डायन/ टोनही प्रताड़ना की घटनाएं सामाजिक जागरुकता से रोकना संभव

डॉ.दिनेश मिश्र
लेख-आलेख { गहरी खोज }: देश के ग्रामीण अंचल में आये दिन निर्दोष महिलाओं को जादू-टोने के आरोप में प्रताड़ित करने की घटनाएं होती है, उनमें से अधिकांश मामले आम लोगों की नजरों के सामने नहीं आते, सिर्फ ऐसी घटनाएं जिनमें किसी महिला को दी गई प्रताड़ना हद से बाहर सी हो गई हो, सांघाटिक चोटें पहुंची हो या हत्या हो गई हो, वे ही मामले पुलिस व प्रेस या सामाजिक कार्यकर्ताओं तक पहुंचते है। छोटी-छोटी घटनाएं तो लोगों की जानकारी में आती ही नहीं, कुछ मामलों मेंप्रताडित व्यक्ति बदनामी के डर से मामले को उजागर नहीं करते है। कहीं-कहीं प्रताड़ना करने वाला गुट इतना शक्तिशाली व प्रभावी होता है कि उसकी पहुंच के कारण मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। समाचार पत्रों एवम मीडिया की सुर्खियां बनती प्रताड़ना की घटनाएं किसी एक क्षेत्र या प्रदेश की नहीं हैं, बल्कि देश के लगभग सभी प्रांतों से ऐसी घटनाओं की जानकारी मिलती है। फिर भी सर्वाधिक मामले छत्तीसगढ़, झारखंड ,बिहार के है। पिछली कुछ चर्चित घटनाओं को देखें तो मानवीय व आधुनिक मानने वाले समाज की वास्तविकता सामने आ जाएगी।
पिछले दिनों बिहार के पूर्णिया के ग्राम टेटगमा में एक ही परिवार के 5 लोगों जिनमें 3 महिलाएं थीं डायन के संदेह में मारने पीटने फिर जिंदा जला देने की वीभत्स घटना सामने आई है . इसके पहले बलौदाबाजार के कसडोल थाने के ग्राम छरछेद में एक बच्ची को जादू टोने से बीमार करने के सन्देह में 2 महिलाओं सहित 4 व्यक्तियों की हत्या जिसमें एक साल का बच्चा भी शामिल है बर्बर तरीके से कर दी गई. ऐसा ही एक मामला बस्तर के सुकमा के एटकल ग्राम का है जहां जादू टोना से बच्चों को बीमार करने के शक में 3महिलाओं सहित 5 व्यक्तियों की लाठियों से पीट पीट कर कर दी गई,, इसके पहले मुंगेली में एक महिला को मिट्टी तेल डाल कर जलाने की घटना सामने आई थी ,और विलासपुर मस्तूरी से एक वृद्ध महिला को गर्म लोहे से दाग दाग कर मारने का भी मामला आया था .मंदिर हसौद के पास ग्राम टेकारी में रेवती बाई की हत्या जादू-टोने के शक में एक युवक द्वारा कर दी गई। इसके पूर्व अम्बिकापुर के लखनपुर ब्लाक के एक गांवझारपारा (जोधपुर) में टोनही के संदेह में नौ महिलाओं को प्रताड़ित किये जाने की घटना घटी। नौ महिलाओं को बैगाओं ने 8 दिन तक बुरी तरह प्रताड़ित किया। दो बैगाओं ने महिलाओं के सीने में बैठकर पिटाई की। उन महिलाओं को बबूल के कांटों पर सुलाया गया। उन्हें भूखे प्यासे रखा गया, उन्हें लोहे के चाबुक से कई बार मारा गया, इस पर भी जब उन्होने स्वयं पर लगाये जादू-टोने के आरोप को स्वीकार नहीं किया तब उनके बाल काट दिये गये। उन्हें निर्वस्त्र कर नाले पर नहलाया गया व गले में झाड़ू पहिनाकर गांव भर में बाजे-गाजे के साथ घुमाया गया। जो कि अत्यन्त शर्मनाक है .14 वर्ष की बालिका से लेकर 80 वर्ष तक वृध्दा को प्रताड़ित करने के मामले है। ये कुछ ऐसे उदाहरण है जो अंधविश्वास के कारण डायन (टोनही) के संदेह में प्रताड़ना को स्पष्ट दर्शाते है।
21वीं सदी में भी दो दशक से अधिक समय बिता चुका हमारा समाज जहां एक ओर स्वयं को अति आधुनिक मानता है, वहीं दूसरी ओर भांति-भांति के अंधविश्वास समाज में जड़ जमाये हुए है। जादू-टोने के नाम पर महिला को दी जाने वाली प्रताड़ना डायन/टोनही समस्या के नाम से जानी जाती है, देश व छत्तीसगढ़ के प्रमुख अंधविश्वासों में से एक है। अंधविश्वास एवं टोना-टोटका जैसी घिसी-पिटी मान्यताओं के दम पर आज भी कई स्थानों पर महिला प्रताड़ना का कारण है। इस संबंध में एक आश्चर्य की बात यह है कि साक्षरता के प्रकाश से दूर अनपढ़ ग्रामीणों को लेकर पढ़े-लिखे लोग भी इन बातों पर कुछ न कुछ भरोसा करते हैं।
अंधविश्वास के जुनून की बलि चढ़ती महिला प्रताड़ना की घटनाएं सभ्य व पढ़े-लिखे समाज के लिए एक शर्म की बात है, वहीं दूसरी ओर पूर्ण साक्षरता की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे देश के काफी नागरिकों के मन में अभी भी संदेह ही है, कि क्या डायन या टोनही वास्तव में कोई ऐसी शक्तियों से युक्त महिला होती है, जो किसी के सम्मुख आर्थिक, शारीरिक, मानसिक उलझने पैदा कर सके या टोना कर किसी को बीमारी या नुकसान पहुंचा सके। क्या टोनही (डायन) का कोई चमत्कारिक अस्तित्व है, जो लोगों को इतना नुकसान पहुंचा सकता है, कि उससे बचाव के लिए उसके साथ मारपीट कर गांव निकाला कर, या हत्या करना ही एकमात्र उपाय है या अंधविश्वास का सहारा लेकर जादू, टोना, टोटका का कुप्रचार कर, गांव में भय व भ्रम का वातावरण निर्मित कर स्वयं की स्वार्थसिध्दि ही इसके मूल में है।
किसी भी महिला को ”टोनही” जादूगरनी (डायन) घोषित करने से उसे शारीरिक प्रताड़ना, मारपीट, मानसिक प्रताड़ना, सामाजिक बहिष्कार जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। कई बार प्रताड़नाओं के चलते या तो उसे घर-बार छोड़कर गांव से बाहर निकलना पड़ता है, जिससे या तो वह स्वयं आत्महत्या कर लेती है अथवा कई मामलों में मारपीट कर उसकी हत्या कर दी जाती है। महिला अत्याचार की ऐसी घटनाएं गांवों, कस्बों में अधिकांश घटित होती रहती हैं।
आजादी के पहले देश में शिक्षा व चिकित्सा सुविधा का प्रसार देश में बहुत कम था, गांव, कस्बों में या तो स्कूल कालेजों की पढ़ाई करने के लिए तथा मीलों चलकर जाना पड़ता था, वहीं चिकित्सा के लिए मजबूरीवश गांव में जो भी बैगा गुनिया, झाड़-फूंक करने वालों के ही भरोसे रहना पड़ता था, आजादी के बाद आज स्थिति कुछ सुधरी जरूरी है, लेकिन अब भी पुरानी मान्यताओं के चलते ग्रामीण अंचलों में किसी बच्चे को बुखार आने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, रात में रोने, नींद न आने पर, गांव में फसल कम होने, पानी कम गिरने या अधिक गिरने, पशुओं की तबियत खराब होने, दूध न देने, पशुओं के मरने आदि जितनी भी किस्म की विपरीत परिस्थितियां होती है, उनका कारण जादू, टोना करना, नजर लगाना को ही मान लिया जाता है तथा लोग बैगा गुनिया में झाड़-फूंक कराने, ताबिज पहनने, भभूत खाने के चक्कर में लोग समय व धन नष्ट करते हैं। बैगा गुनिया नजर लगाने, जादू-टोना करने की बात करने लगते हैं तथा पूरा का पूरा गांव उस महिला की खोज में लग जाता है, जिसकी जादू टोने से उस व्यक्ति की तबियत खराब, फसल खराब, व्यापार में हानि हुई हो। गांव में ही ऐसे कई लोग होते हैं जो किसी महिला को डायन अर्थात जादू-टोना करने वाली टोनही करार देते हैं व उसके खिलाफ दुष्प्रचार होता रहता है। धीरे-धीरे गांव ही उस महिला के विरोध में हो जाता है। कथित डायन/टोनही के विरोध में कई किस्से कहानियां गढ़ दी जाती हैं।
डायन/टोनही करार दी जाने वाली महिला साधारणतया गरीब घर की प्रौढ़, विधवा तथा कई बार नि:संतान महिला होती है, जिनके घर में या तो सदस्य कम होते हैं अथवा निर्धन, अकेले होने के कारण सामूहिक व सुनियोजित षडयंत्र का प्रतिकार करने में अक्षम होते हैं। पहले तो उस महिला को कहा जाता है कि उसेन जादू-टोने के बल से जिस परिवार पर विपदा लायी है, इसलिए स्वयं ही उसे दूर करें, जो कि उसके वश में होता ही नहीं। धीरे-धीरे दुव्यर्वहार, प्रताड़ना, मारपीट, सामाजिक बहिष्कार, गांव से निकालने का प्रयास आदि की कोशिशें की जाती है। जिसमें वे बहुत कम खबरें ही हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज के पास पहुंच पाती है, अधिकांश घटनाएं पता ही नहीं लग पाती। समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद भी जाने क्यों सामाजिक चेतना को प्रभावित नहीं कर पाती।
अंधविश्वास के चलते कई प्रकार की अफवाहों का बाजार गर्म रहता है, ऐसे अमुक औरत के पास नहीं जाना, वह नजर लगा देगी, या टोटका टोना कर देगी, उससे कुछ लेकर खाना नहीं आदि आदि। बच्चों को इस प्रकार की बात सिखाई जाती है, जिससे उनके दिमाग में एक अनजाना भय भी रहता है। नजर लगाने व नजर उतारने का प्रपंच चलते ही रहता है, किसी के दरवाजे पर नींबू, सिंदूर, मिर्च, लाल कपड़ा आदि किसी ने शरारतवश रख दिया तो जादू-टोने, टोटके का हल्ला हो जाता है। गांव व कस्बों में भ्रम व भय व तनाव का माहौल बन जाता है। जबकि इस सबका अंत एक महिला को टोनही, डायन घोषित कर उसे प्रताड़ित कर होता है, लेकिन अंधविश्वास व निहित स्वार्थ के कारण हो रहे इन अत्याचारों पर प्रभावी रोक लगाना अनावश्यक है, क्योंकि आज भी अधिकांश गांव ऐसे हैं जहां साक्षरता, प्रौढ़ शिक्षा के प्रचार के बावजूद भी टोनही बैगा, जादू टोना जैसी बातों पर अंधश्रध्दा रखते हैं। विनाशकारी, चमत्कारी शक्ति को देखने का दावा कहीं भी कोई भी नहीं करता, बल्कि सुनी सुनायी बातों व अफवाहों को फैलाने में सब लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद करते हैं।
पिछले अनेक वर्षो से इस मुद्दे पर मैं लगातार लिखते व कार्य करते हुए मैंने यह अनुभव किया है कि आज भी अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं जिसका कारण अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा की कमी, पुरानी परंपराओं का दबाव व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का न होना है। विभिन्न सभाओं के दौरान ग्रामीण जनों में से जागरूक लोग अपने गांव के बैगाओं व ओझाओं की करतूतें व कारगुजारियां बताते हैं व सामाजिक कुरीतियों पर खुलकर बातचीत करते हैं व प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में भाग लेते है। यदि किसी गांव में किसी बैगा का सम्मान है उसे गांव के कार्यक्रमों में सम्मानपूर्वक बुलाया जाता है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे किसी महिला को टोनही घोषित करने का व गांव के लोगों को भ्रमित कर एक निर्दोष महिला के साथ मारपीट करने व जान से मारने का अधिकार मिल गया है? कोई भी संस्कृति व परम्परा किसी दोषी को बचाने की वकालत नहीं करती तथा न ही किसी निर्दोष को चारों ओर से घेरकर मारने की इजाजत देती है। यह सच है कि सामाजिक परम्पराएं सदियों से चली आ रही हैं। लोगों की उन पर आस्था रहती है लेकिन जब ये परम्पराएं, कुरीतियों के रूप में बदल जाती है व निर्दोष व्यक्तियों के शोषण का आधार बन जाती हैं तब उनमें समय समय पर परिवर्तन होना चाहिए। जिसमें समाज के लोगों को आगे बढ़कर सक्रियता पूर्वक हिस्सा लेना चाहिए। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कुरीतियां नहीं बदलेगी। सिर्फ कानून बलों या पुलिस कार्यवाही से काम नहीं चलेगा विचारों के आदान-प्रदान की, नये दृष्टिकोण को जागृत करने की आवश्यकता है।
आईये, कुछ ऐसे उपायों पर चर्चा करें, जो डायन/ ”टोनही प्रताड़ना” के निर्मूलन में प्रभावकारी हो सकते हैं, चूंकि ऐसे प्रकरणों की संख्या ग्रामों, कस्बों, छोटे शहरों में अधिक होती है, इसलिए न स्थलों पर कोटवार, समाजसेवी संस्थाओं, ग्राम पंचायत, शिक्षकों, चिकित्सकों, पुलिस कर्मियों की सक्रिय भूमिका हो सकती है तथा महिलाएं प्रताड़ना से बचायी जा सकती हैं यदि कोई प्रकरण आरंभिक अवस्था में ही ज्ञात हो जाता है तो उसका निराकरण संभव है। कोटवार, पंच-सरपंच को टोनही प्रताड़ना, जादू टोना संबंधी थोड़ी सी भनक पड़ने पर आसपास के नागरिकों को लेकर मामले को तुरंत सुलझाना चाहिए। गांवों में किसी व्यक्ति के बीमार होने, चाहे व बच्चा ही क्यों न हो अथवा बुजुर्गवार व चिकित्सक की सलाह लेकर उसका उपचार कराना चाहिए।
क्योंकि बीमारियां सूक्ष्म जीवाणु, विषाणु के प्रकोप से होती हैं, जिनका निदान समय रहते कर लिये जाने पर पूर्णत: किया जा सकता है। बीमारियों के उपचार के लिए जादू-टोना, झाड़ फूंक की मदद लेने से बचना चाहिए। पशुओं की बीमारियों, दूध कम देने, आदि का कारण भी अलग अलग होता है। इसी प्रकार अकाल पड़ने, पानी कम गिरने, बाढ़ आने, गर्मी पड़ने, भूकंप आने का कारण भी प्राकृतिक है। यह न ही किसी पुरूष व महिला की चमत्कारिक शक्ति का प्रताप होता है। इसलिए ऐसे किसी भी कारण से किसी महिला को डायन टोनही, बैगिन कहना गलत है, क्योंकि जो महिला अपनीस्वयं की परिवार वालों की रक्षा नहीं करसकती, वह किसी दूसरे का भला व बुरा करने में समर्थ कैसे हो सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं को चौपालों, पंचायतों, कस्बो में जाकर लोगों को सच्चाई से रूबरू कराना चाहिए। इस कार्य में मीडिया की भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। टेलिविजन के विभिन्न चैनलों में भूत, प्रेत, जादू, टोना की धारणाओं वाले सीरीयलों पर भी नियंत्रण लगाने पर सरकार को विचार करना चाहिए। पंचों, चिकित्सकों, शिक्षकों का सहयोग इसमें लिया जा सकता है। कला जत्थों को नाटकों, एकांकी के माध्यम से लोगों को यह समझाना होगा। समाज में सभी महिला-पुरूष बराबर हैं। कोई भी व्यक्ति कथित चमत्कारिक शक्ति के सहारे, किसी के परिवारजनों, पशुओं, खेती, नौकरी का नुकसान नहीं कर सकता। यदि ऐसी घटनाएं प्रारंभ में ही नजरों में आ जावे, तो समाज की कोई भी महिला डायन के रूप में अभिशापित होने से बच जावेगी व समाज से इस अंधविश्वास का निर्मूलन किया जा सकेगा।