डीयू के सौ वर्ष के सफर का दस्तावेज “द यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली” का विमोचन

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने सौ साल के गौरवशाली इतिहास, चुनौतियों और उपलब्धियों को दर्ज करने वाली पुस्तक “द यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली-ए कोम्प्रहेंसिव अकाउंट ऑफ इट्स रिलायंस, नॉलेज, लीडरशिप एंड ग्रोथ” का शुक्रवार शाम को लोकार्पण किया। कन्वेंशन हॉल में आयोजित कार्यक्रम में शिक्षा, विज्ञान और साहित्य जगत की कई जानी-मानी हस्तियां मौजूद रहीं।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अपनी स्थापना के समय धन और पदाधिकारियों की कमी जैसी ऐतिहासिक बाधाओं के बावजूद डीयू ने अपने दायरे और प्रभाव का लगातार विस्तार किया है। उन्होंने बताया कि 1922 में विश्वविद्यालय को जहां मात्र 25,000 रुपये का वार्षिक सरकारी अनुदान मिलता था, वहीं राशि आज बढ़कर एक हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रगति बल्कि राष्ट्र के इस संस्थान पर विश्वास का प्रमाण है।
प्रो. सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता स्थापित करने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्र भारत में देशभक्ति की भावना को पोषित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने संस्थागत चुनौतियों जैसे टकराव, कुप्रबंधन और संसाधनों की कमी से निपटने में नेतृत्व की अहमियत पर भी जोर दिया।
लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो और सीएसआईआर-एनआईएसटीएडीएस के पूर्व निदेशक प्रो. अशोक जैन, प्रख्यात लेखिका एवं जयपुर साहित्य महोत्सव की सह-संस्थापक डॉ. नमिता गोखले, साउथ कैंपस निदेशक प्रो. रजनी अब्बी, डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो. बलराम पाणि, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता और सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर सहित अनेक विद्वान, लेखक और छात्र शामिल हुए।
समारोह के दौरान आयोजित पैनल चर्चा में प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. अशोक जैन ने कहा कि स्थापना के शुरुआती वर्षों से ही डीयू ने विज्ञान और शोध को प्राथमिकता दी। उन्होंने बताया कि क्वांटम भौतिकी, खगोल भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान में शुरुआती शोध पहल विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक सोच का प्रमाण हैं। उन्होंने 1997 में सूचना विज्ञान और संचार संस्थान की स्थापना को डीयू की ऐतिहासिक पहल बताया।
पुस्तक की लेखिका प्रो. मनीषा चौधरी ने कहा कि पुस्तक लिखने के पीछे उनकी प्रेरणा विश्वविद्यालय के सौ साल के सफर को दस्तावेज के रूप में पेश करना था। इस पुस्तक में विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति हरि सिंह गौर (1922-1926) से लेकर वर्तमान कुलपति प्रो. योगेश सिंह तक की यात्रा को समेटा गया है। साथ ही स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग, गैर-कॉलेजिएट महिला शिक्षा बोर्ड और घटक महाविद्यालयों की स्थापना की कहानियां भी विस्तार से शामिल की गई हैं।

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