्रवाई का आदेश दिया है। कोर्ट की राय में ईसाई धर्म अपनाने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्तियों द्वारा एससी कैटेगरी का लाभ लेना जारी रखना ‘संविधान के साथ धोखा है।’ एकल पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सी. सेल्वेरानी मामले में दिए निर्णय का हवाला दिया है। इसमें मतांतरण केवल लाभ के लिए ‘संविधान के साथ धोखा’ बताया है। थाना सिंदूरिया अतंर्गत ग्राम मथानिया लक्ष्मीपुर एकडंगा निवासी याची जितेन्द्र साहनी पर आरोप है कि उसने गरीब परिवार के लोगों का मतांतरण कराया है। हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान और शत्रुता भड़काने के भी आरोप लगाए हैं। कोर्ट को सरकारी अधिवक्ता ने बताया कि याची ईसाई पादरी है, लेकिन हाई कोर्ट में दाखिल हलफनामे में उसने खुद को हिन्दू बताया है। हिन्दू कौन है? इस संबंध में हाई कोर्ट ने हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम सहित अन्य कानूनों के हवाले से कहा-‘ हिन्दू, सिख बौद्ध- जैन, आर्य समाजी आदि माने गए है। यह भी स्पष्ट है कि जो व्यक्ति मुस्लिम, ईसाई पारसी व यहूदी नहीं है वह हिन्दू है। एससी की सुविधा केवल हिन्दुओं को दी गई है। धर्म बदलने के बाद व्यक्ति इस सुविधा का लाभ नहीं पा सकेगा।
हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने के बाद भी आरक्षण का लाभ लेने के लिए अधिकतर लोग अपने धर्मांतरण की बात छिपाकर रखते हैं। ऐसे मामले केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं है। उत्तर भारत के हर प्रदेश में है। सरकारी रिकार्ड में पिछड़े या ओबीसी अपने आप को दिखाते हैं जबकि रोजमर्रा की जिंदगी में अपने नाम के साथ मसीह या कोई और उपनाम जोड़ लेते हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केवल उत्तर प्रदेश सरकार को ऐसे मामलों की छानबीन कर उचित कार्रवाई करने का जो आदेश दिया है वह स्वागत योग्य है। अन्य प्रदेशों को भी इस आदेश का संज्ञान ले अपने स्तर पर जांच करानी चाहिए। यह खेल खेलने वाले संविधान की भावना के साथ साथ देश की सामाजिक व्यवस्था तथा राष्ट्रहित के साथ भी धोखा कर रहे हैं। ऐसे लोगों को सजा मिले यह बात प्रदेश सरकारों को सुनिश्चित करनी चाहिए।
