जेलेंस्की ट्रंप की सुरक्षा गारंटी के साथ वाशिंगटन से रवाना हुए, लेकिन क्या यह पर्याप्त है ?

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कैनबरा{ गहरी खोज }: यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस सप्ताह एक बार फिर व्हाइट हाउस पहुंचे, लेकिन इस बार उनके साथ यूरोपीय नेता भी थे और उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मुलाकात के बाद रूस के खिलाफ जारी युद्ध को समाप्त करने के लिए शांति समझौते को लेकर कुछ सकारात्मक संकेत मिले हैं। समझा जाता है कि यूरोपीय नेताओं की उपस्थिति से बैठक पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। यह बैठक ऐसे समय में हुई जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में अलास्का में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी। यूरोपीय नेताओं को आशंका है कि ट्रंप अमेरिका को रूस की मांगों के पक्ष में ले जा सकते हैं। पिछले कुछ महीनों में ट्रंप के बयान रूसी प्रचार से प्रभावित दिखे हैं और केवल तब ही संतुलित हुए हैं जब आसपास की राजनीतिक शक्तियों ने हस्तक्षेप किया। इस संदर्भ में यूरोपीय एकता का यह प्रदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।
इस बैठक में यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी से जुड़े मसलों पर उल्लेखनीय प्रगति हुई। यह महत्वपूर्ण है कि अमेरिका अब इन सुरक्षा गारंटियों का हिस्सा होगा। कुछ समय पहले तक ट्रंप इस जिम्मेदारी को पूरी तरह यूरोप पर डाल रहे थे, इसलिए यह बदलाव सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
जेलेंस्की ने व्हाइट हाउस के बाहर यूक्रेनी पत्रकारों को दिए एक बयान में कहा कि भविष्य की व्यवस्था के लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने में समय लगेगा, क्योंकि इसमें कई देश शामिल होंगे, जिनकी सहायता की क्षमताएं अलग-अलग हैं। कुछ देश आर्थिक सहायता देंगे, तो कुछ सैन्य सहयोग प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यूक्रेन की सैन्य आवश्यकताओं की पूर्ति और सहयोग भविष्य की किसी भी सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा होगा, जिसमें रणनीतिक साझेदारी, उत्पादन, और सैन्य उपकरणों की खरीद जैसे आयाम शामिल होंगे। ब्रसेल्स में एक समाचार सम्मेलन के दौरान जेलेंस्की ने कहा था कि रूस के भविष्य के हमलों से निपटने के लिए यूक्रेन की सैन्य क्षमता को मज़बूत करना एक प्राथमिकता है। खबरों के अनुसार, प्रस्तावित सुरक्षा गारंटी में यूरोपीय सहयोगियों के माध्यम से लगभग 90 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के सैन्य उपकरणों की खरीद शामिल हो सकती है। जेलेंस्की ने यह सुझाव भी दिया कि अमेरिका भविष्य में यूक्रेन में निर्मित ड्रोन खरीद सकता है।
नाटो के महासचिव मार्क रूटे ने संकेत दिया कि वार्ता में नाटो की अनुच्छेद 5 जैसी सामूहिक रक्षा गारंटी की संभावना पर भी चर्चा हुई। हालांकि, यह उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 5 पूर्ण सैन्य हस्तक्षेप की गारंटी नहीं देता, बल्कि सदस्य देशों को समर्थन देने या न देने की स्वतंत्रता देता है। यूक्रेन के लिए यह पर्याप्त नहीं माना जा रहा है।
वर्ष 1994 में हुए बुडापेस्ट समझौते के तहत अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता की गारंटी दी थी, लेकिन रूस ने 2014 में बिना गंभीर दंड के यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया और 2022 में पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू कर दिया। इस पृष्ठभूमि में, यूक्रेन अब सख्त और प्रभावी सुरक्षा गारंटी चाहता है।
ट्रंप और पुतिन के बीच अलास्का में हुई हालिया बैठक से पहले तक माना जा रहा था कि रूस किसी भी समझौते में दिलचस्पी नहीं रखता। लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रंप द्वारा रूस की अधिकतम मांगों का समर्थन करने के बाद पुतिन को लगता है कि व्हाइट हाउस में उन्हें समर्थन मिल सकता है। ऐसे में यह आशंका बढ़ गई है कि रूस डोनबास क्षेत्र – डोनेट्स्क और लुहान्स्क – को हासिल करने की दिशा में बढ़ सकता है।
जेलेंस्की ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी शांति समझौते के तहत रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों को औपचारिक या कानूनी मान्यता नहीं देंगे। यूक्रेन का संविधान संशोधित करना और जनमत संग्रह कराना आवश्यक होगा, जो न सिर्फ जटिल है बल्कि जनभावनाओं के खिलाफ भी है। रूस द्वारा जिन क्षेत्रों – डोनेट्स्क, लुहान्स्क, खेरसोन और ज़ापोरिज़्ज़िया – पर आंशिक कब्ज़ा किया गया है, वे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और वहां यूक्रेन की सैन्य संरचनाएं मौजूद हैं। इन इलाकों को छोड़ना यूक्रेन को भविष्य में होने वाले हमलों के लिए असुरक्षित बना देगा। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जेलेंस्की किसी अस्थायी ‘युद्धविराम’ पर सहमत भी हों, तब भी वह उन क्षेत्रों को नहीं छोड़ सकते जो अब भी यूक्रेन के नियंत्रण में हैं।
अमेरिकी समर्थन पर घटता भरोसा हालिया गैलप सर्वेक्षण में 69 प्रतिशत यूक्रेनियों ने युद्ध के शीघ्र समाधान का समर्थन किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका को एक भरोसेमंद भागीदार नहीं माना जा रहा। यदि रूस को युद्ध के बदले कोई लाभ मिलता है, तो यह न केवल यूक्रेन, बल्कि यूरोप और पूरी दुनिया के लिए एक खतरनाक उदाहरण बन सकता है। इस्तांबुल में हुई हालिया वार्ताओं में रूसी प्रतिनिधिमंडल ने कथित तौर पर कहा, “रूस हमेशा के लिए युद्ध लड़ने को तैयार है।” ट्रंप और पुतिन की मुलाकातों के बावजूद इस मानसिकता में कोई बदलाव नहीं देखा गया है।

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