इंदौर के डॉ. रवि अतरोलिया बने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के प्रति अलख जगाने के कार्य की अनूठी मिसाल

विगत 27 वर्षों से 435 से अधिक कार्यक्रमों के माध्यम से लाखों विद्यार्थियों और नागरिकों को बताया राष्ट्र ध्वज तिरंगा का इतिहास और उसका महत्व
इंदौर{ गहरी खोज }: देश की आन, बान और शान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के प्रति देशप्रेम जगाने और जागरूकता फैलाने के लिए तिरंगा अभियान प्रमुख और रिटायर्ड डीएसपी डॉ. रवि अतरोलिया विगत 27 वर्षों से निरन्तर जन-जागरण के कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर निवासी डॉ. अतरोलिया विभिन्न शिक्षा संस्थानों सहित आरएपीटीसी, पीटीएस, सीआरपीएफ, नगर सुरक्षा समिति, जिला जेल, केन्द्रीय जेल, बीएसएफ, एनसीसी, एनएसएस सहित विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में कार्यक्रम आयोजित कर विद्यार्थियों एवं आमजनों को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के इतिहास से और ध्वजारोहण के सही तरीके से परिचित करा रहे हैं। वे विशेषकर स्कूली बच्चों को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की कहानी के माध्यम से सामान्य शब्दों में अपनी बात कहते हैं। इस दौरान डॉ. अतरोलिया बताते है कि एक मानक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा क्या होता है। तिरंगे को फहराने के सही तरीके क्या है और भारतीय संस्कृति में तिरंगे का कितना महत्व है। डॉ. अतरोलिया अभी तक मध्य प्रदेश सहित महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, तेलंगाना, तमिलनाडु, झारखंड आदि राज्यों में करीब 435 से अधिक कार्यक्रम आयोजित कर लाखों विद्यार्थियों और आमजनों को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के इतिहास और महत्व के साथ-साथ विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों के बारे में जानकारी दे चुके हैं।
तिरंगा अभियान के प्रमुख डॉ. अतरोलिया ने शुक्रवार को बताया कि राष्ट्रीय पर्वों विशेषकर 15 अगस्त, 26 जनवरी आदि पर सार्वजनिक स्थानों एवं शासकीय इमारतों पर आयोजित किये जाने वाले ध्वजारोहण पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मानक स्तर (आईएसआई मार्क) का ही होना चाहिए। मानक स्तर के मुताबिक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा आयताकार होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की लंबाई और चौड़ाई 2:3 होती है। मानक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में तीन समानान्तर पट्टियां होना जरूरी है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा में सबसे ऊपर केसरिया रंग होता है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के मध्य में श्वेत रंग और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी होना चाहिए। सफेद रंग की पट्टी पर मध्य में सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ का 24 शलाकाओं (तिलियां) वाला नीला चक्र होना चाहिए। नीले चक्र का व्यास सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के बराबर हो तथा वह राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के दोनों ओर अंकित होना चाहिए। 24 शलाकाओं वाला नीला चक्र इस बात का संदेश देता है कि देश में 24 घंटे सतत प्रगति हो और यह प्रगति भी अंतहीन हो। जिस प्रकार नीला आकाश और नीला सागर अनन्त और अथाह होता है। उसी प्रकार हमारे देश की प्रगति भी आकाश और सागर की तरह सतत होती रहे। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में केसरिया रंग जहां त्याग और बलिदान का प्रतीक है, वहीं सफेद रंग सत्य और शांति का तथा हरा रंग श्रृद्धा और शौर्य का प्रतीक है।
डॉ. अतरोलिया ने बताया कि ध्वजारोहण करने का सही तरीका यह है कि ध्वज फहराने वाला व्यक्ति हमेशा बायीं ओर ही रहना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के दायी ओर कोई भी उपस्थित नहीं हो। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को प्रतिदिन सूर्योदय के समय ससम्मान फहराया जा सकता है और सूर्यास्त के समय उसे उतार लिया जाना चाहिए। राष्ट्रीय पर्वों के दौरान आयोजित ध्वजारोहण समारोह में रेशमी खादी, सिल्क खादी, ऊन, पोलिस्टर कपड़ें और कागज से निर्मित राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को ही फहराया जाना चाहिए। प्लास्टिक से निर्मित राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा इसलिये नहीं फहराया जाता है क्योंकि प्लास्टिक का निष्पादन बहुत देर से होता है।
डॉ. अतरोलिया को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के इतिहास के बारे में जानने की जिज्ञासा और प्रेरणा पूर्व सांसद एवं उद्योगपति नवीन जिंदल से मिली। वर्ष 1995 में समसामयिक अध्ययन केन्द्र इंदौर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जिंदल तिरंगे के बारे में व्याख्यांन देने इंदौर आए थे। उस कार्यक्रम का संचालन डॉ. अतरोलिया ने किया था। इसी दौरान डॉ. अतरोलिया के मन में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के इतिहास को जानने की रूचि जागृत हुई। उसके बाद उन्होंने दो वर्ष तक विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर भारत सहित विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों के बारे में अध्ययन कर महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र की।
डॉ. अतरोलिया ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के इतिहास और महत्व को लेकर पहला जागरूकता कार्यक्रम 15 अगस्त 1997 को आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर इंदौर के सेंट रेफियल्स स्कूल में आयोजित किया था। उसके बाद उन्होंने फिर पीछे मुडकर के नहीं देखा। डॉ. अतरोलिया अमेरिका के चार शहरों में भी तिरंगा अभियान कार्यक्रम के माध्यम से वहां के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की कहानी सुनाकर रोचक जानकारी दे चुकें हैं। डॉ. अतरोलिया ने बताया कि संविधान सभा ने पहली बार 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को अंगीकार किया था, इसलिए 22 जुलाई राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का जन्मदिन है। इस दिन को विशेष बनाने के लिए भी कई लोग राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा विषय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते है। किसी बड़े राजनेता के निधन या राष्ट्रीय शोक के समय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को झुकाने का मतलब है कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को ध्वज दंड की आधी ऊँचाई तक ही फहराये।