उच्च न्यायालयों को अपने न्यायिक अधिकारियों के माता-पिता की तरह कार्य करना चाहिए: शीर्ष अदालत

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय ने झारखंड उच्च न्यायालय को एक महिला न्यायिक अधिकारी को राहत देने का निर्देश देते हुए शुक्रवार को कहा कि उच्च न्यायालयों को अपने न्यायिक अधिकारियों के लिए ‘माता-पिता’ की तरह कार्य करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने झारखंड उच्च न्यायालय से कहा कि वह एकल अभिभावक महिला न्यायिक अधिकारी को हजारीबाग में ही रहने दे या उनके बेटे की 12वीं कक्षा की परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए बोकारो स्थानांतरित कर दे। प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) की याचिका पर संज्ञान लेते हुए कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों को अपने न्यायिक अधिकारियों की समस्याओं के प्रति सजग रहना होगा।’’
महिला न्यायिक अधिकारी ने छह महीने के बाल देखभाल अवकाश के अनुरोध को अस्वीकार किए जाने को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया। बाद में उनका तबादला दुमका कर दिया गया। उन्होंने उच्च न्यायालय में एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया जिसमें हज़ारीबाग में सेवा जारी रखने या रांची या बोकारो स्थानांतरित किए जाने की मांग की गई है। उन्होंने दावा किया कि दुमका में अच्छे सीबीएसई स्कूल नहीं हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों को अपने न्यायिक अधिकारियों के माता-पिता की तरह कार्य करना चाहिए और ऐसे मुद्दों को अहंकार का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘अब आप या तो उन्हें बोकारो स्थानांतरित करें या उसे मार्च/अप्रैल, 2026 तक हजारीबाग में ही रहने दें… मेरा मतलब है कि परीक्षाएं समाप्त होने तक।’’ उच्च न्यायालय को निर्देशों का पालन करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया था। मई में, शीर्ष अदालत ने झारखंड सरकार और उच्च न्यायालय रजिस्ट्री से न्यायिक अधिकारी की याचिका पर जवाब मांगा था, जिसमें उनके बाल देखभाल अवकाश के अनुरोध को अस्वीकार करने को चुनौती दी गई थी। महिला न्यायिक अधिकारी ने जून से दिसंबर तक छह महीने की छुट्टी मांगी थी। न्यायिक अधिकारियों पर लागू बाल देखभाल अवकाश नियमों के अनुसार, एडीजे अपने कार्यकाल के दौरान 730 दिन तक की छुट्टी की हकदार हैं। बाद में, उन्हें तीन महीने की छुट्टी दे दी गई।