सम्राट चौधरी ने छूए नीतीश कुमार के पैर, विधायकों ने ली मैथिली-संस्कृत-उर्दू में शपथ
पटना{ गहरी खोज }: बिहार में नई सरकार के गठन के बाद पांच दिवसीय शीतकालीन सत्र की शुरुआत हो चुकी है। पहले दिन प्रोटेम स्पीकर नरेंद्र नारायण यादव ने सभी नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाई। सबसे पहले सम्राट चौधरी ने शपथ ली और इसके बाद उन्होंने विपक्षी नेताओं से हाथ मिलाया तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। जिसके बाद विजय सिन्हा ने भी यही परंपरा निभाई।
इस बार शपथ ग्रहण समारोह की खासियत यह रही कि विधायकों ने विभिन्न भाषाओं में शपथ ली।मिथिलांचल के कई विधायकों ने मैथिली में शपथ ली। तारकिशोर प्रसाद ने संस्कृत में शपथ ली। इसके बाद एआईएमआईएम के विधायकों ने उर्दू में शपथ ली। यह विविधता बिहार की सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को दर्शाती है।
बिहार की 18वीं विधानसभा में शपथ ग्रहण के तुरंत बाद नए विधानसभा अध्यक्ष के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई। संभावना जताई जा रही है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रेम कुमार निर्विरोध अध्यक्ष चुने जा सकते हैं। लेकिन अगर एक से अधिक नामांकन दाखिल होते हैं तो 2 दिसंबर को मतदान कराया जाएगा।
इस सत्र का सबसे बड़ा आकर्षण है कि विधानसभा की कार्यवाही अब पूरी तरह पेपरलेस होगी। सदन को ‘नेशनल ई-विधान’ (नेवा) मंच के माध्यम से संचालित किया जाएगा। यह मंच भारत सरकार की ‘डिजिटल इंडिया’ पहल के अंतर्गत विकसित किया गया है। इस प्रणाली के तहत, सवाल-जवाब, नोटिस, भाषण, संशोधन प्रस्ताव शामिल है। मतदान की सभी प्रक्रियाएं डिजिटल माध्यम से होंगी। यह विधायी कार्यों को तकनीक-संचालित और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
विधानसभा में अधिकारियों और विधायकों को टैबलेट उपलब्ध कराए गए हैं। साथ ही उच्च गति वाला वाई-फाई भी लगाया गया है। सदन में सेंसरयुक्त माइक्रोफोन और छह बड़े डिस्प्ले स्क्रीन लगाए गए हैं, जिन पर वास्तविक समय में वोटिंग परिणाम और कार्यवाही से जुड़ी जानकारी प्रदर्शित होगी। इसके अलावा, कार्यवाही का लाइव टेलीकास्ट भी किया जाएगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ने की उम्मीद है।
बता दें कि राजनीतिक दृष्टि से भी यह सत्र बहुत ही खास माना जा रहा है। करीब 10 सालों बाद सत्ता पक्ष में 200 से ज्यादा विधायक मौजूद हैं। इससे सदन का समीकरण पूरी तरह बदल गया है। विपक्ष के पास मात्र 38 सीटें मौजूद हैं, जिससे उनकी भूमिका और चुनौती दोनों बढ़ गई है। राजग के प्रचंड बहुमत के कारण सरकार के लिए विधायी एजेंडा आगे बढ़ाना आसान होगा। वहीं विपक्ष पर दबाव रहेगा कि वह सीमित संख्या में रहते हुए भी अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभाएं।
