अपने अधिकारों के लिए विकासशील देशों के समक्ष बड़ी चुनौतियां: जयशंकर

नयी दिल्ली { गहरी खोज }: विदेश मंत्री डा एस जयशंकर ने दुनिया भर में बढ़ती अनिश्चितता की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस स्थिति में विकासशील देशोंं को विशेष रूप से अपने अधिकारों और अपेक्षाओं को पूरा करने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
डा जयशंकर ने बहुपक्षवाद की अवधारणा को खतरे में बताते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संगठन अप्रभावी हो रहे हैं या संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं और समकालीन व्यवस्था की आधारशिलाएँ बिखरने लगी हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओंं में अत्यंत आवश्यक सुधारों में देरी का परिणाम सबके सामने है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र में हिस्सा लेने न्यूयार्क गये डा सिंह ने मंगलवार को समान विचारधारा वाले ग्लोबल साउथ देशों की उच्च स्तरीय बैठक में भारत का दृष्टिकोण रखा।
विदेश मंंत्रालय ने बुधवार को यहां बताया कि डा सिंह ने मौजूदा वैश्विक स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देशों के लिए बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा , ” हम तेज़ी से बढ़ते अनिश्चित समय में मिल रहे हैं, जब दुनिया की स्थिति सदस्य देशों के लिए बढ़ती चिंता का विषय है। विशेष रूप से वैश्विक दक्षिणी देश कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो इस दशक के पूर्वार्ध में और बढ़ गयी हैं। “
उन्होंने कहा कि कोविड महामारी , यूक्रेन और गाजा में दो बड़े संघर्ष, चरम जलवायु घटनाएँ, व्यापार में अस्थिरता, निवेश प्रवाह , ब्याज दरों में अनिश्चितता, और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के एजेंडे की धीमी गति बड़ी चुनौती हैं। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में विकासशील देशों के अधिकार और अपेक्षाएँ – जिसे कई दशकों में इतनी लगन से विकसित किया गया है – आज चुनौती का सामना कर रही हैं।
डा सिंह ने कहा कि इस स्थिति में यह स्वाभाविक है कि ग्लोबल साउथ चुनौतियों के समाधान के लिए बहुपक्षवाद की ओर रुख करेगा लेकिन दुर्भाग्य से वहाँ भी हमारे सामने एक बेहद निराशाजनक स्थिति है। उन्होंने कहा कि बहुपक्षवाद की अवधारणा ही खतरे में है। अंतर्राष्ट्रीय संगठन अप्रभावी हो रहे हैं या संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। समकालीन व्यवस्था की आधारशिलाएँ बिखरने लगी हैं। और अत्यंत आवश्यक सुधारों में देरी की कीमत आज स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
उन्होंने कहा कि इसलिए समान विचारधारा वाले वैश्विक दक्षिण देशों के रूप में हमें विश्व मामलों पर एकजुट होकर और सिद्धांतों के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। इन मुद्दों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इनमें निष्पक्ष और पारदर्शी आर्थिक व्यवस्था जो उत्पादन का लोकतंत्रीकरण करें और आर्थिक सुरक्षा को बढाये, संतुलित और सतत आर्थिक गतिविधियों के लिए एक स्थिर वातावरण, जिसमें दक्षिण-दक्षिण व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी सहयोग में बढोतरी, लचीली, विश्वसनीय और छोटी आपूर्ति श्रृंखलाएँ जो किसी एक आपूर्तिकर्ता या किसी एक बाज़ार पर निर्भरता को कम करे, खाद्य, उर्वरक और ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित करने वाले संघर्षों का तत्काल समाधान, वैश्विक साझा संसाधनों की सुरक्षा, जिसमें समुद्री नौवहन संबंधी चिंताएँ, मानवीय राहत और बचाव अभियान, पर्यावरणीय चुनौतियाँ, विकास के लिए प्रौद्योगिकी का सहयोगात्मक लाभ उठाना, विशेष रूप से एक डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का निर्माण, और विभिन्न क्षेत्रों में एक निष्पक्ष और समान अवसर जो वैश्विक दक्षिण की विकासात्मक चिंताओं के साथ न्याय करता हो शामिल है।
विदेश मंत्री ने इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत की ओर से कुछ सुझाव भी दिये। पहला हम एकजुटता बढ़ाने और सहयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वैश्विक दक्षिण के बीच परामर्श को मजबूत करने के लिए मौजूदा मंचों का उपयोग करते हैं। दूसरा, उन विशिष्ट शक्तियों, अनुभवों और उपलब्धियों को सामने लाएँ जिन्हें हमने व्यक्तिगत रूप से विकसित किया हो, लेकिन जिनसे वास्तव में ग्लोबल साउथ के अन्य सदस्यों को लाभ हो सकता है। इनके कुछ अच्छे उदाहरण हैं वैक्सीन उत्पादन, डिजिटल क्षमताएँ, शिक्षा क्षमताएँ, कृषि-पद्धतियाँ और लघु एवं मध्यम उद्यम संस्कृति। तीसरा जलवायु कार्रवाई और जलवायु न्याय जैसे क्षेत्रों में, ऐसी पहल करें जो ग्लोबल नॉर्थ को उचित ठहराने के बजाय ग्लोबल साउथ की सेवा करें। चौथा भविष्य में आने वाली तकनीकों, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, की संभावनाओं पर चर्चा करें, और पाँचवाँ, संयुक्त राष्ट्र और समग्र रूप से बहुपक्षवाद में सुधार करें।