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संपादकीय { गहरी खोज }: ‘जब मुझे महीनों-महीनों भारत के बाहर जेलखानों में रहना पड़ा तो उन दिनों अकसर मेरे मन में यह प्रश्न उठता-किसके लिए, किसकी प्रेरणा से हम जेल की यातनाएँ सहकर भी टूटे नहीं बल्कि और अधिक शक्तिशाली हो उठे हैं? भीतर से इस प्रश्न का जो उत्तर मिलता उसका आशय है-भारत का एक ‘मिशन’ है, एक गौरवपूर्ण भविष्य है: भारत के उस भविष्य के उत्तराधिकारी हम हैं। नये भारत के मुक्ति के इतिहास की रचना हम ही कर रहे हैं और हम ही करेंगे। यह आस्था है तभी सब दुःख कष्ट सह सकता हूँ, भविष्य के अँधेरों को अस्वीकार कर सकता हूँ, यथार्थ के निदुर सत्यों को आदर्श के कठोर आघात से धूल में मिला सकता हूँ। यही वह अटल, अचल आस्था है, जो बंगाल की युवक-शक्ति को मृत्युंजयी बनाये है। यह ‘श्रद्धा’, यह आत्म-विश्वास जिसमें है वही व्यक्ति स्रष्टा है, वही देश-सेवा का अधिकारी है। संसार में जो कुछ भी महत् प्रचेष्टा है, वह मानव-मन का आत्म-विश्वास और निर्माण शक्ति की प्रतिच्छाया मात्र है। अपने और अपने राष्ट्र के ऊपर जिसे भरोसा नहीं है वह व्यक्ति कभी कोई निर्माण कर सकता है भला?’

1926 में बंगाल की युवा शक्ति को संबोधित करते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जो कहा उसका अंश मात्र आप के सम्मुख रखा है। नेताजी की तरह ही मदन लाल ढींगरा, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु तथा स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को आज स्वतंत्रता दिवस पर नमन करते हुए देश-विदेश में बैठे भारतवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजी हकूमत की अमानवीय यातनाएं सहने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को अपने व अपने राष्ट्र के भविष्य को लेकर जो आत्मविश्वास था वह उनकी पीड़ा को हर लेता था। वह शारीरिक पीड़ा को भूलकर आत्मसुख की अनुभूति करने वाले थे, उनको लगता था कि हमारी भावी पीढी जल्द ही आजाद हवा में सांस लेने लगेगी। यह एहसास ही उनके अन्दर वह शक्ति भर देता था जो अंग्रेजी हकूमतों की गोलियों और तोपों के गोलों को हंसते-हंसते छाती पर सहन कर जाते थे।

आजादी के लिए काल कोठरियों में वर्षों बंद रहने वाले तथा फांसी के फंदे को चूमने या गोली खाने वालों का एक ही लक्ष्य था कि स्वतंत्र भारत की आजाद हवाओं में उनकी भावी पीढ़ियां सांस ले सके। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना खून बहाकर जो स्वतंत्रता हमें दी उसे संभालकर रखते हुए अपनी भावी पीढ़ियों को देना हमारा कर्तव्य है।
‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के बाद पाकिस्तान, अमेरिका, तुर्की और चीन जिस तरह एकजुट होकर भारत की घेराबंदी कर रहे हैं भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं उसका सामना करने के लिए हमें उसी भावना से अपने आप को एक बार फिर ओत-प्रोत करने की आवश्यकता है, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों में थी। आज भारत को आर्थिक रूप से गुलाम बनाने के षड्यंत्र विश्व स्तर पर रचा जा रहा है। अमेरिका टैरिफ द्वारा और चीन भारत के बाजारों पर कब्जा कर भारत को आर्थिक व्यवस्था पर दबाव बना रहे हैं।
भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तीसरी बनने की ओर अग्रसर है। भारत के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए एक नहीं कई प्रकार की बाधाएं पैदा की जा रही हैं। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के स्तंभों को कमजोर करने के लिए कई प्रकार के भ्रम व भ्रांतियां फैलाई जी रही हैं। खेद इस बात का है कि हमारे ही कुछ जिम्मेवार लोग भारत विरोधी शक्तियों के चक्रव्यूह में फंसकर अपने पांव आप कुल्हाड़ी मारने का काम कर रहे हैं।
समय की मांग है कि हम अपने पर तथा देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विश्वास रखकर देश के वर्तमान और भविष्य को मजबूत व सुरक्षित रखने हेतु एकजुट होकर कार्य करें। विश्व के विकसित देश कभी नहीं चाहेंगे कि भारत उनको चुनौती दे। भारत जितना आत्मनिर्भर होता जाएगा उतना ही मजबूत होता जाएगा। विकसित देशों को यही बात भयभीत कर रही है। एक स्थाई सरकार को कमजोर कर देश में एक कठपुतली सरकार बनाने का यह प्रयास कोई पहला नहीं है। बांग्लादेश, पाकिस्तान हमारे सामने नवीनतम उदाहरण हैं। इसी तरह अफगानिस्तान और कई अन्य देशों में कठपुतली सरकारें विकसित देशों के इशारे पर स्थापित हो कार्य कर रही हैं।
आज स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प लें कि जिस भावना से ओत प्रोत होकर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया हम उसी भावना से ओत-प्रोत होकर देशहित में कार्य करेंगे। भाषा व क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर देश के लिए ही जियेंगे और मरेंगे। यह संकल्प तभी पूरा होगा जब हमें भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह अपने में व देश के प्रति आत्मविश्वास होगा। स्वतंत्रता दिवस पर आप सब को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।

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