पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर उठाए सवाल

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बीकानेर{ गहरी खोज }: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बुधवार सुबह ट्रेन से अपने दो दिवसीय दौरे के तहत बीकानेर पहुंचे। इस दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने रेलवे स्टेशन पर गहलोत का जोरदार स्वागत किया। यहां मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने केन्द्र सरकार, संवैधानिक पदों की गरिमा, उपराष्ट्रपति इस्तीफे, केन्द्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग, संसद में हुई हालिया चर्चा और ऐतिहासिक तथ्यों की तोड़मरोड़ पर अनेक तीखे सवाल खड़े किए।
गहलोत ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर चुप्पी साधे रखने पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद से इस्तीफा देना मामूली घटना नहीं होती। अब तक देश को यह तक नहीं बताया गया है कि उपराष्ट्रपति ने किन परिस्थितियों में पद छोड़ा। न ही धनखड़ साहब कुछ बोले, न ही सरकार ने कोई स्पष्टीकरण दिया। क्या उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया? यदि हां, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह संसद सदस्य या कोई भी पदाधिकारी अपने वक्तव्यों पर स्पष्टीकरण देता है, उसी प्रकार ऐसे संवैधानिक .पदों से इस्तीफे की स्थिति में देश को पूरा सच बताया जाना चाहिए। कल राष्ट्रपति को भी मजबूर कर दिया जाए, तो क्या हम फिर भी चुप रहेंगे?
गहलोत ने ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेंसियों के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि इन एजेंसियों का मोदी सरकार के दौरान अत्यधिक दुरुपयोग हुआ है। उन्होंने कहा कि ईडी ने देशभर में 193 मामले दर्ज किए, जिनमें से मात्र दो में सफलता मिली है। यह आंकड़ा खुद संसद में दिया गया है। बाकी मामलों में लोगों को तंग किया गया, उनके घरों पर छापे डाले गए, महिलाओं को घंटों परेशान किया गया। यह स्थिति किसी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए उचित नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही एजेंसियों के रवैये में थोड़ी नरमी आई है। वरना इन एजेंसियों का भय पूरे देश में फैल चुका था।
जब एक सवाल में संसद में पंडित नेहरू और सरदार पटेल के संदर्भ में की गई ऐतिहासिक भूलों की बात उठी, तो गहलोत ने तीखा व्यंग्य करते हुए कहा कि ऐसी फैक्चुअल गलतियां तो ये लोग पहले भी कर चुके हैं कभी कबीर पर, कभी साहित्यकारों पर। यह कोई नई बात नहीं है। तथ्यात्मक सत्य को तोड़-मरोड़ कर पेश करना इनकी आदत बन चुकी है। उन्होंने कहा कि जो लोग इतिहास को जाने बिना उस पर भाषण देते हैं, वे देश को गुमराह कर रहे हैं।
गहलोत ने हाल ही में संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर हुई बहस पर भी सरकार की जवाबदेही पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि देश यह जानना चाहता है कि 26 लोगों की शहादत के बाद क्या कोई जांच हुई? चूक कहां हुई, किस स्तर पर हुई, इसका जवाब आज तक नहीं मिला। न गृह मंत्री ने इस्तीफा दिया, न ही किसी एजेंसी के प्रमुख ने। क्या इतनी बड़ी घटना ऐसे ही नजरअंदाज कर दी जाएगी? गहलोत ने सवाल उठाया कि आखिर जनता को यह क्यों नहीं बताया गया कि क्या उस अभियान में कोई रणनीतिक विफलता हुई थी? इतनी बड़ी घटना के बाद संसद का विशेष सत्र बुलाया जाना चाहिए था ताकि पूरा देश सवाल पूछ सके, लेकिन तब सरकार मौन थी।
पूर्व मुख्यमंत्री ने संसद में पुराने युद्धों का संदर्भ देकर आज की समस्याओं से ध्यान हटाने के प्रयास की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि 1962, 1965, 1971 जैसे युद्धों का जिक्र करके सरकार अपनी विफलताओं को छुपा रही है। बांग्लादेश की जीत और शिमला समझौते जैसी ऐतिहासिक उपलब्धियों को भी सरकार ने तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया। यह जनता के साथ छल है। वसुंधरा राजे और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की दिल्ली यात्राओं को लेकर पूछे गए सवाल पर गहलोत ने कहा कि ये भाजपा के आंतरिक मसले हैं। धनखड़ साहब का प्रकरण सामने आने के बाद पार्टी और सरकार दोनों रक्षात्मक हो गई हैं। अंदरूनी खींचतान के चलते कोई स्पष्टता नहीं दिख रही है।

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