एक्सपर्ट से जानें लिवर कैंसर का पता लगाने के लिए कौन सा टेस्ट किया जाता है?
लाइफस्टाइल डेस्क { गहरी खोज }: लिवर कैंसर एक गंभीर लेकिन समय पर पहचान लेने पर नियंत्रित की जा सकने वाली बीमारी है। पीएसआरआई अस्पताल में वरिष्ठ सलाहकार और कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित उपाध्याय कहते हैं कि शुरुआती अवस्था में इसके लक्षण बहुत सामान्य होते हैं, जैसे थकान, भूख में कमी, या पेट में भारीपन। इसी वजह से लोग अक्सर इसे नजरअंदाज कर देते हैं। इसलिए समय पर जांच कराना बेहद जरूरी होता है। चलिए डॉक्टर से जानते हैं लिवर कैंसर का पता लगाने के लिए कौन सा टेस्ट किया जाता है?
लिवर कैंसर के लिए की जाती है तीन तरह की टेस्टिंग
ब्लड टेस्ट: सबसे पहले होते हैं ब्लड टेस्ट, जिनमें आमतौर पर लिवर फंक्शन टेस्ट (LFT), हेपेटाइटिस बी या सी की जांच, और अल्फा-फीटोप्रोटीन (AFP) नामक टेस्ट शामिल होते हैं। AFP टेस्ट में रक्त में इस प्रोटीन के स्तर को मापा जाता है। अगर इसका स्तर बढ़ा हुआ पाया जाए तो यह लिवर कैंसर या किसी अन्य लिवर संबंधी समस्या का संकेत हो सकता है। हालांकि, शुरुआती चरण में कई बार AFP का स्तर सामान्य भी रह सकता है, इसलिए केवल इसी टेस्ट के आधार पर कैंसर की पुष्टि नहीं की जाती।
इमेजिंग टेस्ट: दूसरे चरण में इमेजिंग टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें अल्ट्रासाउंड, CT स्कैन और MRI शामिल हैं। ये टेस्ट लिवर की संरचना, उसमें मौजूद गांठ या असामान्यता को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं। विशेष रूप से, ट्रिपल फेज सीटी स्कैन एक बहुत ही उपयोगी जांच है, जो लिवर में कैंसर की उपस्थिति और उसकी गंभीरता की सटीक जानकारी देती है। अधिकांश मामलों में यही जांच यह तय कर देती है कि व्यक्ति को लिवर कैंसर है या नहीं।
बायोप्सी : बायोप्सी की जरूरत केवल कुछ ही मामलों में पड़ती है—जब सीटी स्कैन या एमआरआई से स्पष्ट निदान नहीं हो पाता। इसमें लिवर से ऊतक का छोटा नमूना लेकर माइक्रोस्कोप के नीचे जांच की जाती है, जिससे कैंसर की पुष्टि हो जाती है।
जिन लोगों को हेपेटाइटिस बी या सी, फैटी लिवर या अत्यधिक शराब सेवन की समस्या है, उन्हें समय-समय पर लिवर की नियमित जांच करवानी चाहिए। शुरुआती स्तर पर निदान होने से इलाज की सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाती है और मरीज का जीवन बेहतर गुणवत्ता के साथ बचाया जा सकता है।
