अब अफीम खेती की निगरानी करेंगे शिक्षित मुखिया, राजस्थान के करीब दो हजार गांवों में होगी नियुक्ति

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चित्तौड़गढ़{ गहरी खोज }: केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अफीम नीति में इस बार कई बदलाव किए हैं। अफीम बुवाई से लेकर तौल के कार्य को पारदर्शी बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसी के तहत कम से कम आठवीं पास शिक्षित लंबरदार (गांव का मुखिया) नियुक्त किया जा रहा है। इससे पहले तक वृद्ध महिलाओं तक को नियुक्त कर दिया जाता था। अकेले चित्तौड़गढ़ जिले में 700 से अधिक गांवों में तथा पूरे राजस्थान में करीब दो हजार गांवों में मुखिया बनाए जा रहे हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पिछले माह ही वर्ष 2025-26 में अफीम फसल की बुवाई को लेकर पॉलिसी की घोषणा की थी। इसी के तहत चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय स्थित जिला अफीम अधिकारी कार्यालय में बंदोबस्त का कार्य किया जा रहा है। इस बार पॉलिसी में कई बदलाव किए है। इसमें प्रत्येक गांव में मुखिया की नियुक्ति को लेकर भी निर्देश जारी किए हैं। विभाग हर वर्ष प्रत्येक अफीम बुवाई वाले गांव में मुखिया की नियुक्ति करता है। पहले तो प्रभावशाली लोगों की नियुक्ति हो जाती थी। कई बार वृद्ध महिलाएं भी नियुक्त कर दी जाती थी। ऐसे में विभाग को अपने निर्देश किसानों तक पहुंचाने में दिक्कत आती थी। ऐसे में वित्त मंत्रालय ने अब शिक्षित व्यक्ति को ही मुखिया नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं।
राजस्थान में चित्तौड़गढ़ जिला अफीम बहुल क्षेत्र में आता है और केंद्र भी है। जिले के करीब 700 गांवों में अफीम की बुवाई की जानी है। इसके अलावा भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर, कोटा, झालावाड़ आदि जिलों में भी अफीम की बुवाई होती है। ऐसे में करीब दो हजार गांवों में हजारों किसानों के अफीम बुवाई का कार्य अफीम मुखिया के माध्यम से होगी। किसी भी गांव में नियुक्त अफीम मुखिया किसानों और नारकोटिक्स विभाग के बीच कड़ी होता है। अफीम लाइसेंस किसान तक पहुंचाने से लेकर विभाग के निर्देशों की जानकारी भी देता है। किसी भी गांव में नियुक्त मुखिया अफीम की खेती की निगरानी एवं व्यवस्था, विभाग को गांव की रिपोर्ट और जानकारी देने का काम करता है। विभाग की और से होने वाले मेजरमेंट और कच्चा तौल करवाने में सहयोग करता है। अफीम के बदले होने वाले फाइनल भुगतान के समय किसानों को विभाग कार्यालय लाने की जिम्मेदारी भी मुखिया की होती है। इसके बदले नारकोटिक्स विभाग मुखिया को अलग से भुगतान भी करता है।
नारकोटिक्स विभाग को कई गांवों में अब शिक्षित मुखिया नहीं मिल रहे हैं, जो कम से कम आठवीं पास हो। ऐसे में विभाग महज हस्ताक्षर करने वाले किसानों को भी मजबूरी में मुखिया बना रहा है, जो शारीरिक रूप से सक्षम हो। मुखिया बनने वाला किसान गांव से बाहर नियमित रोजगार में नहीं होना चाहिए। मुखिया बनने वाला किसान विभागीय स्टाफ के साथ गांव में किसानों के अफीम प्लॉट की पहचान के लिए प्रत्येक खेत पर चलने फिरने में शारीरिक रूप से सक्षम होना चाहिए। एक किसान को दो साल से अधिक लंबरदार नहीं बनाए जाने का नियम भी है।
नारकोटिक्स विभाग ने मुखिया नियुक्त करने को लेकर आधा दर्जन से अधिक नियम लागू किए हैं। इसमें किसी भी गांव में उच्चतम औसत देने वाले किसान को मुखिया (लंबरदार) बनाया जाएगा। इसके अलावा सीपीएस (डोडे पर बिना चीरा) और गम पद्धति (डोडे पर चीरा) में से जिसमें भी 50 फीसदी से अधिक किसान है, उसे ही मुखिया बनाया जाएगा। किसान का गत वर्ष के बंदोबस्त का रकबा 50% रकबा या अधिक रकबा शुद्ध उत्पादित होना चाहिए। किसान स्वयं शिक्षित, उसी गांव का निवासी होकर हाई स्कूल पास होना चाहिए।
जिला अफीम अधिकारी चित्तौड़गढ़ खंड प्रथम बद्रीनारायण मीणा ने बताया कि इस बार मुखिया नियुक्त करने को लेकर नए नियम लागू हुए हैं। मुखिया शिक्षित एवं आठवीं पास होना चाहिए, लेकिन कई गांवों में इसे लेकर परेशानी आ रही है। ऐसे में विभागीय निर्देशों का पालन किया जा रहा है।

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