कृषि और उद्योग को मजबूत कर स्वदेशी पर अधिक जोर देगी RSS

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: अमेरिकी टैरिफ से उत्पन्न समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अपने स्तर पर तैयारी शुरु कर दी है। भारत की आर्थिक चुनौतियों, खासकर अमेरिकी टैरिफ के संदर्भ में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कृषि और छोटे-मझोले उद्योगों को मजबूत करने एवं स्वदेशी पर जोर देने के लिए विभिन्न संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया।
अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ संघ देश भर के कृषकों, छोटे उद्यमियों, एमएसएमई सेक्टर से जुड़े लोगों व मजदूरों को राष्ट्रहित में एकजुट करेगा और स्वदेशी वस्तुओं व तकनीक के पुरजोर तरीके से इस्तेमाल व खरीद के लिए भी अभियान चलाकर प्रोत्साहित करेगा।
पूसा संस्थान में आयोजित दो दिवसीय बैठक में संघ प्रमुख के अलावा सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले व सह सरकार्यवाह अतुल लिमिये एवं कृषि, स्वदेशी, मजदूर संघ समेत सात अन्य प्रमुख अनुषांगिक संगठन और उनके पदाधिकारी भी शामिल रहे।आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जोर देते हुए कहा कि कृषि, बाज़ार और उद्योग पर खासतौर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कृषि संगठन के दिल्ली-एनसीआर में और विस्तार पर भी चर्चा हुई।
बताया जाता है कि बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि किस तरह से देश भर में छोटे-मझोले उद्योगों, मजदूरों व कृषकों में एकजुटता लाई जाए और स्वदेशी के साथ देश के भीतर ही बने सामान की खरीद पर अधिक ध्यान दिया जाए। ताकि आने वाले समय में किसी भी बाहरी टैरिफ का कोई असर भारतीय अर्थव्यवस्था अथवा कृषि या उद्योग, बाजार को प्रभावित न कर सके।
बैठक में निर्देश दिया गया है कि कृषकों की दशा को बेहतर करने, स्वदेशी व एमएसएमई सेक्टर को मजबूत करने के लिए उस दिशा में काम कर रहे संगठन विस्तृत नीति बनाएं और उसे अमल में लाने के लिए लोगों के बीच जाकर, उन्हें जानकारी दें, जागरुकता अभियान चलाया जाए। साथ ही देश भर में इस तरह के कार्य में जुटे लोगों को एकजुट करने पर भी बल दिया गया।
संगठन के विस्तार के साथ दिल्ली-एनसीआर व देश भर में कृषकों और देश भर में एमएसएमई सेक्टर को बेहतर करने पर भी बल दिया गया। इसके लिए संगठनों के पदाधिकारियों को सरकारी स्तर पर मिल रही सुविधाओं की जानकारी भी लोगों तक पहुंचाने और सुविधाएं सुलभ कराने के लिए नीतिगत चरणबद्ध तरीके से काम करने के लिए भी कहा गया। हर डेढ़-दो साल में होने वाला यह आर्थिक चिंतन, वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।