समुद्र की गहराइयों की ओर: भारत का ‘समुद्रयान’ खोलने वाला है अथाह सागर के रहस्य

0
Gv80LyFz-breaking_news-1-768x468

चेन्नई{ गहरी खोज }: भारत अगले वर्ष की शुरुआत में चेन्नई तट के पास 28 टन वजनी स्वदेशी मानव-संचालित पनडुब्बी को 500 मीटर गहराई तक भेजकर उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा, जिनके पास ऐसी अनूठी क्षमता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के वैज्ञानिक रमेश राजू और जतिंदर पाल सिंह ‘मत्स्य-6000’ को संचालित करेंगे। यह मिशन भारत की ‘डीप ओशन मिशन’ पहल का महत्वपूर्ण हिस्सा है। NIOT के निदेशक बालाजी रामकृष्णन ने PTI को बताया, “हमने अब तक अधिक गहराई पर रिमोट-ऑपरेटेड वाहनों की मदद से समुद्री तल का अध्ययन किया है। यह पहली बार होगा जब हम मानवों को 6,000 मीटर की गहराई में भेजने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इस मिशन में सुरक्षा सर्वोपरि है।”
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा संचालित ‘समुद्रयान’ परियोजना वास्तव में तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक मानी जा रही है। गहरे समुद्र में मानव-संचालित पनडुब्बी खरीदने का वैश्विक निविदा प्रयास दो बार तकनीकी प्रतिबंधों के कारण विफल हुआ, जिसके बाद भारत सरकार ने इसे देश में ही विकसित करने का निर्णय लिया।
रामकृष्णन ने कहा, “हमने इस चुनौती को स्वीकार किया। हमारे पास अब तक केवल 1000 मीटर तक गोता लगाने की विशेषज्ञता थी। लेकिन जब हमने DRDO, CSIR और ISRO की प्रयोगशालाओं का सहयोग लिया, तो हमें आवश्यक तकनीक और विशेषज्ञता देश में ही उपलब्ध मिली।”
समुद्रयान परियोजना के निदेशक सथिया नारायणन ने कहा, “मानव की आंख किसी भी कैमरे से कहीं अधिक देखने और समझने की क्षमता रखती है। गहरे समुद्र के तल को समझने में यह दृष्टि अनमोल जानकारी देगी।” गहरे समुद्र में खनिज, ऊर्जा और जैव-विविधता के विशाल संसाधन छिपे हैं। अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस, चीन, जापान और फ्रांस जैसे देशों के पास ही इतनी गहराई तक मानव-संचालित अन्वेषण की क्षमता है। भारत अब इस विशिष्ट समूह में शामिल होने की ओर है।
भारत की 11,098 किमी लंबी तटरेखा और ब्लू इकॉनमी पर जोर इस मिशन को और महत्वपूर्ण बनाता है। NIOT परिसर में तैयार हो रही यह स्वदेशी पनडुब्बी 2.25 मीटर व्यास वाले स्टील से बने गोलाकार कैप्सूल पर आधारित है। इसके अंदर उच्च-घनत्व Li-Po बैटरियां, आपातकालीन ड्रॉप-वेट सिस्टम, बैलास्ट टैंक, प्रोपेलर, इमरजेंसी बॉय और अन्य सुरक्षा प्रणालियाँ लगाई गई हैं। शुरुआत में यह 500 मीटर की गहराई तक गोता लगाएगी, लेकिन 2027 में लक्ष्य 6,000 मीटर है—जो नौसेना की पारंपरिक पनडुब्बियों की अधिकतम गहराई से दस गुना अधिक है।
6,000 मीटर की गहराई के लिए स्टील की जगह टाइटेनियम का 80 मिमी मोटा गोलाकार कैप्सूल लगाया जाएगा, जिसे ISRO के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर, बेंगलुरु में तैयार किया जा रहा है, जहाँ इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग सुविधा विकसित की गई है। मत्स्य-6000 30 मीटर प्रति मिनट की गति से समुद्र तल तक जा सकता है और बाहरी रोशनी, पोर्थोल, कैमरे और नमूने एकत्र करने वाले रोबोटिक हाथों से लैस होगा।
समस्त उपकरणों को DNV—एक वैश्विक सुरक्षा एवं जोखिम प्रबंधन संस्था—द्वारा प्रमाणित किया जा रहा है, जिससे यह दुनिया के सबसे सुरक्षित डीप-ओशन वाहनों में से एक बन जाएगा। दो भारतीय वैज्ञानिक अगस्त में फ्रांसीसी सबमर्सिबल ‘नॉटिल’ के साथ 5,000 मीटर गहराई तक यात्रा कर चुके हैं, जिससे प्राप्त अनुभव मत्स्य-6000 के विकास में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *