दिव्य ग्रंथ है गीता : मोदी
संपादकीय { गहरी खोज }: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कुरुक्षेत्र स्थित महाभारत अनुभव केंद्र’ और अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का जिक्र किया। मोदी ने कहा, हरियाणा के कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था, ये हम सभी जानते हैं। लेकिन युद्ध के इस अनुभव को अब आप वहां साक्षात महसूस कर सकते हैं। अनुभव केंद्र में महाभारत की गाथा को थ्रीडी, लाइट एंड साउंड शो और डिजिटल तकनीक से दिखाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि 25 नवंबर को जब मैं कुरुक्षेत्र गया, तो इस अनुभव केंद्र के अनुभव ने मुझे आनंद से भर दिया था।’
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में शामिल होना भी उनके लिए बहुत विशेष रहा। उन्होंने कहा, ‘मैं यह देखकर बहुत प्रभावित हुआ कि कैसे दुनियाभर के लोग दिव्य ग्रंथ गीता से प्रेरित हो रहे हैं। इस महोत्सव में यूरोप और सेंट्रल एशिया सहित विश्व के कई देशों के लोगों की भागीदारी रही है।’
गीता भगवान कृष्ण के मुंह से उच्चारित ऐसा दिव्य गीत है जो सदियों क्या युगों-युगांतरों से मानव को प्रेरित करता चला आ रहा है। समय बीतने के साथ-साथ इसकी सार्थकता भी बढ़ती चली जा रही है। गीता का हर श्लोक अपने आप में एक संदेश है। इस संदेश को कोई कैसे लेता है वह उसकी अपनी बौद्धिक शक्ति और विकास पर निर्भर करता है। गीता तो एक अथाह रत्नाकर है। रत्नाकर का-समुद्र का तल ना जाने कितने अनमोल रत्नों से भरा पड़ा है। गोताखोर अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार समुद्र में गोते लगाते हैं और जो मोती हाथ लग जाता है, उसे लेकर ऊपर चले आते हैं। यथार्थ गोताखोर तो वह है, जो जानता है कि रत्नाकर का तल अनगिनत मोतियों से भरा पड़ा है। भले ही उसे एक बहुत बड़ा मोती मिल जाय, पर वह ऐसा नहीं सोचेगा कि समुद्र में अब इससे बड़ा मोती नहीं है। गीता ऐसा ही रत्नाकर है। गीता में गोता लगाने वाले भी बहुत हैं। कुछ तो केवल नाम के गोता-खोर होते हैं, वे पानी की सतह से अधिक नीचे नहीं जा पाते। कुछ इनकी अपेक्षा अधिक जानकार होते हैं, जो अधिक गहराई तक उतर जाते हैं, पर ये वापस लौटते समय हाथ में मोती के बदले सीपी और शंख लेकर निकल आते हैं। तीन-चार बार प्रयत्न करने पर भी जब इन लोगों को मोती नहीं मिलता, तो वे ऐसी धारणा कर बैठते हैं कि समुद्र में मोती ही नहीं है, सागर का तल केवल सीपियों और शंखो से भरा है। गीता-रत्नाकर में गोता लगानेवालों के भी ये तीन प्रकार हैं। एक तो वे हैं, जो ऊपर-ऊपर तैरते हैं। इनकी दृष्टि सतही होती है। इसलिए ये गीता में राजनीतिशास्त्र का विवेचन देखते हैं। इन्ही में से कुछ दूसरे लोग गीता को अर्थशास्त्र का प्रतिपादन करनेवाला ग्रन्थ मानते हैं और कुछ अन्य लोग युद्धशास्त्र को गीता का प्रतिपाद्य विषय मानते हैं। ये सभी के सभी तथाकथित गोताखोर हैं, जो वस्तुतः यही नहीं जानते कि गोता लगाना क्या होता है। दूसरे लोग वे हैं, जो गहराई में जाने की कोशिश तो करते हैं, पर अपने काम की कोई चीज उसमें नहीं पाते। वे जड़वादी होते हैं। भौतिकवाद ही उनके जीवन का आधार होता है, इसलिए गीता में उन्हें ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता, जो उन्हें मदद दे सके। इसलिए गीता को वे कवि-कल्पना कहकर टाल देते हैं। पर जो तीसरे प्रकार के लोग हैं, वे असली गोताखोर हैं। ये निरंतर गोता लगाते रहते हैं।
भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग की त्रिवेणी इस पावन गीता से मनुष्य अपनी संघर्षमय जीवनरूपी यात्रा को मोक्ष की यात्रा में बदल सकता है। सुख-दुख, लाभ-हानि, मान-अपमान, निंदा-स्तुति में समभाव रहकर मन को संतुलित रखना गीता की ऐसी दिव्यं शिक्षा है, जो जीवन में भटकते मानव का मार्गदर्शन करती है। वर्तमान समाज में विशेष कर युवा अपने जीवन में छोटी-छोटी समस्याओं से पराजित होकर निराशा और हताशा के घोर अंधकार में चले जाते हैं। गीता में वर्णित कर्म योग आज की युवा पीढ़ी के लिए विशेष रूप से अनुगमन करने योग्य है। श्रीकृष्ण तथा अर्जुन का संवाद मानव जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के मानस में हो रहे अंतद्वंद्वों का भी प्रतीक है। अर्जुन के मन में जो संघर्ष पैदा हुआ वही तो हर व्यक्ति के मानस में चलता है। भीतरी संघर्ष के ऐसे समय में मनुष्य का आत्मबल कमजोर पड़ जाता है। गीता में वर्णित श्रीकृष्ण का चिंतन जीवन की ऐसी परिस्थितियों में मनुष्य को दिव्य सांत्वना प्रदान करता है और उसको परिस्थितियों का सामना करने का बल देता है। गीता का उपदेश सार्वभौमिक तथा सर्वमांग्लिक है, इसलिए गीता एक दिव्य ग्रंथ है, जिसके संदेश को जीवन में अपनाकर मनुष्य कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
