प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर से गुज़र रहाः शेखावत

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि अपनी जड़ों को न जानने के कारण हमने उस पर अभिमान करना समाप्त कर दिया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश आज सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर से गुज़र रहा है। गुरुवार को विज्ञान भवन में आयोजित संस्कृति मंत्रालय के तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन ‘ज्ञान भारतम्’ की औपचारिक शुरुआत के मौके पर गजेन्द्र सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय में नेशनल मैन्यूस्क्रिप्ट मिशन प्रारंभ हुआ था। उसमें कुछ कैटेलॉगिंग भी हुआ, कुछ काम भी हुआ, कुछ आइडेंटिफिकेशन के लिए भी हमने काम किया। लेकिन कालांतर में देश में जो व्यवस्थाएं आईं, उसमें ये काम पूरी तरह रुक गया। उसे फिर से नए सिरे शुरू करने की ऐतिहासिक पहल हुई है। उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों में जो ज्ञान संरक्षित है, उस ज्ञान की समृद्धि को जब देश की आने वाली पीढ़ियां और वर्तमान पीढ़ी के लोग जानेंगे, तभी उस पर गर्व कर सकते हैं।
हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषियों मनीषियों ने उन सब विषयों पर चर्चा करके, अपने अपने अनुभव से, अपनी अनुभूति से ऐसे ग्रंथों का सृजन किया, जो आज भी विश्व के लिए उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने तब थे, जब उनकी रचना की गई थी। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से भारत पर आक्रांताओं ने हमले किये और हमारे ग्रंथालयों को जला दिया। उस ज्ञान परम्परा को सहेजने के लिए भारत में श्रुति-स्मृति परम्परा को अंगीकृत किया गया और और कालांतर में फिर उन्हें अलग-अलग माध्यम से, अलग-अलग तरीकों से उन्हें संजोया गया। कहीं वृक्ष की छाल पर संजोया गया, कहीं ताड़पत्र पर, कहीं भोजपत्र पर, कहीं रेशम के कपड़े पर लिखा गया, कहीं हस्तलिखित कागजों पर उन्हें संजोया गया। लेकिन दुर्भाग्य से, बीच के गुलामी के कालखंड में, जब हमें अपनी जड़ों, जिनके साथ जुड़ करके हम गर्व करते थे, सजीव रहते थे, उनसे विच्छेदित कर दिया गया, उनसे दूर कर दिया। लेकिन ज्ञान भारतम मिशन से हमें अपने गौरवशाली इतिहास को विश्व पटल पर रखने में मदद मिलेगी।
संस्कृति मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल ने सम्मेलन की प्रस्तावना पेश करते हुए कहा कि यह संस्कृति मंत्रालय की महती ज़िम्मेदारी है, कि जो भारत की परम्परा है, भारत की प्राचीन संस्कृति है, भारत में जो मूर्त और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है, उसको संरक्षित करें, उसका रखरखाव करें और उसे आने वाली पीढ़ियों को सौंपे। विवेक अग्रवाल ने कहा कि हम पांडुलिपि को वस्तु की तरह नहीं देखते, बल्कि उसे ज्ञान के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में होने वाले विचार-विमर्श के आधार पर ‘ज्ञान भारतम्’ की आगे की कार्ययोजना बनेगी।
प्रो. मंजुल भार्गव ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत, एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों के साथ, संभवतः शास्त्रीय और स्थानीय परंपराओं का सबसे समृद्ध भंडार रखता है। ये ग्रंथ साहित्य, विज्ञान, गणित, दर्शन और कला को गहनता से समाहित करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जैसे ही ‘ज्ञान भारतम’ शुरू होता है, इसे केवल संरक्षण के रूप में नहीं, बल्कि सृजन के रूप में भी देखा जाना चाहिए, भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए भारत की शास्त्रीय और स्थानीय ज्ञान प्रणालियों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने ‘रीपैट्रिएशन ऑफ इंडियन मैन्यूस्क्रिप्ट्स – प्रिजर्विंग हेरिटेज, रिस्टोरिंग आइडेंटिटि’ (भारतीय पांडुलिपियों का प्रत्यावर्तन – विरासत का संरक्षण, पहचान की पुनर्स्थापना) विषय पर आयोजित सत्र की सह-अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रत्यावर्तन महत्वपूर्ण है, लेकिन पहला काम यह पता लगाना है कि ये पांडुलिपियां वास्तव में कहां हैं। आज भी, हमारे पास भारत में मौजूद कथित एक करोड़ पांडुलिपियों का सटीक रिकॉर्ड नहीं है, न ही उन लगभग दस लाख पांडुलिपियों का, जो फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, डेनमार्क, स्वीडन, नीदरलैंड जैसे देशों और यहां तक कि हर्मिटेज संग्रहालय में भी मौजूद हैं। डिजिटल प्रतियों की पहचान, सूचीकरण और सुरक्षा सुनिश्चित करना होना चाहिए, ताकि उनमें निहित ज्ञान के विशाल भंडार का अध्ययन, संरक्षण हो सके और अंततः भारत वापस लाया जा सके।
इस मौके पर संस्कृति मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव अमिता प्रसाद साराभाई, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, कला निधि विभाग के अध्यक्ष एवं डीन प्रशासन प्रो. रमेश चंद्र गौड़, नेशनल मैन्यूस्क्रिप्ट मिशन के निदेशक डॉ. अनिर्बाण दास, संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव समर नंदा, निदशक इंद्रजीत सिंह भी उपस्थित थे।