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संपादकीय { गहरी खोज }: 50वें दशक में भारत की सड़कों पर हिन्दी चीनी भाई-भाई के जो नारे लगते थे वह 1962 में चीन द्वारा हुए हमले के बाद बंद हो गए और तब से लेकर आज तक चीन के प्रति जो अविश्वास की भावना बनी थी वह समय के साथ बढ़ती चली गई। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका में जिस तरह अपने पांव पसार कर चीन-भारत की घेराबंदी कर रहा है, उसको देखते हुए तथा ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के दौरान पाकिस्तान का साथ देने और भारत के साथ लगती सीमाओं पर लगातार तनाव बनाये रखने के बीच चीन के विदेश मंत्री का भारत आना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न हुई राजनीतिक स्थिति का ही परिणाम कहा जा सकता है।
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव के बीच अमेरिका द्वारा भारत पर अतिरिक्त 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा के साथ भारत और चीन दोनों को अपने संबंधों को लेकर संवाद करने का अवसर प्रदान कर दिया। पुरानी कहावत है दुश्मन का दुश्मन दोस्त, आज चीन और भारत दोनों का दुश्मन अमेरिका है और अमेरिका की नीतियां ही इन दोनों देशों को नजदीक लाने का आधार बन रही हैं।
भारत दौरे पर आये चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बातचीत के बाद भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि सीमा पर तनाव घटाना अहम है। दोनों देश रिश्तों के खराब दौर से गुजरे हैं, लेकिन अब भारत-चीन आगे बढ़ना चाहते हैं। उन्होंने अपने चीनी समकक्ष वांग यी को बताया कि भारत-चीन संबंध आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और आपसी हित से निर्देशित होने चाहिएं। बैठक में अपने प्रारंभिक भाषण में विदेश मंत्री ने यह भी रेखांकित किया कि दोनों देशों के बीच मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिएं। जयशंकर ने कहा कि यह अवसर हमें मिलने और अपने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करने का मौका प्रदान करता है। यह वैश्विक स्थिति और आपसी हितों के कुछ मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करने का भी उपयुक्त समय है। हमारे संबंधों में एक कठिन दौर देखने के बाद, दोनों देश अब आगे बढ़ना चाहते हैं, इसके लिए दोनों पक्षों की ओर से स्पष्ट और रचनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस प्रयास में, हमें तीन परस्पर सिद्धांतों पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक संवेदनशीलता और पारस्परिक हित से निर्देशित होना चाहिएं। मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए, न ही प्रतिस्पर्धा संघर्ष। वहीं चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि हमने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बनाए रखा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्त्वपूर्ण सहमति और पिछले दौर की सीमा वार्ता के दौरान लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करना है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि हमने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बनाए रखा। हमने शिजांग स्वायत्त क्षेत्र में स्थित भारतीय तीर्थ क्षेत्र कैलाश मानसरोवर की यात्रा फिर से शुरू की है। हमने सहयोग का विस्तार करने, चीन भारत संबंधों के सुधार और विकास की गति को मजबूत करने पर जोर दिया है ताकि हम एक-दूसरे की सफलता में योगदान दे सकें और एशिया व दुनिया को निश्चितता प्रदान कर सकें। गौरतलब है कि इसी महीने चीन में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक से पहले चीन के विदेश मंत्री अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आये हैं। भारत ने चीन के साथ तनावपूर्ण स्थितियों में भी संबंधों को एक स्तर से नीचे ही जाने दिया, लेकिन चीन ने भारत प्रति हमेशा दबाव वाली नीति अपनाई। भारत-चीन के व्यापारिक व राजनीतिक रिश्तों में दृढ़ता आये इसके लिए चीन को भारत प्रति नीति में बुनियादी बदलाव लाने की आवश्यकता है। भारत का विश्वास या भरोसा चीन ने हमला करके तोड़ा था, उस विश्वास की बहाली भी चीन को ही करनी होगी। इसके लिए उसे भारत के साथ लगती सीमाओं पर तनाव घटाने के लिए विस्तारवादी नीति त्यागनी होगी। जब तक सीमा पर तनाव रहेगा तब तक भारत-चीन संबंधों में सुधार की आशा कम ही होगी। 2020 में लद्दाख क्षेत्र में चीनी सेना की घुसपैठ का मामला जब तक सुलझता नहीं तब तक स्थाई शांति और सौहार्द की बात आगे बढ़ने की संभावना कम ही है।
भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते कद और महत्व को समझते हुए चीन द्वारा भारत को सम्मान की दृष्टि से देखते हुए एक सम्मानजनक माहौल बनाकर ही आगे बढ़ना होगा। भारत चीन के संबंधों में बेहतरी विश्व की राजनीति को एक नई दिशा दे सकती है। यह संभव है, अगर चीन भारत प्रति साकारात्मक नीति अपना कर चलता है। गेंद अब चीन के पाले में है।

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