चौरचन पूजा क्या है, क्यों मनाया जाता है ये त्योहार, जानने के लिए पढ़ें इसकी पावन कथा
धर्म { गहरी खोज } : चौरचन पूजा यानी चौथ चंद्र के दिन चांद की पूजा होती है। ये पर्व मुख्य रूप से मिथिला क्षेत्र में मनाया जाता है। मान्यताओं अनुसार इस दिन चांद की पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस पर्व को परिवार के सभी सदस्य मिलकर मनाते हैं और चौरचन पूजा के प्रसाद का आनंद लेते हैं। चौरचन पूजा सौहार्द और एकता का प्रतीक मानी जाती है। इस साल ये पर्व 26 अगस्त 2025 को मनाया जा रहा है। यहां हम आपको बताएंगे इसकी पावन कथा के बारे में।
चौरचन पूजा कथा
एक समय भगवान गणेश अपने वाहन मूषक के साथ कैलाश का भ्रमण कर रहे थे कि तभी चानक वहां चंद्र देव के हंसने की आवाज सुनाई दी। भगवान गणेश ने उनसे हंसने का कारण पूछा। इस पर चंद्रदेव ने कहा कि उन्हें भगवान गणेश की विचित्र रूप को देखकर हंसी आ गई। इसके बाद चंद्र देव अपने रूप की प्रशंसा करने लगे। चंद्र देव के दूसरों का मजाक उड़ाने की प्रवृति को देखकर भगवान गणेश ने उन्हें श्राप दिया कि वे जिस रूप पर इतना अभिमान करते हैं वो आज कंलकित और कुरूप हो जाएगा। जो कोई भी इस दिन चंद्र के दर्शन करेगा। उसे जीवन में झूठे कलंक का सामना करना पड़ेगा।
ये सुनकर चंद्र देव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे भगवान गणेश से क्षमा याचना करने लगे। चंद्र देव ने पूरे विधि- विधान से भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणेश जी की पूजा की। चंद्र देव को पश्चाताप करते हुए देखकर गणेश जी ने उन्हें उनकी भूल के लिए क्षमा कर दिया। लेकिन अब श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता था लेकिन गणेश जी ने उन्हें वरदान दिया कि जो कोई इस चतुर्थी तिथि पर चंद्रमा की विधि- विधान से पूजा करेगा तो उस पर कलंकित चंद्रमा का असर कम होगा। इसलिए इस दिन लोग चंद्रमा की पूजा करते हैं जिससे उनके जीवन पर लगने वाला कलंक निष्कलंक हो जाएगा। इसी कारण से इस दिन मिथिला में चौरचन व्रत करने की परंपरा शुरू हो गई।
