संयुक्त राष्ट्र महासभा पर क्यों बरसे ट्रंप, यूरोप को चेतावनी देने का लगाया आरोप

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व निकाय को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र की आलोचना की और उसे एक नाकारा संस्था बताया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिका के अपने नेतृत्व में उठाए गए कदमों की सराहना की और साथ ही चेतावनी दी कि यदि यूरोप गलत प्रवासी और हरित ऊर्जा नीतियों से पीछे नहीं हटता तो उसका विनाश हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र महासभा में लगभग एक घंटे लंबे अपने भाषण में ट्रंप ने शिकायतों और आत्म-प्रशंसा से भरे लहजे में न केवल अपने दूसरे कार्यकाल की उपलब्धियों का बखान किया, बल्कि यह भी कहा कि कुछ विश्व नेताओं के देशों की हालत ‘‘नरक जैसी” हो रही है।
ट्रंप ने वैश्विक संस्था की निष्क्रियता की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह “खोखले शब्दों” से भरी है जो “युद्धों का समाधान नहीं करती।” उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य क्या है? संयुक्त राष्ट्र में अपार संभावनाएं हैं। मैंने हमेशा यह कहा है। इसमें बेहद बड़ी संभावनाएं हैं। लेकिन यह उन संभावनाओं को पूरा करने के करीब भी नहीं पहुंच रहा।
बहरहाल, बाद में ट्रंप ने कुछ राजनयिकों की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की और संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष नेता को यह आश्वासन दिया कि अपनी पहले की आलोचनाओं के बावजूद अमेरिका वैश्विक निकाय का ‘‘100 प्रतिशत” समर्थन करता है। ट्रंप ने अपनी सरकार की उन नीतियों का बखान किया जिनके तहत अमेरिका में तेल और प्राकृतिक गैस की खुदाई को बढ़ावा दिया गया और अवैध आव्रजन पर सख्ती से कार्रवाई की गई।
उन्होंने परोक्ष रूप से सुझाव दिया कि और अधिक देशों को भी इस राह पर चलना चाहिए। उन्होंने यूरोपीय देशों को कड़ी चेतावनी दी, जो अधिक उदार आव्रजन नीतियों को अपनाते हैं और अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए महंगी ऊर्जा परियोजनाओं के लिए प्रतिबद्ध हैं।
ट्रंप ने कहा कि ऐसा करने से वे अपनी अर्थव्यवस्था और संस्कृति को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आपको बता रहा हूं कि अगर आप इस हरित ऊर्जा धोखाधड़ी से दूर नहीं हुए तो आपका देश असफल हो जाएगा। अगर आप उन लोगों को नहीं रोकेंगे जिन्हें आपने पहले कभी नहीं देखा और जिनसे आपका कोई मेल-जोल नहीं है, तो आपका देश बर्बाद हो जाएगा।

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