लालू प्रसाद ने 1992 में, ममता बनर्जी ने 2005 में किया था घुसपैठियों का विरोध: सम्राट चौधरी

पटना{ गहरी खोज }: बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और 2005 में टीएमसी सांसद ममता बनर्जी ने घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने की वकालत की थी लेकिन आज वोट बैंक की राजनीति के दबाव में यही लोग लाखों घुसपैठियों को वोटर लिस्ट में बनाये रखना चाहते हैं और मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का विरोध कर रहे हैं। सम्राट चौधरी ने इसे विपक्ष की दोगली और देश विरोधी राजनीति बताया और कहा कि उनके कथनी और करनी में अंतर को बिहार की जनता देख रही है।
साेमवार काे यहां सम्राट चौधरी ने कहा कि मतदाता सूची का यह गहन पुनरीक्षण अभियान पूरी तरह पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य अवैध रूप से मतदाता सूची में शामिल लोगों की पहचान करना है, ताकि भारतीय चुनाव प्रणाली की पवित्रता बनी रहे। 29-09-1992 में एक समाचार पत्र में छपी खबर का हवाला देते हुए कहा- साल 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तात्कालीन गृह मंत्री एसबी चौहान के द्वारा दिल्ली में बुलाई गई एक उच्चस्तरीय बैठक में असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम के मुख्यमंत्री तथा मणिपुर, नगालैंड और दिल्ली के प्रतिनिधि के साथ शामिल हुए थे।
उन्होंने कहा कि उस बैठक में लालू प्रसाद ने घुसपैठ के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था और केंद्र सरकार से बांग्लादेश से अवैध प्रवेश रोकने के लिए कारगर कदम उठाने की मांग की थी। तब लालू प्रसाद ने कहा था कि अवैध घुसपैठियों द्वारा इन इलाकों में अचल संपत्ति खरीदी जा रही हैं। इसपर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि सीमावर्ती जिलों में भारतीय नागरिकों को पहचान पत्र जारी किए जाएं ताकि घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकाला जा सके।
उपमुख्यमंत्री चौधरी ने कहा कि 2005 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन सांसद ममता बनर्जी ने भी कहा था कि वाम मोर्चा सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल में मतदाता बना रही है। ममता बनर्जी ने जार्ज फर्नाडिस और राजनाथ सिंह के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से मिलकर पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में गड़बड़ी के सबूत भी सौंपे थे।
श्री चौधरी ने कहा कि आज जब बिहार में इसी पारदर्शिता के लिए मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जा रहा है, तब विपक्ष के यही नेता और दल इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। यह विपक्ष की राजनीति में आई गिरावट और अवसरवाद को उजागर करता है। यह बताता है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते अब घुसपैठिए भी उनके प्रिय बन गए हैं।