शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, इसे कोजागर पूर्णिमा क्यों कहते हैं, यहां पढ़ें इसकी पावन व्रत कथा

0
1727750837l

धर्म { गहरी खोज } : शरद पूर्णिमा सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हर साल आश्विन पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। कहीं इसे रास पूर्णिमा तो कहीं कोजागर पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 6 अक्तूबर 2025 को मनाई जा रही है। इस दिन खीर रखने का समय रात 10:46 से शुरू होगा। मान्यताओं अनुसार इस पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करने आती हैं। ऐसे में जो भक्त इस रात सच्चे मन से माता की उपासना करता है उसके घर में मां लक्ष्मी ठहर जाती हैं। इसलिए ही इस दिन लोग मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं साथ ही इस पावन कथा को भी जरूर सुनते हैं।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा
शरद पूर्णिमा की कथा अनुसार, एक समय की बात है, एक गांव में एक साहूकार रहता था जिसकी दो बेटियां थीं। दोनों ही बहनें पूर्णिमा का व्रत किया करती थीं। लेकिन दोनों के विचार व्रत को लेकर अलग-अलग थे। बड़ी बहन पूर्ण श्रद्धा के साथ शरद पूर्णिमा व्रत किया करती थी और शाम के समय में भगवान चन्द्रमा को अर्घ्य अर्पण करने के बाद अपना व्रत सम्पन्न करती थी। दूसरी तरफ छोटी बहन नाम मात्र के लिये व्रत का पालन करती थी और वह अपना व्रत सम्पन्न किये बिना ही भंग कर देती थी।

धीरे-धीरे वे दोनों बहनें बड़ी हो गयीं और साहूकार ने उन दोनों का विवाह कर दिया। बड़ी बहन ने स्वस्थ शिशुओं को जन्म दिया तो वहीं छोटी बहन की कोई सन्तान नहीं हुई। उसके सभी शिशु जन्म लेते ही मर जाते थे। जिससे छोटी बहन अत्यन्त उदास रहने लगी थी तथा अपने दुखों का समाधान खोजने के लिये वह एक सन्त के पास गई। सन्त ने उसके दुखों का कारण समझा तथा उसे बताया कि, वह बिना किसी रुचि और भक्ति के पूर्णिमा का व्रत कर रही थी, जिसके कारण ही उसके साथ ऐसा हो रहा है। सन्त ने उसे सलाह दी कि, यदि वह पूर्ण श्रद्धा से इस व्रत का पालन करेगी तो भगवान चन्द्रमा की कृपा से उसका अशुभ समय समाप्त हो जायेगा।

संत के कहे अनुसार छोटी बहन ने आगामी शरद पूर्णिमा का व्रत पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से किया। जिसके फलस्वरूप शिशु की तो प्राप्ति हुई किन्तु दुर्भाग्यवश यह शिशु भी जन्म के बाद तुरन्त मृत्यु की गोद में समा गया। छोटी बहन को यह ज्ञात था कि उसकी बड़ी बहन को भगवान चन्द्रमा की विशेष कृपा प्राप्त है और उसकी बहन उसके शिशु को पुनः जीवित कर सकती है। इसीलिये, छोटी बहन ने एक योजना बनायी और अपने शिशु के मृत शरीर को एक कपड़े से ढककर एक छोटी सी शैया पर लिटा दिया। इसके बाद उसने अपनी बड़ी बहन को अपने घर आमन्त्रित किया और उसे वहीं बैठने का आग्रह किया, जिस पर शिशु का शव पड़ा था। जैसे ही बड़ी बहन शैया पर बैठने लगी उसी समय उसके वस्त्र उस मृत शिशु को स्पर्श हो गये। जिससे शिशु जीवित होकर रुदन करने लगा। बड़ी बहन आश्चर्यचकित हो गयी और उसने अपनी छोटी बहन को इस लापरवाही के लिए खूब डांटा। उस समय छोटी बहन ने अपनी बड़ी बहन को बताया कि, जन्म के समय ही उसके इस शिशु की मृत्यु हो गयी थी और उसकी बड़ी बहन के स्पर्श से शिशु पुनः जीवित हो गया। यह केवल भगवान चन्द्रमा की कृपा और पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से ही हुआ। कहते हैं उस दिन से शरद पूर्णिमा पर व्रत पालन करने की परम्परा आरम्भ हो गयी।

शरद पूर्णिमा की दूसरी कहानी
शरद पूर्णिमा के पर्व को मां लक्ष्मी के प्राकट्योत्‍सव के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। वहीं एक दूसरी मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने महारास किया था। तब से चंद्र देव ने प्रसन्न होकर अमृत की बारीश की थी।

शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा क्यों कहते हैं
पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में माता लक्ष्मी संसार में भ्रमण हेतु निकलती हैं और जो भी भक्त उन्हें जागता हुआ मिलता है देवी मां उसको धन-धान्य से सम्पन्न कर देती हैं। रात्रिकाल में जागरण करने के कारण ही इस पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। कौजागर का अर्थ होता है – कौन जाग रहा है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *