यमुना का पानी मजनू का टीला की गलियों में घुसा; घर-दुकानें डूबीं, जनजीवन अस्त-व्यस्त

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: यमुना का उफनता पानी इस सप्ताह उत्तर दिल्ली के मजनू का टीला की तंग गलियों में घुस आया, जिससे दर्जनों घर और दुकानें जलमग्न हो गईं और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। पानी के उतरने के बाद इलाके में गीली लकड़ियां, टूटी मशीनें और ठहरे हुए नालों के गंदे पानी की बदबू अहसास कराती है कि बहुत कुछ अब नए सिरे से शुरू करना होगा।
नदी किनारे बसी इस तिब्बती कॉलोनी में आम दिनों में कैफे छात्रों से गुलजार रहते हैं, टैटू पार्लर की नियोन लाइट जलती हैं और किराए के कमरों में चलने वाले होम-स्पा व्यस्त रहते हैं। लेकिन अब बाढ़ ने रोजमर्रा की जिंदगी को संघर्ष में बदल दिया है। बाढ़ ने रेस्टोरेंट से लेकर टैटू पार्लर, सैलून, होम-स्पा और परिधान दुकानों तक हर तरह के व्यवसाय को प्रभावित किया है। कई दुकान मालिक अब अपने दफ्तर में ही सोने को मजबूर हैं, जबकि मशीनों के खराब हो जाने से सेवाएं पूरी तरह ठप हो गई हैं।
रेस्टोरेंट चलाने वाले जुंगी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उनके रेस्टोरेंट के पीछे स्थित घर की छत तक पानी आ गया। ‘‘पिछले 15 वर्ष से मेरा परिवार यह रेस्टोरेंट चला रहा है। हर बार जब यमुना का जलस्तर बढ़ता है, हमारा घर डूब जाता है। इस बार तो सब कुछ… बिस्तर, फर्नीचर, कपड़े… सब पानी में चला गया। रेस्टोरेंट ऊपरी मंज़िल पर है, इसलिए वह बच गया, लेकिन हमारा घर और सामान सब तबाह हो गया।’’ कई दुकानदारों ने बताया कि उन्हें पास के होटलों में शरण लेनी पड़ी है।
मजनू का टीला में करीब दो दशक से रह रहे लाबसांग सेरिंग ने बताया कि कई परिवार ऊंचे इलाकों में किराए के कमरों में रह रहे हैं, जबकि कुछ लोग अपनी दुकानों के भीतर ही सो रहे हैं ताकि व्यवसाय से दूरी न हो। इलाके में संचार व्यवस्था भी प्रभावित हुई है। मोबाइल नेटवर्क बाधित है और बिजली आपूर्ति भी अनियमित है। दुकानदारों ने बताया कि उन्होंने स्टाफ के साथ समन्वय के लिए वॉकी-टॉकी का इस्तेमाल शुरू किया है। जुंगी ने कहा ‘‘फोन बंद रखते हैं ताकि इमरजेंसी के लिए बैटरी बची रहे।’’
कॉलोनी की निचली गलियों में चलने वाले व्यवसायों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। एक टैटू पार्लर के कर्मचारी ताशी ने कहा कि उनकी सभी मशीनें नष्ट हो गई हैं। ‘‘हमारी मशीनें हमने ज़मीन में लगा रखी थीं, और पूरा सेटअप पानी में डूब गया। इन मशीनों की कीमत लाखों में है। इनके बिना पार्लर नहीं चल सकता।’’
एक अन्य टैटू पार्लर के मालिक डेविड ने बताया कि अधिकतर इंक और उपकरण नष्ट हो गए हैं। ‘‘हम दो रातों के लिए होटल में रुके। यहां गलियां इतनी तंग हैं कि पानी तेजी से नहीं निकलता। वहीं ठहर जाता है और मच्छरों व संक्रमण का खतरा पैदा करता है।’’ दुकानदारों का कहना है कि खराब सड़कों और कमजोर जल निकासी के कारण स्थिति और बिगड़ गई।
जुंगी ने कहा ‘‘सरकार अपनी तरफ से कोशिश कर रही है, लेकिन सड़कें बहुत संकरी हैं और पानी जल्दी नहीं निकलता। सांप और मच्छर हालात को और खराब कर रहे हैं। हम बस यही उम्मीद कर रहे हैं कि सब जल्दी सामान्य हो जाए।’’ होम-स्पा में काम करने वाले कर्मचारियों ने भी भारी नुकसान की बात कही। अपने घर के बेसमेंट में स्पा केंद्र चलाने वाली 26 वर्षीय न्यिमा ने कहा ‘‘मसाज बेड, ड्रायर्स, स्टीम मशीनें — सब खराब हो गए हैं। ग्राहकों ने बुकिंग रद्द कर दी है और हमें नहीं पता कि काम कब दोबारा शुरू हो पाएगा।’’ इलाके के होटल अब अस्थायी आश्रय बन गए हैं, जहां परिवार और कर्मचारी एक कमरे में साथ रह रहे हैं।
मठ के पास स्थित एक होटल के कर्मचारी संदीप ने कहा ‘‘हमारे होटल में पांच-छह कर्मचारी एक साथ रह रहे हैं। कुछ मालिकों ने किराया कम कर दिया ताकि लोग रुक सकें।’’
बाढ़ ने दुकानों में काम करने वालों की दिनचर्या को भी प्रभावित किया है। एक गिफ्ट शॉप में काम करने वाली अनीशा ने बताया कि उन्होंने बच्चों को पैसे लेकर तैरते हुए बेसमेंट से सामान निकालते देखा। उन्होंने कहा ‘‘यह खतरनाक है, लेकिन दुकानदार अपना स्टॉक बचाने के लिए मजबूर हैं।’’
स्थानीय लोगों ने बताया कि यह नुकसान हर साल होता है। एक फूड स्टॉल चलाने वाले सेरिंग ने कहा कि अब पानी थोड़ा कम हुआ है लेकिन मरम्मत का खर्च काफी होगा। उन्होंने कहा ‘‘अब हमें दीवारों की पुताई करानी होगी, फर्नीचर बदलना होगा और मशीनें ठीक करनी होंगी। यह हर साल ऐसा ही होता है।’’
सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी बढ़ गई हैं। दो बच्चों की मां वान्या ने बताया कि ठहरे हुए पानी के कारण मच्छर और सांप घरों में घुसने लगे हैं। उन्होंने कहा ‘‘बच्चे बीमार पड़ रहे हैं और हम उन्हें सुरक्षित रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।’’
स्थानीय लोगों ने आवारा जानवरों की हालत पर भी चिंता जताई। एक होटल के कर्मचारी राजेश ने बताया, ‘‘यहां के आवारा कुत्ते पहले ही कमजोर थे। अब वे ऊंचाई वाले हिस्सों या छतों पर फंसे हैं। न खाना है, न पानी। रात भर भौंकते हैं। यह तकलीफदायक है।’’
कई लोगों के लिए बाढ़ के बावजूद वहीं रहना मजबूरी है। एक कर्मचारी ने बताया, ‘‘जिनके परिवार थे, वे आश्रय स्थलों की ओर चले गए, लेकिन ज़्यादातर लोग यहीं रुके हैं। हम नहीं जा सकते क्योंकि हमारी दुकानें और रेस्टोरेंट यहीं हैं। अगर हम गए, तो घर और काम दोनों चले जाएंगे।’’

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