नदियां सिर्फ संसाधन नहीं, संस्कृति की धारा है: सीआर पाटिल

नई दिल्ली { गहरी खोज }:केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने गुरुवार को कहा कि भावी पीढ़ियों के लिए नदियों का संरक्षण एक सामूहिक जिम्मेदारी है। नदियां सिर्फ संसाधन नहीं बल्कि हमारी संस्कृति की धारा है। पाटिल ने यह बात दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) की ओर से आयोजित छठे नदी उत्सव के उद्घाटन के अवसर पर कही। इस दौरान विद्वान, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे। महोत्सव के पहले दिन, ‘रिवरस्केप डायनेमिक्स, चेंजेंस एंड कंटिन्युटी’ (नदी परिदृश्य गतिशीलता: परिवर्तन और निरंतरता) विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
पाटिल ने कहा, हमारा कर्तव्य है कि हम नदियों को गंदा न करें। नदियां हमारी संस्कृति का आधार हैं। नदियां केवल संसाधन नहीं हैं, बल्कि हमारी संवेदना और संस्कृति की धारा हैं। मानवीय हस्तक्षेप ने नदियों का बहुत नुकसान किया है। उनका संरक्षण हमारी ज़िम्मेदारी है।
उद्घाटन समारोह के दौरान, मंत्री ने पांचवें नदी उत्सव में प्रस्तुत किए गए शोध पत्रों के संकलन की एक पुस्तिका का लोकार्पण किया। इसके साथ ही उन्होंने एक विशेष नदी उत्सव पोर्टल का भी अनावरण किया, जो नदियों से संबंधित जानकारी और उत्सव के कार्यक्रमों को एक मंच पर लाएगा। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सीआर पाटिल, आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय, विशिष्ट अतिथियों में इस्कॉन के आध्यात्मिक नेता गौरांग दास और सामाजिक कार्यकर्ता साध्वी विशुद्धानंद (भारती दीदी) और आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी सहित विद्वान, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र उपस्थित थे। इस दौरान, सभी वक्ताओं ने नदियों, आध्यात्मिकता और भारतीय सभ्यता के बीच अटूट संबंधों पर अपने विचार साझा किए।
रामबहादुर राय ने कहा, नदियां केवल जलधारा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था और उत्तरदायित्व का प्रतीक हैं। आज जब यमुना की सफाई और तटबंध निर्माण की दिशा में ठोस कार्य हो रहे हैं, तो उसमें एक आशा दिखाई देती है। समाज को नदियों की अविरल धारा को सुरक्षित रखने के लिए सजग और सक्रिय रहना चाहिए।
गौरांग दास ने कहा, नदियां केवल जलधारा नहीं, बल्कि शक्ति, ऊर्जा और जीवन की निरंतर प्रगति का प्रतीक हैं। गंगा की तरह, जो गंगोत्री से खाड़ी तक बाधाओं के बीच भी अपना मार्ग खोज लेती है, वैसे ही हमें भी जीवन की प्रतिकूलताओं में आशा और दिशा बनाए रखनी चाहिए। नदियां हमारी संस्कृति और संवेदना की धारा हैं, जो हमें सिखाती हैं कि विपत्तियों को ऊर्जा और आशा के बल पर अवसर में बदला जा सकता है।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, शहरी जीवनशैली ने नदी से हमारे जुड़ाव को दूर कर दिया। जैसे-जैसे विकास की गति बढ़ी, जैसे-जैसे हम प्रकृति का दोहन करने लगे, प्रकृति से हमारा नाता टूट गया। प्रकृति से हमारा नाता उपभोक्ता का हो गया है। नदी उत्सव का उद्देश्य नदियों के प्रति भाव, उत्साह, श्रद्धा और आस्था उत्पन्न करना है।
ईशान (उत्तर-पूर्व) भारत से लेकर दक्षिणी कन्याकुमारी तक की नदियों के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए साध्वी विशुद्धानंद (भारती ठाकुर) ने कहा, लोगों को नदियों के साथ सार्थक संवाद स्थापित करना चाहिए और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली समृद्धि को पहचानना चाहिए। उन्होंने रेखांकित किया कि नदियों का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व केवल एक पक्ष है, बल्कि उनकी पारिस्थितिक विविधता का अध्ययन और संरक्षण भी गंभीरता से किया जाना चाहिए।
इस कार्यक्रम में एक विशेष पहल के तहत अतिथियों और कलाकारों को दिए गए स्मृति चिन्ह (मेमेंटो) मानव निर्मित नहीं, बल्कि ‘ड्रिफ्ट वुड’ थे। ये लकड़ियां नदियों के प्रवाह में बहकर एक प्राकृतिक और सुंदर आकार ले लेती हैं, जो इस उत्सव की थीम के अनुरूप है।
इसके अलावा, सेमिनार के लिए 300 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुए, जिनमें से 45 चुने हुए पत्रों को अलग-अलग सत्रों में प्रस्तुत किया जाएगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में, देश भर के प्रतिष्ठित विद्वानों और विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। उन्होंने नदियों के सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और कलात्मक पहलुओं पर अपने विचार साझा किए। यह संगोष्ठी नदियों के बदलते परिदृश्य और उनकी निरंतरता पर गहन चर्चा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित होगी।
संगोष्ठी के साथ-साथ, ‘माई रिवर स्टोरी’ नामक एक विशेष डॉक्यूमेंट्री फिल्म फेस्टिवल भी शुरू हुआ। इसमें कई प्रभावशाली और प्रेरणादायक फिल्में प्रदर्शित की गईं, जैसे ‘गोताखोर: डिसेपेयरिंग डाइविंग कम्यूनिटी’, ‘रिवर मैन ऑफ इंडिया’, ‘अर्थ गंगा’, ‘मोलाई– मैन बिहाइंड द फॉरेस्ट’, ‘कावेरी– रिवर ऑफ लाइफ’ और ‘लद्दाख- लाइफ अलॉन्ग द इंडस’। इन फिल्मों ने नदियों से जुड़ी पारिस्थितिक चुनौतियों, पारंपरिक प्रथाओं और मानवीय संबंधों को खूबसूरती से दर्शाया। इन फिल्मों ने दर्शकों को यह समझने में मदद की कि नदियां कैसे हमारे जीवन और भू-दृश्य को आकार देती हैं।
यह तीन दिवसीय महोत्सव सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रदर्शनियों और परिचर्चाओं के साथ 27 सितम्बर तक जारी रहेगा, जिसका लक्ष्य लोगों को नदियों के महत्व के प्रति जागरूक करना और उन्हें नदी संरक्षण से जोड़ना है। उद्घाटन दिवस का समापन एक मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ हुआ, जहां प्रसिद्ध गुरु सुधा रघुरामन और उनकी टीम ने नदियों पर आधारित शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।