समय नक्सलियों की बात मानने का नहीं, मनवाने का है
सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }: सीमावर्ती राज्यों महाराष्ट्र,आंध्रप्रदेश,तेलंगाना व ओडिशा में नक्सलियों के खिलाफ एक साथ अभियान चलाए जाने से नक्सलियों पर बहुत ज्यादा दबाव है,किसी भी राज्य में उनके लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं बची है। किसी भी राज्य में उनका कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा है। खुले जंगल में सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे जाने का खतरा बढ़ गया है।नक्सलियों के खुले में आते ही उनकी गतिविधियों की खबर सुरक्षा बलों तक पहुंच जाती हैं, इसी वजह से उसके कई बड़े नेेता मारे जा चुके हैं। बड़े नेताओं के मारे जाने का संगठन के लोगों पर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ा है। पहले नक्सलियों के बड़े नेता मारे नहीं जाते थे, इससे यह धारणा बनी हुई थी कि हमारे बड़े नेताओं को सुरक्षा बल मार नहीं सकती। हमारे बड़े नेता सुरक्षित है तो हमारा संगठन कमजोर नहीं हाे सकता।
बसव राजू के बाद हिड़मा के मारे जाने का संगठन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। इससे यह धारणा टूट गई है कि हमारे बड़े नेता को सुरक्षा बल के जवान मार नहीं सकते। इससे संगठन के लोगों को लगता था कि उनकी सुरक्षा के उपाय भी बड़े नेता कर लेंगे। बसव राजू व हिड़मा जैसे नेताओं के मारे जाने से संगठन के दूसरे,तीसरे व चौथे लेबल के नक्सलियों को लगा कि जब हमारे नेता ही खुद को बचा नही पा रहे हैं तो वह हमें क्या बचाएंगे। यही वजह है बसव राजू के मारे जाने के बाद से नक्सलियों के सरेंडर का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह जारी है और आए दिन २०-३० संख्या में नक्सली सरेंडर कर रहे हैं। कभी छत्तीसगढ़ में कर रहे हैं तो कभी तेलंगाना में कर रहे हैं। हिड़मा के मारे जाने के बाद सरेंडर करने वालों में अब हिड़मा के संगठन के लोगों की सबसे ज्यादा है।
इसी महीने मंगलवार १८ नवंबर को आंध्रप्रदेश में जवानों ने हिड़मा,उसकी पत्नी समेत पांच लोगों को मार गिराया।यह नक्सलियों के सबसे बड़ा झटका था क्योंकि हिड़मा के कारण ही बस्तर में कहीं कहीं नक्सली संगठन बचा हुआ था और हिड़मा के सरेंडर न करने के कारण उसके संगठन के लोग भी सरेंडर नहीं कर रहे थे। हिड़मा के मारे जाने का असर यह हुआ है कि अब सरेडर करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। बुधवार को फिर ७ नक्सली मारे गए और ५० नक्सली गिरफ्तार भी किए गए।इसके कुछ दिन २२ नवंबर को हिड़मा के साथी एर्रा सहित ३७ नक्सलियोंं ने सरेंडर किया।सोमवार २४ नवंबर को १५ नक्सलियों ने सरेंडर किया। यह सिलसिला छत्तीसगढ़ के साथ आंध्र व तेलंगाना में जारी है।
इसका परिणाम यह हुआ है कि नक्सलियों के बचाने के लिए पहली बार महाराष्ट्र,मप्र,छत्तीसगढ़ में सक्रिय नक्सली संगठन की स्पेशल जोनल कमेटी(एमएमसी) ने तीनों राज्यों के सीएम पत्र भेजा और कहा है कि वह सामूहिक सरेंडर करना चाहते हैं। इसके लिए १५ फरवरी २०२६ तक का समय मांगा गया है। ताकि नक्सली संगठन सरेंडर के लिए आपस मे बात कर सकें। इस बार पत्र में आग्रह किया गया है कि फरवरी तक सुरक्षा बलों के अभियान को रोका जाए।छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने लिखे गए पत्र के जवाब में कहा है कि पत्र और आडियो दोनों मुझ तक पहुंचे हैं। वह १५ फरवरी तक आपेरशन रोकने की बात कर रहे है,इतनी लंबी अवधि तक आपरेशन रोकने की जरूरत नहीं है। किसी भी काम के लिए १०-१५ दिन काफी है। इसका मतलब है कि सरकार समझ रही है कि नक्सलियों को मौका देने की जरूरत नहीं है,वह निरतंर कमजोर पड़ रहे हैं, सरेंडर कर रहे है तो आगे भी वह मजबूर होकर सरेंडर करेंगेॆ। यह समय नक्लसियों की कोई बात मानने का नहीं है,यह समय नक्सलियों से अपनी बात मनवाने का है, मानेंगे तो बचेंगे नही मानेंगे तो बसव राजू व हिड़मा की तरह मारे जाएंगे। गेंद नक्सलियों के पाले में है। बात तो उनको ही माननी होंगी।
