इजरायली एक्सपर्ट ने की भारत की तारीफ, कहा- नेतन्याहू को पीएम मोदी से सीखना चाहिए

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शालोम { गहरी खोज }: भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ युद्ध के कारण रिश्ते तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। दोनों देशों के बीच अविश्वास की गहरी खाई बन गई है। बदलते घटनाक्रमों से विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कई लोग मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कड़ा रुख ट्रंप को हैरान कर गया है। वहीं, इजरायल के अखबार जेरूसलम पोस्ट में जकी शालोम ने लिखा कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को पीएम मोदी से सीखना चाहिए।
इजरायली रक्षा नीति विशेषज्ञ जकी शालोम का कहना है कि इजरायल को भारत से सीखना चाहिए कि ‘राष्ट्रीय सम्मान’ को ‘रणनीतिक संपत्ति’ कैसे बनाया जाए। मिसगाव इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी एंड जायोनिस्ट स्ट्रैटेजी के वरिष्ठ फेलो शालोम ने जेरूसलम पोस्ट में लिखा कि टैरिफ नीति पर अमेरिका के प्रति पीएम मोदी का कड़ा रुख और पाकिस्तान के साथ सीमा पर झड़पों के प्रति उनका रवैया दिखाता है कि राष्ट्रीय सम्मान कोई विलासिता नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक संपत्ति है।
हाल के महीनों में अमेरिका-भारत संबंध विश्वास संकट में फंस गए हैं। टैरिफ नीति, रूस के साथ भारत के करीबी रिश्ते और मई में पाकिस्तान के साथ संघर्ष पर अमेरिकी प्रशासन का विवादित रुख इसके लिए जिम्मेदार है। ट्रंप ने बार-बार भारत द्वारा अमेरिकी आयात पर लगाए गए उच्च टैरिफ पर नाराजगी जताई, दावा करते हुए कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ लगाता है।
शालोम के अनुसार, भारत और रूस के करीबी रिश्ते भी एक मुद्दा हैं। भारत रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीदार है, लेकिन ट्रंप ने भारत और रूस को ‘मृत अर्थव्यवस्था’ करार दिया। ट्रंप ने यह तक कहा कि पीएम मोदी को यूक्रेन में मारे गए लोगों की परवाह नहीं है। शालोम लिखते हैं कि यह बयान न केवल पीएम मोदी का अपमान था, बल्कि भारत को एक शक्ति के रूप में नीचा दिखाने की कोशिश थी।
मई में पाकिस्तान के साथ संघर्ष में ट्रंप ने खुद को तटस्थ मध्यस्थ के रूप में पेश किया, दावा करते हुए कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को प्रतिबंधों की धमकी देकर युद्ध रोका। पाकिस्तान ने उनकी मध्यस्थता की तारीफ की और नोबेल शांति पुरस्कार का प्रस्ताव रखा, लेकिन भारत ने अमेरिका की भूमिका को खारिज कर दिया। शालोम के अनुसार, पीएम मोदी की तीखी प्रतिक्रिया आर्थिक, सैन्य तनाव और व्यक्तिगत व राष्ट्रीय सम्मान से प्रेरित थी। उन्होंने ट्रंप के चार फोन कॉल्स को अस्वीकार कर दिया। इस संदर्भ में इजरायल बहुत कुछ सीख सकता है।
शालोम ने 25 अगस्त की खान यूनिस घटना का उल्लेख किया, जिसमें नासिर अस्पताल पर इजरायली गोला गिरने से पत्रकारों समेत 20 लोगों की मौत हुई। इसके कुछ घंटों बाद आईडीएफ प्रवक्ता, चीफ ऑफ स्टाफ और नेतन्याहू ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। आईडीएफ ने ‘निर्दोष नागरिकों’ को नुकसान के लिए अंग्रेजी में माफी मांगी, चीफ ऑफ स्टाफ ने तत्काल जांच की घोषणा की, और नेतन्याहू ने इसे ‘दुखद घटना’ बताया।
शालोम के अनुसार, इन बयानों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संतुष्ट करने की इच्छा और घटना के परिणामों को लेकर चिंता या ‘घबराहट’ झलकती थी। उनका मानना है कि नेताओं ने नागरिकों की हत्या की जिम्मेदारी लेने का संदेश दिया, जो खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है। बाद में पता चला कि पीड़ितों में कई हमास के थे। पूरी जानकारी का इंतजार किए बिना जिम्मेदारी स्वीकार करने से इजरायल की कूटनीतिक और कानूनी स्थिति कमजोर हुई।
शालोम लिखते हैं कि यहीं पर पीएम मोदी का उदाहरण प्रासंगिक है। ट्रंप के मौखिक हमलों का सामना करते हुए मोदी ने माफी नहीं मांगी, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए जोरदार जवाब दिया। उनका कड़ा रुख यह संदेश देता है कि भारत गुलाम या दोयम दर्जे का व्यवहार स्वीकार नहीं करेगा। इजरायल ने खान यूनिस घटना में पारदर्शिता और चिंता दिखाकर अल्पकालिक नुकसान को कम किया, लेकिन दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को नुकसान पहुंचा सकता है।
शालोम का कहना है कि भारत से इजरायल सीख सकता है कि राष्ट्रीय सम्मान कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीतिक संपत्ति है। यदि इजरायल अपनी प्रतिष्ठा और सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद माफी मांगने में जल्दबाजी से बचना होगा और दृढ़ता के साथ पेश आना होगा।

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