आज निर्जला उपवास रख माताएं कर रहीं संतान की दीर्घायु की कामना, जानें अहोई अष्टमी व्रत खोलने का समय और सही विधि

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धर्म { गहरी खोज } : अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु और उनके खुशहाल जीवन की कामना से किया जाता है। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को अहोई माता की पूजा के बाद तारों को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करती हैं। चलिए जानते हैं इस साल अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त, तारों को अर्घ्य देने का सही समय और पूजा विधि क्या है।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन माताओं के लिए बेहद पावन माना गया है। महिलाएं इस दिन निर्जला रहकर अपनी संतान के अच्छे स्वास्थ्य, लंबी उम्र और सुखमय जीवन की कामना करती हैं। मान्यता है कि अहोई माता की कृपा से संतान को जीवन में कभी कष्ट नहीं होता और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

अहोई अष्टमी 2025 पूजा शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस साल अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर 2025, सोमवार के दिन मनाई जा रही है। अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 14 अक्टूबर सुबह 11 बजकर 11 मिनट तक रहेगी। पूजा के लिए सबसे शुभ समय शाम 5:53 से 7:08 बजे तक का रहेगा। करीब सवा घंटे की इस अवधि में अहोई माता की विधिवत पूजा और कथा सुनना श्रेष्ठ माना गया है।

तारों को अर्घ्य देने का शुभ समय
अहोई अष्टमी का व्रत तभी पूर्ण माना जाता है, जब महिलाएं रात में तारे देखकर अर्घ्य देती हैं। इस साल तारों को देखने और अर्घ्य देने का शुभ समय शाम 6 बजकर 17 मिनट के आसपास रहेगा। इस समय आकाश में पहला तारा दिखाई देने पर माताएं जल से भरा कलश लेकर अर्घ्य देती हैं और अहोई माता से अपनी संतान की दीर्घायु की कामना करती हैं।

अहोई अष्टमी की पूजा विधि
इस दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें। फिर दीवार पर लाल रंग या गेरू से अष्टकोणीय आकृति बनाकर उसमें अहोई माता, सेई और उसके बच्चों की आकृतियां बनाएं। माता की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर, रोली, पुष्प, फल और मिठाई अर्पित करें। अहोई माता को खीर और पूरी का भोग लगाएं और व्रत कथा का पाठ करें।

कथा सुनने के बाद गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा हाथ में लेकर सास या किसी बुजुर्ग महिला को भेंट करें और पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें। शाम को प्रदोष काल में एक बार फिर से पूजा करें और तारे के दर्शन करें। तारों को अर्घ्य देने के लिए एक कलश में पानी लेकर उसमें थोड़ा गंगाजल मिलाएं और दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाकर अर्घ्य अर्पित करें।

व्रत पूरा करने की विधि
अर्घ्य देने के बाद माता से अपनी संतान की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की प्रार्थना करें। फिर जल ग्रहण कर व्रत खोलें। मान्यता है कि जो महिलाएं अहोई अष्टमी का यह व्रत पूरी श्रद्धा से करती हैं, उन्हें अहोई माता की विशेष कृपा मिलती है और उनके घर सदा खुशहाली बनी रहती है।

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