बिलासपुर हादसा

संपादकीय { गहरी खोज }: हिमाचल में मंगलवार को भारी बारिश के बीच बिलासपुर में मरोतन से घुमारवीं जा रही 32 सीटर निजी बस पर शाम करीब 6:30 बजे पहाड़ी से मलबा और चट्टानें गिर गई। हादसे में 15 लोगों की मौत हो गई। अभी तक भाई-बहन समेत तीन बच्चों को जिंदा निकाला जा सका है। हादसा बरठीं में भल्लू पुल के पास शुक्र खड्ड के किनारे हुआ। पहाड़ी से मलबा गिरने से बस की छत उखड़कर खड्ड के किनारे जा गिरी जबकि सारा मलबा बस में बैठी सवारियों पर आ गिरा। बस में चीख पुकार मच गई। पीछे से आ रहे अन्य गाड़ी चालकों ने इसकी सूचना पुलिस प्रशासन को दी। हादसे की चपेट में आए ज्यादातर लोग नौकरी और काम से लौट रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिलासपुर हादसे में हुई जनहानि पर दुख व्यक्त किया है। उन्होंने घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की और हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से दो-दो लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये देने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पोस्ट कर कहा कि बिलासपुर में हुए हादसे से दुखी हूं। जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उनके प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं। ईश्वर घायलों को शीघ्र स्वस्थ करें। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने बिलासपुर बस हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने मृतकों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए दिवंगत आत्माओं को शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है। उन्होंने कहा कि प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता प्रदान की जाएगी। वहीं, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर समेत विधायकों व नेताओं ने शोक जताया है। हादसे की चौंकाने वाली बात यह है कि इस पहाड़ी से दो दिन पहले भी मलबा गिरा था, लेकिन फिर भी प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अब सवाल उठ रहा है कि अगर पहले से खतरे के संकेत मिल चुके थे, तो उन्हें नजरअंदाज क्यों किया गया? स्थानीय लोगों की मानें तो यह पहाड़ी पहले से ही रेतीली और कमजोर थी। यह इलाका बरसात में और भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है, क्योंकि मिट्टी व छोटे-छोटे पत्थर नीचे खिसकने लगते हैं। दो दिन पहले गिरे मलबे को प्रशासन ने हटवा दिया था। इसके बाद वहां चेतावनी बोर्ड नहीं लगाया गया, न ही मार्ग को बंद किया गया। लोगों का कहना है कि प्रशासन ने खतरे को नजरअंदाज किया और यह लापरवाही जानलेवा साबित हुई है। इस क्षेत्र में चोरी-छिपे माइनिंग भी होती रही है। अतीत में आठ अगस्त 2025 को चंबा जिले के तीसा के भंडराडू-शहवा-भड़कवास मार्ग पर कार पर पहाड़ी से पत्थर गिरने से छह की मौत हो गई थी। तीन सितंबर 2025 को शिमला के रामपुर में कई लोग घायल हो गए थे। 11 सितंबर 2025 को चंडीगढ़-मनाली हाईवे पर बस पर पत्थर गिरने से एक बच्ची घायल हो गई थी।
भारत में मॉनसून की वापसी सितंबर महीने में शुरू हो जाती है लेकिन इस बार अक्तूबर में भी बारिश के कारण भारी जानमाल का नुकसान हुआ है। दार्जिलिंग में हुई तबाही के बाद हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में यह दुर्घटना हो गई। मौसम में आ रहे बदलाव और हो रहे जानमाल के नुकसान को देखते हुए कह सकते हैं कि प्रकृति के प्रति अगर अभी हम उदासीन ही रहे और विकास के नाम पर पहाड़ी क्षेत्रों में वनों की कटाई चलती रही और बेहिसाब निर्माण कार्य होता रहा तो भविष्य में हमें और खतरनाक परिणामों का सामना करना पड़ेगा। समय रहते अगर हम चेते नहीं तो हमारी भावी पीढ़ियों को प्रकृति का प्रकोप झेलना पड़ेगा और उसके दोषी होंगे हम !