भारत यात्रा के बीच कांग्रेस ने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग दोहराई

0
jairam-ramesh_1717325409

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: मंगोलिया के राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना की चार दिवसीय भारत यात्रा के बीच कांग्रेस ने लद्दाख को संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग दोहराई है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने साल 1990 से 2000 तक मंगोलिया में भारत के राजदूत रहे प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु और लद्दाख के सम्मानित नेता 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे के योगदान को भी याद किया।
जयराम रमेश ने सोमवार को अपने एक पोस्ट में लिखा कि आज मंगोलिया के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर हैं और यह अवसर हमें याद दिलाता है उस ऐतिहासिक भूमिका की, जो भारत और विशेषकर लद्दाख के कुशोक बकुला रिनपोछे ने भारत-मंगोलिया संबंधों को मजबूत बनाने में निभाई थी। कांग्रेस महासचिव ने अपने ट्वीट के माध्यम से बताया कि कुशोक बकुला रिनपोछे को 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा मंगोलिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया था। जनवरी 1990 में पदभार संभालने के बाद वे लगातार दस वर्षों तक इस पद पर रहे, जो एक असामान्य अवधि मानी जाती है। साम्यवाद के पतन के बाद मंगोलिया में बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण में उनकी भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है।
जयराम रमेश ने आगे लिखा कि कुशोक बकुला रिनपोछे ने न केवल मंगोलिया में, बल्कि भारत और पूर्व सोवियत संघ में भी बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान में अहम भूमिका निभाई। आज भी मंगोलिया में उन्हें श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। उन्होंने कहा कि 10 जून 2005 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लेह हवाई अड्डे का नाम बदलकर ‘कुशोक बकुला रिनपोछे हवाई अड्डा’ रखा और उन्हें आधुनिक लद्दाख का शिल्पकार भी बताया था।
कांग्रेस नेता ने कहा कि लद्दाख आज मरहम की प्रतीक्षा कर रहा है। वर्ष 2020 के स्थानीय हिल काउंसिल चुनावों के घोषणापत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा देने का वादा किया था, लेकिन अब सत्ता में होते हुए भी वह इसे पूरा करने से पीछे हट रही है।
उल्लेखनीय है कि भारत और मंगोलिया के बीच राजनयिक संबंध दिसंबर 1955 में स्थापित हुए थे और भारत ने अक्टूबर 1961 में मंगोलिया को संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। कुशोक बकुला रिनपोछे (1917–2003) को 19वें बकुला रिनपोछे के रूप में तिब्बती बौद्ध परंपरा में मान्यता प्राप्त थी। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और बाद में राजनीति तथा कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1989 में उन्हें मंगोलिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण में अहम भूमिका निभाई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *