युद्धक्षेत्र बदला, भविष्य में एल्गोरिदम और एआई से लड़े जाएंगे युद्ध : रक्षा मंत्री

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  • रक्षामंत्री ने युद्ध को नई परिभाषा देने वाली तकनीकों के विकास का किया आग्रह

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वैज्ञानिकों से मौजूदा समाधानों से आगे सोचने और युद्ध को नई परिभाषा देने वाली तकनीकों के विकास का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमें तकनीक में न तो नकलची बनना है और न ही अनुयायी, बल्कि हमें दुनिया के लिए निर्माता और मानक निर्धारक बनना है।
उन्होंने मंगलवार को विज्ञान भवन में ‘रक्षा नवाचार संवाद: आइडेक्स स्टार्टअप्स के साथ संवाद’ के दौरान कहा कि ड्रोन, एंटी-ड्रोन सिस्टम, क्वांटम कंप्यूटिंग और निर्देशित-ऊर्जा हथियार भविष्य की रूपरेखा तैयार करेंगे। हमने ऑपरेशन सिंदूर में भी ऐसा ही एक प्रदर्शन देखा है। ‘देश में रक्षा विनिर्माण के अवसर’ विषयक सम्मेलन में रक्षा मंत्री ने कहा कि युद्धक्षेत्र बदल गया है, अब भविष्य के युद्ध एल्गोरिदम और एआई से लड़े जाएंगे। उन्होंने नव प्रवर्तकों से भारत का पहला रक्षा यूनिकॉर्न बनाने का आह्वान करते हुए युवाओं से भारत के तकनीकी परिवर्तन का नेतृत्व करने का आग्रह किया।
रक्षा मंत्री ने पिछले वित्तीय वर्ष में 1.5 लाख करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादन और 23,000 करोड़ रुपये से अधिक के निर्यात में रिकॉर्ड तोड़ उपलब्धियों में योगदान देने वाले नव प्रवर्तकों के सामूहिक प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा​ कि आप एक ऐसे नए भारत के निर्माता हैं जो अपने लिए डिजाइन, विकास और उत्पादन करने में विश्वास रखता है। साल 2018 में​ आइडेक्स​ की शुरुआत भारत के युवाओं की प्रतिभा को सशस्त्र बलों की तकनीकी आवश्यकताओं से जोड़ने ​के मकसद से की गई थी। आज केवल सात वर्षों में​ 650 से अधिक रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार​ किये जा चुके हैं​ और 3,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के प्रोटोटाइप की खरीद सुनिश्चित की गई है। यह भारत के रक्षा नवाचार परिदृश्य में एक क्रांति का प्रतीक है।
रक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आइडेक्स​ से पहले भारतीय​ प्रतिभाएं विश्व स्तर पर विशेष रूप से आईटी, दूरसंचार और अंतरिक्ष के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रही थीं, लेकिन रक्षा क्षेत्र में उनका कम उपयोग हो रहा था। अब आइडेक्स​ के माध्यम से हमने सुनिश्चित किया कि भारत की​ प्रतिभाएं भारत की सुरक्षा के लिए काम करें। आज यह पहल केवल एक कार्यक्रम नहीं बल्कि एक आंदोलन है​, जो भारतीय रक्षा विनिर्माण के भविष्य को आकार दे रहा है।​ राजनाथ सिंह ने बताया कि आत्मनिर्भर भारत के तहत रक्षा विनिर्माण अब निजी निवेश, अनुसंधान एवं विकास तथा रोजगार सृजन के लिए सबसे आशाजनक क्षेत्रों में से एक बन गया है। ​
उन्होंने कहा कि साल 2047 तक विकसित भारत ​बनाने के लिए आवश्यक है कि हम रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें और एक प्रमुख वैश्विक निर्यातक के रूप में उभरें। साथ ही अत्याधुनिक तकनीकी क्षेत्रों में विश्व का नेतृत्व भी करें।​ रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता स्पष्ट रूप से दिख रही है। इस दिशा में पिछले 10 वर्षों में सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के अंतर्गत कई नीतिगत पहलें की हैं, जिनका उद्देश्य देश में रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को प्रोत्साहित करना है।​ रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता केवल ‘मेक इन इंडिया’ या निर्यात के आंकड़ों तक सीमित नहीं है। ‘आत्मनिर्भरता’ उस भरोसे का नाम है कि संकट की घड़ी में हम अपनी रक्षा के लिए किसी और पर निर्भर न हों।
रक्षा मंत्री ने नव प्रवर्तकों से बातचीत की और उनकी तकनीकी सफलताओं की सराहना की। रक्षा स्टार्टअप का विस्तार, नवाचार और उत्पादन को जोड़ना और अनुसंधान एवं विकास सहयोग के माध्यम से आत्मनिर्भरता को गति देना जैसे विषयों पर पैनल​ चर्चाएं और अनुभव-साझाकरण सत्र आयोजित किए गए।​ इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत, सचिव (रक्षा उत्पादन) संजीव कुमार के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय, रक्षा विकास विभाग, नवप्रवर्तक, स्टार्टअप, एमएसएमई, सशस्त्र बलों के प्रतिनिधि और विभिन्न रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारी उपस्थित थे।

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