पटना में लोकतंत्र की तैयारी: चुनाव नज़दीक आते ही फिर गुलज़ार हुए दर्ज़ियों के ठिकाने

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पटना{ गहरी खोज }: जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं, पटना की बीरचंद पटेल पथ एक बार फिर रौनक से भर उठी है। यह सड़क बिहार की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों — भाजपा, जदयू और राजद — के दफ्तरों को जोड़ती है, जबकि सीपीआई का कार्यालय भी यहीं पास में है। राजनीतिक हलचल बढ़ने के साथ ही यहां नेताओं और मीडिया कर्मियों की आवाजाही तेज़ हो गई है। लेकिन इसी बीच एक और तबका है, जो हर चुनावी मौसम में अपनी रफ्तार पकड़ लेता है — सड़क किनारे बैठे दर्ज़ी और कपड़े बेचने वाले छोटे दुकानदार।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह अब परंपरा बन चुकी है। व्यापार से आगे बढ़कर, ये दुकानें रोज़ी-रोटी और आत्मसम्मान की कहानी कहती हैं। “हम यह दुकान 40 साल से चला रहे हैं,” 27 वर्षीय राजा ने कहा, जो पटना का निवासी है और अपने पिता-दादा की विरासत संभाल रहा है। वयोवृद्ध दर्ज़ी अफताब ख़ान (70) ने पुराने दिनों को याद किया। उन्होंने कहा, “25 साल पहले चुनाव के दौरान यहां लोगों की भीड़ उमड़ती थी — कुर्ता-पायजामा सिलवाने वालों की लाइन लगती थी। अब ग्राहक कम हो गए हैं, लेकिन मैं अब भी नेताओं और आम लोगों दोनों के लिए कपड़े सिलता हूं — कभी-कभी कुछ ही घंटों में तैयार कर देता हूं।”
भागलपुर के रहने वाले 31 वर्षीय मोहम्मद फ़ैयाज़ पिछले दो दशक से यहां सिलाई का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैंने बचपन में शुरुआत की थी। यह जगह अब घर जैसी लगती है।” एक अन्य दुकानदार ने बताया कि उनके परिवार की दुकान पुराने विधायक फ्लैट्स के पास 70 साल से थी। “अब नई बिल्डिंग बन जाने के बाद जगह बहुत कम रह गई है, लेकिन हमने पेशा नहीं छोड़ा,” उन्होंने कहा।
फ़ैयाज़ के पिता, मोहम्मद ज़ुबैर अंसारी ने कहा, “पहले हमारी दुकानें सबको दिखती थीं, अब ये नई इमारतें सब ढक लेती हैं। फिर भी यही काम करके मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया। बड़ा बेटा सरकारी स्कूल में टीचर है, दूसरा बेटा हाईकोर्ट के पास कपड़े की दुकान चलाता है, और चार बेटियां भी अच्छी तरह से बस गई हैं।” अंसारी का मानना है कि सरकार को सड़क किनारे काम करने वाले दर्ज़ियों को औपचारिक मान्यता देनी चाहिए। “अगर हमें जमीन आवंटित कर दी जाए, तो नगर निगम की कार्रवाइयों से राहत मिल जाएगी,” उन्होंने कहा। अपने पेशे के महत्व पर बोलते हुए अंसारी ने मुस्कराते हुए कहा, “हम नेता पैदा करते हैं। टिकट से लेकर मंत्री बनने तक हम ही उनके कपड़े सिलते हैं। बस, मंत्री बनने के बाद वे मौर्य लोक चले जाते हैं सूट सिलवाने।” वैशाली के रहने वाले मोहम्मद अफ़रोज़, जो पिछले पांच साल से यहां दुकान चला रहे हैं, कहते हैं कि “यह जगह और चुनाव के समय बढ़ने वाली भीड़ ही हमारे व्यवसाय को जिंदा रखती है।”

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