भारत की विकास यात्रा पटरी पर, टैरिफ और ग्लोबल क्राइसिस भी नहीं डाल पाएंगे बड़ा असर

0
economy

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: वैश्विक उथल-पुथल और अमेरिका के उच्च टैरिफ के बावजूद भारत वृद्धि की राह पर मजबूती से आगे बढ़ता रहेगा। अर्थशास्त्रियों एवं विश्लेषकों का कहना है कि भारत की विकास यात्रा वैश्विक चुनौतियों का भले ही सामना कर रही है, लेकिन मजबूत घरेलू कारकों और सतर्क रूप से विकसित होती व्यापार नीति से इस प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा, मुझे लगता है कि आज अनिश्चितता वैश्विक वित्तीय संकट या कोविड काल के मुकाबले कहीं ज्यादा है। हालांकि, बढ़ते व्यापार और पूंजी प्रवाह के कारण भारत विकास के मोर्चे पर उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ तेजी से तालमेल बिठा रहा है। घरेलू कारक लचीलापन प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा, सामान्य मानसून, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी, पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार और भारत का मजबूत सेवा निर्यात प्रमुख सकारात्मक पहलू हैं।
जोशी ने कहा, भारत की सेवा क्षेत्र में मजबूती एक बफर के रूप में काम करती रहती है। देश के कुल निर्यात में सेवाओं की हिस्सेदारी लगभग आधी है, जो टैरिफ के झटकों से कम प्रभावित होती हैं। इसलिए, भारत के पास एक स्वाभाविक समर्थन है। इसके अलावा, आरबीआई की ओर से मौद्रिक नीति में ढील देने एवं सरकार के अग्रिम पूंजीगत खर्च से भारतीय अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी। तमाम चुनौतियों के बीच उम्मीद है कि हम चालू वित्त वर्ष में 6.5 फीसदी की वृद्धि दर हासिल करेंगे।
एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में जोखिम प्रमुख (एशिया-प्रशांत) दीपा कुमार ने कहा, भारत अपनी वृद्धि के लिए अन्य एशियाई देशों की तुलना में निर्यात पर कम निर्भर है। इसलिए, यह वैश्विक अर्थव्यवस्था और व्यापार नीतियों में हो रहे बदलावों के प्रति अधिक लचीला है। दीपा ने कहा, भारत नए बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित कर विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अधिक गहराई से जुड़ना चाहता है। इसके लिए ऐसे ढांचे पर विचार करने की जरूरत है, जहां भारत मुक्त व्यापार समझौतों के जरिये नए बाजारों तक पहुंच बनाना शुरू कर सके।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा, भारत की विकास यात्रा में कुछ चुनौतियां भी हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा, उन्नत देशों में मंदी का असर भारत पर भी पड़ता है। जहां तक टैरिफ के असर का सवाल है, तो इसकी प्रमुख वजह अमेरिका है, क्योंकि वह सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। माल निर्यात पर प्रत्यक्ष दबाव के अलावा अन्य देशों में मांग में गिरावट और चीन से सस्ते उत्पादों की डंपिंग जैसी कुछ अप्रत्यक्ष चुनौतियां भी हैं, जिनका सामाधान करना अत्यंत जरूरी है।
दीपा ने कहा, भारत का करीब 40 फीसदी निर्यात अमेरिका और यूरोपीय संघ पर केंद्रित है। अगर भारत को व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत करनी है, तो खाड़ी, आसियान, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका की उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर ध्यान देने की जरूरत है। प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए भारत के युवाओं और प्रचुर श्रमबल को उभरते अवसरों के अनुरूप कुशल बनाने के साथ व्यापार के अनुरूप प्रशिक्षित करना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *